हिन्दी की गिनतियों को सरल बनाने, सुधार आवश्यक !

                        आत्माराम यादव वरिष्ठ पत्रकार

                संसार की प्रचलित भाषाओं का वर्गीकरण करें तो देवभाषा संस्कृत सभी की जननी है जिसके वंशानुगत अन्य सभी भाषाएँ सहित देवनागरी लिपि हिन्दी भी है। मनुष्यों के कुल गौत्र की भांति अगर भाषाओं को विभक्त करे तो हिन्दी, अँग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं के कुल, उपकुल, शाखाओं, उपशाखाओं तथा समुदायों में विभक्त कर समस्त भाषाओं की गणना एक कुल में की जाती रही है। ये कुल-उपकूल की शाखाओं में जैसे ईरानी, फारसी, ओर भारतीय आर्य भाषा है। ये सभी भाषाए कालचक्र की यात्राएं करते आ रही है इसलिए इन्हे प्राचीनकाल , मध्यकाल ओर आधुनिक काल में रखकर प्राचीनकाल में वेद उपनिषद आदि तथा मध्यकाल में पाली अशोक की धर्मलिपि की भाषा, साहित्यिक प्राकृत तथा अपभ्रंश आदि की बाद आज जो जातिगत सिंधी, उर्दू, बंगाली कन्नड, मलयाली, गुजराती, बिहारी, उड़िया, आसामी, ब्रज, बुन्देली आदि सभी भाषाए आधुनिक काल में हिन्दी अँग्रेजी के साथ प्रचलित है। इन सभी भाषाओं का सिरमोर हिन्दी है ओर अँग्रेजी राष्ट्र पर थोपी भाषा है। उसी प्रकार गिनती है जिसकी त्रुटियों में सुधार की आवश्यकता है, चुकीं गिनती की व्यापकता सार्वभोम है जिसका प्रयोग देश की सरकारों से लेकर वित्तीय संस्थानों के अलावा सभी जगह विशिष्ट व्यक्ति से लेकर जंगलों में रहने वाले वर्ग ओर समाज तक अपने-अपने ढंग से कामकाज चलाने के लिए उपयोग करते है, जो उनके लिए प्राथमिकता बनकर रह गयी है , जबकि सभी जानते है की हमारे पूर्वज गिनती ओर पहाड़े के सीमित  दायरे में जीते हुये अपने अनुभवों से सभी को नाकों चने चववा देते थे।

      देखा जाए तो आजादी के बाद भारत सरकार ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के स्थान पर राजभाषा घोषित कर संसद में 15 वर्षों में अंगेजी के स्थान पर हिन्दी का स्थान लिए जाने की बात कर विधान की धारा 351 के अनुसार सभी सरकारों पर हिन्दी ओर देवनागरी लिपि को विशेष प्रकार से उन्नयन करने का दायित्व लेने के बाद आज तक हिन्दी को उपेक्षित रखा है। जबकि तत्समय हिन्दी की गिनतियों में अनेक प्रकार की जटिलताओं को दूर कर गिनती को सरल ओर सहज बनाने के लिए परिवर्तन, संशोधन ओर परिवर्द्धनो के सुझाव भी हिन्दी सम्मेलनों के द्वारा रखे गए थे जिसमें अंग्रेजी ओर संस्कृत  भाषा की गिनतियाँ को आधार मानकर हिन्दी वर्णमाला की गिनतियों को समक्ष रखकर हिन्दी के धुरंधर एवं सुधारवादी विद्वानों के उस दिशा में सतत् प्रयत्नशील सुझावों को स्थान देना था। 16 जुलाई 1951 आषाढ़ की प्रतिपदा को प्रयाग में देश के मूर्धन्य साहित्यकारों- लेखकों ओर हिन्दी के मर्म विशेषज्ञों को लेकर हिन्दी सम्मेलन में तत्समय के डॉ॰एपी चतुर्वेदी,एमडी एमएसएच साहित्यरत्न के द्वारा हिन्दी गिनती को सरल बनाने के लिए प्रस्तुत सुझावों को सभी ने स्वीकारा था जो सुधार हेतु भारत सरकार के पास भेजा गया किन्तु तत्समय के विषय को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने वाले जिम्मेदारों ओर राष्ट्र के शिक्षा मंत्री के संज्ञान में लिए बिना इसे विस्मरण कर दिया गया ओर तब से अब तक हिन्दी की गिनती जो हम सभी के लिए सहज ओर सरल होनी थी, उसका लाभ से वंचित होने से यह गिनती अब तक जटिल बनी रही, जिसे सुधारा जाकर सरल बनाने से आने बाली पीढ़ियों को इसकी उपयोग लाभप्रद होगा जिससे इन्हे वंचित नही किया जाना चाहिए।

