कविता
पतंगें
/ by प्रभुदयाल श्रीवास्तव
गुन गुन धूप तोड़ लाती हैं, सूरज से मिलकर आती हैं, कितनी प्यारी लगें पतंगें, अंबर में चकरी खाती हैं| ऊपर को चढ़ती जाती हैं, फर फर फिर नीचे आती हैं, सर्र सर्र करतीं करती फिर, नील गगन से बतयाती हैं| डोरी के संग इठलाती हैं, ऊपर जाकर मुस्काती हैं, जैसे अंगुली करे इशारे, इधर […]
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