कविता
तुम और मैं
/ by डा.सतीश कुमार
तेरा रूठना, मनना, मनाना, मनुहार करना, तेरे-मेरे रहने तक यूँ ही चलता जाए। ये हँसी-ठिठोली, तेरी सुमधुर बोली, तेरी ऐसी अदाएँ, मेरा मन-बदन सिहर जाए। तेरा आज भी मुझे कनखियों से यूँ देखना, मेरे देखते ही यूँ फेरना, मेरे गाल-कान सब लाल कर जाए। शरीर बूढ़ा भी हो पर मन नित-नूतन, जवान। तू प्रतिक्षण मेरे […]
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