      आजादी के बाद हिन्दी की इन गिनतियों को बीते 8 दसक से जो शिशु-वर्ग के विद्याथियों के सम्मुख सुधार के बाद सहज ओर सरल रूप से पढ़ाया जा सकता था किन्तु दुर्भाग्य ही कहिए कि इसके लाभ से दो-तीन पीढ़िया वंचित रह चुकी है, परिणाम स्वरूप तब से अब यह हिन्दी गिनती सभी के लिए जटिल समस्या बन कर शिशुओं-बच्चो के कोमल मस्तिष्क के लिए एक भारी बोझ बनी, जिसे उन्होने स्वीकारा ओर सीखा। अगर देश की हिन्दी अकादमी जैसे अनेक संस्थाए जो हिन्दी को पोषित ओर संरक्षित करने पर अब तक करोड़ों रुपए खर्च कर चुकी है वे हिन्दी के शोध को महत्व देकर इन त्रुटियों की ओर गंभीरता से ध्यान देती  तो हिन्दी की गिनतियो को सुधारा जाकर इन गिनतियों को सहज बोधगम्य बनाया जाकर इसका ज्ञान विस्तारित किया जा सकता था, जिसके अभाव में अब तक जो अध्यापक मार-मार कर गिनती पहाड़े  रटाते रहे, उससे राहत मिल सकती थी , जो नहीं मिली है, अगर यह हमारे समक्ष उजागर हुई ही तो क्यों न हम इसमें सुधार कर इसे सार्वजनिक मान्यता देकर स्वीकार कर हिन्दी का मान सम्मान को प्राथमिकता से अंगीकार करे।

      आप हो या हम सभी ने अपने छात्र जीवन में कक्षा आठवी ओर उसके आगे की कक्षाओं में तथा उसके बाद आज भी हिन्दी की गिनती के इन अंकों 69 (उनहत्तर), 59 (उनसठ) ,89 (नवासी) ओर 79(उन्यासी) आदि गिनती का अन्तर नही समझ पाते और अधिकांश चूक कर बैठते है ओर 59 (उनसठ) को  69 (उनहत्तर) कहने की गलती करते है ठीक उसी प्रकार 79 (उन्यासी) को 89 (नवासी) या 69 (उनहत्तर)  को 59 (उनसठ)  ओर 89 (नवासी) को 79 (उन्यासी)  कहने की गलतिया दोहराई जाती है। जबकि संस्कृत ओर अंग्रेजी भाषा की गिनतियों की ज्यादा दिमाग पच्चीसी किए बिना कम समय में ओर रुचि लेकर इसे सभी लोग आसानी से सीख लेते है। आपको मेरी बातें भले मूर्खतापूर्ण लगे किन्तु यह आपको चिंतन करना ही है की इन दो भाषाओं को छोड़ हिन्दी की गिनतिया क्या इन दोनों भाषाओं की तुलना में कठिनाईपूर्ण ओर जटिल नहीं है ओर क्या इसमें भ्रम की स्थिति निर्मित होने से उसे समझने में समय लगने के साथ मन की लिए उलझाव जैसे स्थिति निर्मित नहीं होती है। आइए इनका विवेचन हेतु सूक्ष्मता को समझे ओर इसकी जटिलता ओर सरलता के भेद को जाने।

