कविता

फ़ुर्क़त वो दिन भी लाएगी

फ़ुर्क़त वो दिन भी लाएगी
तू फिर से मिलने आएगी

दर्द कभी तो ठहरेगा ही
क्या जो साँस नहीं आएगी

नाज़ुक सी है शम्म-ए-मोहब्बत
हवा लगी तो बुझ जाएगी

भँवरा इक मँडरा तो रहा है
नादॉं कली खिल ही जाएगी

अभी तो है आगाज़-ए-मोहब्बत
अभी अदा सारी भाएगी

उठा है पर्दा अभी तो रुख़ से
अभी तो वो चिलमन ठाएगी

ख़ुशियाँ जैसे बर्फ़-ए-हथेली
पानी बनके बह जाएगी

भाग गई है बेटी घर से
माँ जो सुनेगी, मर जाएगी

फ़िक्र यही औलाद को लेकर
ग़रीब रही तो दुख पाएगी

ऊँट चढ़े को कुत्ता काटे
ये क़िस्मत क्या-क्या खाएगी

‘राज’ चलो कुछ कदम चलें हम
व्यर्थ नहीं मेहनत जाएगी

डॉ राजपाल शर्मा ‘राज’