खेत-खलिहान

बदहाली के बीच खुशहाली- गुजरात की कृषि क्रांति

-रमेश कुमार दुबे

एक ऐसे दशक में जब देश भर में कृषि की विकास दर 2 से 2.5 फीसदी के बीच उलझी हुई हो उसी दौरान गुजरात में राष्‍ट्रीय औसत से तीन गुनी कृषि विकास दर चमत्‍कृत करती है। उम्‍मीद है कि आने वाले समय यह दर नौ फीसदी वार्षिक हो सकती है। अब तो हरित क्रांति के अगुआ रहे पंजाब और हरियाणा के किसान भी गुजरात के किसानों की ओर देख रहे हैं। वह भी गुजरात के किसानों की खुशहाली के राज को जानना चाहते हैं। देखा जाए तो आजादी के बाद से ही देश में उद्योग व सेवा क्षेत्र की तुलना में खेती-किसानी को कम महत्‍व मिला, लेकिन 1991 में शुरू हुई उदारीकरण की नीतियों ने तो खेती-किसानी को बैकफुट पर ला दिया। सरकार भी उद्योग-निर्माण-सेवा क्षेत्र के लिए जहां 10-12 फीसरी वृद्धि का लक्ष्‍य बनाती है वहीं कृषि क्षेत्र में यह आंकड़ा चार फीसदी से आगे नहीं बढ़ पाता। यही कारण है कि सकल घरेलू उत्‍पाद(जीडीपी) में कृषि की हिस्‍सेदारी तेजी से घटी और अब तो यह 16 फीसदी ही रह गई है। जिस देश में खेती-किसानी की यह दशा है उसी देश के गुजरात जैसे अर्द्धशुष्‍क राज्‍य ने कृषि में चमत्‍कार कर दिखाया है। उद्योग, व्‍यापार के साथ-साथ गुजरात की इस उपलब्‍धि के पीछे एक के बाद एक उठाए गए ठोस कदमों की मुख्‍य भूमिका रही है।

सबसे पहले गुजरात ने कृषि उपज विपणन नीतियों में फेरबदल किया और किसानों को छूट दे दी कि वे अपनी उपज को निजी व्‍यापारियों को बेच सकते हैं। इससे किसानों की बाजार तक सीधी पहुंच बनी। गुजरात सरकार ने कृषि क्रांति के लिए दूसरा कदम 2003-04 में कांट्रेक्‍ट फार्मिंग को अनुमति देकर उठाया। एक असाधारण कदम उठाते हुए सरकार ने किसानों को एक वर्ष पहले ही उपज बेचने की अनुमति दे दी। इससे किसानों को आय बढ़ाने और न्‍यूनतम कीमत पाने की गारंटी मिल गई। इसमें यह प्रावधान भी किया गया कि यदि उपज के समय कीमतें बढ़ती हैं तो खरीदारों को अधिक भुगतान करना पड़ेगा। इससे बाजार के जोखिम कम हुए और कंपनियां भी कृषि क्षेत्र में निवेश के लिए आगे आने लगी।

पिछले एक दशक में गुजरात ने कृषि विस्‍तार सेवाओं पर काफी ध्‍यान दिया। प्रयोगशाला से भूमि तक की कड़ी को मजबूत बनाया गया। 2005 में सरकार ने किसानों की पहुंच बढ़ाने के लिए हर साल एक महीने का कृषि महोत्‍सव आयोजित करने का निर्णय लिया। प्रत्‍येक जिलें में होने वाले इस महोत्‍सव में किसान, सरकारी अधिकारी, विक्रेता, कृषि वैज्ञानिक और मंत्री भी भाग लेते हैं। इससे सभी 18,600 गांवों के किसानों लाभ मिला। मोदी ने खुद किसानों की शिकायतों पर नजर रखी जिससे किसानों को आगे बढ़ने में काफी मदद मिली।

गुजरात में सिंचाई सुविधाओं के लिए बड़े बांधों को केंद्र में रखकर नीतियां बनाई जाती थी लेकिन इसके लाभ सीमित थे। इससे राज्‍य के एक छोटे क्षेत्र में ही सिंचाई सुविधा दी जा सकी। नहरी सिंचाई भी गुजरात की कृषि आवश्‍यकताओं को पूरी नहीं कर पाई। फिर बड़े बांधों व नहरों से सिंचाई सुविधा हासिल करने में लागत बहुत आधिक आती थी जबकि सिंचित क्षेत्र मामूली रूप से बढ़ता था। इसी को देखते हुए गुजरात सरकार ने जल संरक्षण और सिंचाई की आधुनिक विधियों के उपयोग की रणनीति अपनाई। भूजल प्रबंधन पर सर्वाधिक बल दिया गया और वर्षा की प्रत्‍येक बूंद को संग्रह कर उसे सिंचाई के काम में लाने का निर्णय किया गया। इस रणनीति को अभूतपूर्व सफलता मिली। इससे अनुपजाऊ भूमि उपजाऊ बनी और उत्‍पादकता बढ़ने से किसानों को लाभ होने लगा।