      अँग्रेजी ओर देवनागरी हिन्दी की गिनती के दहाई अंक का अंतर –

पहले हम आंग्लभाषा/अंग्रेजी ओर देवनागरी हिन्दी की तुलना कर अध्ययन करें तो एक से लेकर दस तक अर्थात दहाई के अंक तक की गिनती पर ध्यान दे तो ये  दोनों भाषाओ की गिनती समान रूप में चलती है, जिसमें गिनती पढ़ने वालों के समक्ष केवल नामकरण मात्र का अन्तर दिखाई देता है। जब दहाई के साथ इकाइयाँ मिलती है, तब उनके नाम-करण में  परिवर्तित होता दिखाई देता है मात्र 10 के बाद की दो गिनतिया  11 ओर 12 हिन्दी में नियमानु‌सार पायी जाती है। ग्यारह (एकादश) दस और एक के योग (10+1= 11) से बनता है, इसके नामकरण का वही नियम है जो कि आगे की गिनतियो का परिणाम होगा। हिन्दी में दहाई सूचक अंक बायी ओर तथा इकाई सूचक अंक  दायी ओर लिखा जाता है, किन्तु पढ़ते समय इकाई का उच्चारण पहले और दहाई का उच्चारण बाद में होता है, जैसे एकादस या ग्यारह में एक अर्थात् इकाई का उच्चारण पहले और दश या दहाई का ‘रह’ जो दश का ही अपभ्रश है, का उच्चारण बाद में होता है। उसी प्रकार आगे दहाई के साथ जब ओर इकाइया जा  कर मिलती है, तब भी उनके नामकरण में यही नियम कार्य करता है।

      अगर हम हिन्दी, अँग्रेजी ओर संस्कृत भाषा की गिनतियों के नाम अक्षरों में लिखे तो उनकी विशेषताओं एवं त्रुटियों पर ध्यान देकर उसे सुधारे तो इसपर बहुत काम किया जा सकता है। हिन्दी की गिनतियों को लिखे जाने का क्रम पढ़े जाने के क्रम से विपरीत है परंतु अँग्रेजी की गिनतियों 20 के आगे की सरल तथा उनके लिखने पढ़ने का नियम एक है जबकि हिन्दी की गिनतियों के नामकरण के नियम का कही कही अपवाद भी है जैसे 89, 99 में उसी प्रकार अँग्रेजी की गिनती में 11 से लगायत 19 तक  में यह अपवाद दिखाई देता है जिस नियम से अँग्रेजी गिनती चलती है या मान्यता प्राप्त है  उसके तहत 11 के स्थान पर एलेवन से नाईंटीन को व्यवस्थित करने के लिए सुधार की आवश्यकता है ओर जो प्रचलित है उसके स्थान पर टेनवन, टेनटू, टेनथ्री, टेनफोर, टेनकाइव, टेनसिक्स, टेनसेविन, टेनएट और टेननाइन के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए बाकी 20 ट्वेण्टी के आगे की सभी गिनतियां ज्यो की त्यो इसी नियम ओर तुक पर होने से इन अँग्रेजी गिनती में हुई यह त्रुटि को गंभीरता से विचार कर इनका सुधार किया जाना भाषागत सुगमता होगी ओर ये सभी गिनतिया श्रृंखलाबद्ध एवं व्यवस्थित रूप में हो जायेंगी, जो अभी परिलक्षित नहीं है।

