कविता कब तक February 11, 2014 by राघवेन्द्र कुमार 'राघव' | Leave a Comment कल भी मरी थी कल भी मरेगी आखिर वो कितनी बार जलेगी । पहले तो तन को भेड़िया बन नोच डाला शरीर से आत्मा तक जगह-जगह छेद डाला । लाश बच रही थी न जीएगी और न मरेगी आखिर वो कितनी बार जलेगी ।। घर से बाहर तक हर की याद दिलाता है दर्द बांटना […] Read more » life-poem कब तक