कविता घायल पाँखे November 13, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment धुंधली आँखे घायल पाँखे अब और बसेरा कितनी दूर बचकर चुगती थी दानो को संयम से निर्दोष श्रम से जाने कैसे हो गयी फिर भी घायल पाँखे और उस पर बसेरा कितनी दूर बाट तकें नन्ही आँखे कुछ आशा से कुछ अभिलाषा से और यहाँ हो गयी माँ की घायल पाँखे अब और बसेरा कितनी […] Read more » घायल पाँखे