      यही त्रुटि हिन्दी गिनतियों में भी परिलक्षित है जिसे सुधार की आवश्यकता है। उपर्युक्त परिवर्तित या विकृत रूपों का व्यवहार अब तक हम इन गिनतियों में  सरलता के ध्यान में न आने से करते आ रहे है। ग्यारह, इक + रह अर्थात् एक और दस का योग = ग्यारह जिसमें एक+ दस में ‘रह’ ‘दस’ का विकृत रूप है।  बारह =बा + रह अर्थात् दो और ‘रह’ या ‘दस’ का योग = बारह,  तेरह= ते + रह अर्थात् तीन और दस का योग = तेरह, चौदह – चौ + रह अर्थात चार ओर दस का योग चौदह , यही क्रम आगे भी जारी रहता है।यह हम हिन्दी गिनती पर ध्यानकर्षण चाह रहे थे अब अँग्रेजी गिनती की बात कर दुबारा आगे हिन्दी गिनती के क्रम पर बात की जायेगी। अब अँग्रेजी गिनती पर ध्यान दीजिये। हिन्दी के ग्यारह ओर बारह यौगिक है इनका अर्थ समझ लेने पर इन दोनों का स्वरूप समझ आ जाता है कि बारह में रह का संकेत दस ओर दो के योग स्वरूप बारह को अवश्य लिखा जा सकता है किन्तु अँग्रेजी में  Eleven एलेवन तो Twelve ट्वेल के विषय में समझने जैसा कुछ भी नहीं है बल्कि उसे याद करना पड़ता है बिना रटे कोई ओर चारा नजर नहीं आता है।  अँग्रेजी के ये शब्द एलेवन ओर ट्वेल एक परंपरागत रूढ़िवादी शब्द है इसे ग्रहण करना होता है। 12 के बाद हिन्दी ओर अँग्रेजी कि गिनती समान रूप से चलती है ओर अँग्रेजी कि गिनती में भी इकाई का नाम पहले ओर दहाई का नाम बाद में संबोधित किया जाता है। जैसे तेरह- थर्टीन 3+13, चौदह—फॉरटीन  4+10,  पन्द्रह-फिफ्टीन, 5+10, सोलह-सिकस्टीन 6+10, सत्रह-सेवेंटीन 7+10, अठारह-एटटीन 8+10, उन्नीस –नाइनटीन 9+10 ओर बीस- ट्वन्टी। यहा ध्यान देने वाली बात यह है कि 13 से 19 तक इन दोनों भाषाओं की गिनती एक ही नियम पर समान चलती है, किन्तु उन्नीस के बाद इन गिनतियों के रास्ते अलग अलग हो जाते है। 

      अग्रेजी में जब दहाई के साथ ‘9’ नामक इकाई मिलती है, तब उसका नामकरण उसी नियम के अनुसार होता है जैसा कि अन्य इकाइयों के संयोग  पर हुआ करता है। हिन्दी मे ‘9’ अंक जब किसी दहाई से मिलता है तब इसका नाम आगामी दहाई 10 +9= उन्नीस होकर उन शब्द लग जाता है। देंखे -20+9= उनतीस अर्थात तीस मेँ एक कम, 30+9= उनतालीस अर्थात चालीस मेँ एक कम (जिसे त्रुटिवश ऊंचालीस भी प्रयोग करते है) 40+9= उनचास अर्थात आगामी सख्या 50  में 1 कम कम, 50+9= उनसठ अर्थात् आगामी संख्या 60  में 1  कम, 60+9= उनहत्तर अर्थात् आगामी संख्या 70  में 1  कम, 70+9= उन्नासी- आगामी सख्या 80  में 1  कम, इन अंकों का प्रयोग एक नियम से किया गया है किन्तु यह नियम आगे दिखाई नही देता है जैसे ही 80+9= नवासी  ओर 90+9= निन्यानवे ये दो अंको के योग में यह अपवाद रूप में खड़ा होता है ओर इनसे मेल नहीं खाता है।  अगर हिन्दी की गिनती में अँग्रेजी के सामान नियम लागू होकर 19, 29, 39, 49, 59, 69, 79, 89 ओर 99 अपवाद रूप लिए सरल ओर सहज हो जाती तो बच्चों के लिए बोधगम्य होने से उनको पढ़ने समझने के साथ हम सभी को पढ़ने में आनंद आता। यहाँ अगर हम इन गिनतियों में सुधार-बदलाब या परिवर्तन का निर्णय ले तो  उन्नीस के पूर्ववर्ती क्रमानुसार सत्रह, अठारह के की शैली या तुक  पर उन्नीस के स्थान पर नौरह, सत्रह अठारह की शैली में,  उनतीस के स्थान पर नौविस सत्ताईस,अट्ठाईस के क्रम के बाद  उनतालीस के स्थान पर नौतीस सेतीस-अड़तीस के क्रमानुबाद, उनचास के स्थान पर नौतालिश संतालीस, अटतालीस के तुकपर उनसाथ के स्थान पर नोवन, उनहत्तर के स्थान पर नौसठ, उन्नासी के स्थान पर नौहत्तर किया जाता तो लिखने पढ़ने में सुविधा होती ओर यह सुधारात्मक गिनती आने आप में सभी को सरल सहज होने से जल्द स्मृति मे आती जो कठिनाई अभी उठानी पड़ रही है लेकिन हम उसके अभ्यस्त होने से आभास नहीं कर पा रहे है ।   