2001 से 2006 तक पूरे गुजरात में रोक बांध(चेक डैम) बनाने का अभियान चलाया गया। इस दौरान दो लाख से अधिक रोक बांध बनाए गए। इससे वर्षा जल के भूजल बनने के रास्‍ते खुले। इसका परिणाम यह हुआ कि भूजल स्‍तर में वर्ष दर वर्ष बढ़ोत्‍तरी होने लगी। सरकार ने किसानों को दी जाने वाली बिजली में भी सुधार किया। सब्‍सिडी वाली बिजली मिलने से किसान बिजली बचाने के प्रति प्राय: अनिच्‍छुक बने रहते थे। बिजली की चोरी भी सामान्‍य बात थी। इससे न तो किसानों और न ही उद्योगों को पूरी बिजली मिल पाती थी। ऐसे में सरकार ने तय किया कि किसानों को कम से कम चार घंटे की अबाध बिजली आपूर्ति दी जाए। यह बिजली आपूर्ति रात को हुई। रात को बिजली मिलने के कारण किसान तीन फेस पर अपनी मोटर चला सके जिससे उनका डीजल का खर्चा बचा। इस प्रकार दिन के समय उद्योगों को बिजली आपूर्ति सुनिश्‍चित की गई और रात में किसानों को।

चूंकि बड़े बांधों व नहरों से अपेक्षित लाभ नहीं मिला था इसलिए सिंचाई के सूक्ष्‍म तरीके(माइक्रो इरीगेशन) अपनाने की रणनीति अपनाई गई। इसके लिए गुजरात ग्रीन रिवोल्‍यूशन कंपनी की नींव रखी गई। इस कंपनी ने दुहरी रणनीति अपनाई। इसने अपनी सब्‍सिडी योजनाओं का लाभ बड़े-छोटे सभी किसानों को दिया। इसकी वजह यह रही कि बड़े किसान नए प्रयोगों को अपनाने से नहीं हिचकते हैं। उसके बाद छोटे किसान भी उनका अनुसरण करते हैं। दूसरे, कंपनी ने सब्‍सिडी के नियमों को सख्‍त बनाया और माइक्रो इरीगेशन तकनीक उपलब्‍ध कराने वाली कंपनियों के लिए यह अनिवार्य कर दिया कि वे कृषि विस्‍तार सेवाएं भी उपलब्‍ध कराएंगी और अपने यहां कृषि विशेषज्ञों(एग्रोनामिस्‍ट) की नियुक्‍ति करेंगी। इससे माइक्रो इरीगेशन से संबंधित कई कंपनियों के व्‍यापार पर असर पड़ा। एक कंपनी का मार्केट शेयर 80 से घटकर 20 फीसदी रह गया जबकि एक इजराइली कंपनी का मार्केट शेयर 10 से बढ़कर 60 फीसदी हो गया। इससे कंपनियां विस्‍तार सेवा देने के लिए बाध्‍य हुईं जिसका लाभ कृषि क्षेत्र को मिला।

गुजरात का माइक्रो इरीगेशन की ओर उठाया गया कदम काफी महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि राज्‍य के 95 लाख हेक्‍टेयर कृषि भूमि का मात्र 37 फीसदी ही नहर या नलकूप सिंचित है बाकी बारिश के भरोसे। सरकार की योजना है कि भविष्‍य में उन्‍हीं किसानों को बिजली के कनेक्‍शन दिए जाएंगे जिनके पास माइक्रो इरीगेशन सुविधा होगी। इसका कारण है कि इस सुविधा में पानी को पौधों की जड़ों में जरूरत भर का दिया है जिससे पानी की बर्बादी नहीं होती और वह सभी को सुलभ होता है। फिर इससे उत्‍पादकता में भी बढ़ोत्‍तरी होती है। उदाहरण के लिए वर्षाधीन क्षेत्रों में कपास की प्रति एकड़ उत्‍पादकता तीन से चार क्‍विंटल है जो कि नलकूप-नहर से सिंचित क्षेत्र में आठ से पंद्रह क्‍विंटल होती है। इसके विपरीत माइक्रो इरीगेशन पद्धति से सिंचाई करने पर कपास की उत्‍पादकता बीस से पच्‍चीस क्‍विंटल प्रति एकड़ तक होती है। इस प्रकार नलकूप-नहर सिंचित क्षेत्र की तुलना में माइक्रो इरीगेशन पद्धति से तीन गुना अधिक उत्‍पादकता हासिल हुई। इसके साथ ही किसानों का पानी, उर्वरक, कीटनाशकों पर होने वाला खर्च भी कम हो जाता है। माइक्रो इरीगेशन पद्धति अपनाने से कपास की भांति गेहूं, गन्‍ना, आलू, हरी मिर्च की उत्‍पाकता में अभूतपूर्व बढ़ोत्‍तरी हुई और किसानों की खुशहाली बढ़ी।