अँग्रेजी ओर देवनागरी हिन्दी की गिनती के 20 के बाद वाले अंकों का अंतर –

      आप अँग्रेजी भाषा में 20 के बाद की गिनतियों पर ध्यान देंगे तो यह आपको बहुत ही सरल, सुबोध ओर सुविधाजनक प्रतीत होने से सुंदर तो आभास होगी ही वही इसकी बोधगम्यता आपको आकर्षित करेगी।  यही कारण है की अँग्रेजी में 20 के बाद की गिनतियों को आप कम समय में हंसी खुशी के याद कर लेते हो ओर शिक्षकों के लिए यह माथापच्चीसी की नही अपितु खुशी का अनुभव देती है की इसे पढ़ाने में बच्चों के समक्ष ज्यादा मेहनत नहीं करना होता ओर वे कम परिश्रम से रट ली जाती है। इन गिनतियों को लिखने ओर पढ़ने में एक ही तर्क , एक ही कसौटी चलती है जिसमें दहाई के अंक का प्रथम तथा इकाई के अंक उसके बाद  पढ़े जाने का नियम चलता है। जैसे 25 में ट्वन्टी पहले फिर फाइव बाद में लिखा जाता है यही क्रम 21 से लगायत 29 तक ट्वन्टी पहले ओर बाद में नाइन तक का प्रचलन है जो इसी प्रकार लिखे पढ़े जाते है। यही क्रम 30 के बाद 31 से 39 तक देखिये जिसमें थर्टी  पहले ओर वन से नाइन तक बाद में जोड़े जाकर थर्टी वन, थर्टी टू  का लगायत थर्टी नाइन तक, फ़ौरटी के क्रम में फोरटी वन से फॉरटी नाइन तक , 50 के बाद 59 तक फिफ्टी वन लगायत फिफ्टी नाइन तक, 61  से 69 तक, 71 से 79 तक, 81 वन से 89 तक ओर नब्बे के बाद 91 से 99 तक यही क्रम चलता है जिसमें जिसमें दहाई के अंक का प्रथम तथा इकाई के अंक को उसके बाद पढ़े जाने का नियम है। जो कम समझदार व्यक्ति के लिए भी इस क्रम मे गिनती करना , लिखना, पढ़ना ओर समझना   बहुत ही सरल है जबकि हिन्दी वर्णमाला की गिनती इस नियम का कही पालन नहीं करती ओर कई जगह अपने दिशा ओर दशा से परे हटने से जटिल हो जाती है। 

      आप सरकारी स्कूल या निजी स्कूल के कक्षा एक के बाद की किसी भी कक्षा के छात्र से हिन्दी या अँग्रेजी की गिनतियाँ लिखकर पढ़वाइगा वे उन्हे यथा क्रम में पढ़ देगा आप चाहे 21, 31,41 या पेतालीस या उनसे अक्षरों मे लिखवाये, वे खुशी से लिख देंगे जितनी खुशी उन्हे अँग्रेजी की गिनती लिखने में होगी वे उन्हे 1 से 19 तक की गिनती छोड़ सरलता से लिख देंगे जिसे वे अनायास ही सीख लिए होते है। हिंदी की गिनती उनके लिए अटपटी लगती है जिसे सीखने में उन्हे समय लगता है ओर वह हिन्दी की गिनती याद करने में अक्सर आनाकानी करता है जबकि अँग्रेजी की गिनती उसे अपनी ओर आकर्षित करती दिखती है। अँग्रेजी की गिनती में दहाई टू, थ्री, फॉर ओर इकाई केलिए वन लिखने मे देरी नही करेगा । अंगेरजी स्कूल या कक्षाओं के छात्र अग्रेजी की गिनतियो में पूर्णत पारंगत होते है ओर हिन्दी की गिनतिया  सिखाना चाहे तो इन्हें सीखने में आनाकानी करता है और पढ़ने-लिखने से जो चुराता है। आपके पास सिवाय रटाने के और कोई चारा नहीं। यदि आप  उन्हे बता दे कि ‘9 ‘ के यौगिको के अतिरिक्त अन्य यौगिक अपने ही अंगों के नामानुमान पुकारे जाते हैं पर बोलने में इकार्ड प्रथम और दहाई बाद में कही जाती है जैसे 24 में ‘चो ‘ (चार का रूप) प्रथम और ‘बीस’ बाद में बोला जाता है किन्तु लिखने में दहाई प्रथम और इकाई बाद में लिखी जाती है जैसे पैतालीस में ‘तालीस’ (चालीस का रूप) के लिए ‘4’ दहाई पहले और 5  बाद में लिखा जाता है, तो भी बालक के लिए वे गिनतियों सहज साध्य नहीं हो सकती।

संस्कृत, हिन्दी ओर अँग्रेजी गिनती में अंकों का अंतर –

  संस्कृत देववाणी है ओर सभी भाषाओं की जननी है, इसलिए जगत को गिनती का प्रथम बोध भी इसी भाषा ने दिया है जिसमें देवनागरी हिन्दी को संस्कृत की धड़कन समझ सकते है। संस्कृत में 1 से 10 तक की  गिनती एकः , द्वितीयः, त्रयः, चत्वारः, पञ्च, षट्, सप्त, अष्ट, नव, दश, उसी क्रम में है जो देवनागरी हिन्दी में है, निश्चित ही हिन्दी की ये 10 तक की गिनतियाँ संस्कृत की छाया का प्रतिबिंब दिखती है किन्तु जहां हिन्दी में 11 से 19 तक गिनती बदली हुई है जबकि संस्कृत में एकादश,  से शतम तक में इकाई के स्थान पर दश से नवतिः तक का प्रयोग किया गया है ओर दहाई के स्थान पर एका से नव तक का इस्तेमाल किया गया है जो भाषा की गिनती की सुंदरता को प्रकट करता है। देखिये एकादश के बाद  द्वादश, त्रयोदश,  चतुर्दश, पञ्चदश, षोडश, सप्तदश, अष्टादश, नवदश, विंशति: , एकविंशति: , द्वाविंशति:, त्रयोविंशति:, चतुर्विंशतिः, पञ्चविंशति:, षड् विंशति: , सप्तविंशति:, अष्टाविंशति:  ,  नवविंशति:, त्रिंशत्, एकत्रिंशत्, द्वात्रिंशत्, त्रयस्त्रिंशत् , चतुस्त्रिंशत्,  पञ्चत्रिंशत् , षट् त्रिंशत् , सप्तत्रिंशत् , अष्टत्रिंशत् , नवत्रिंशत् , चत्वारिंशत् , एकचत्वारिंशत्, द्विचत्वारिंशत् , त्रिचत्वारिंशत्,  चतुश्चत्वारिंशत्, पञ्चचत्वारिंशत् , षट्चत्वारिंशत्, सप्तचत्वारिंशत् , अष्टचत्वारिंशत् , नवचत्वारिंशत्, पञ्चाशत्.तक लगातार यह नियम ओर क्रम जारी रहा है। जबकि अँग्रेजी भाषा ठीक इसके विपरीत है जिसमें इकाई के स्थान पर बड़ी संख्या ओर दहाई के स्थान पर 1 से 99 तक की संख्या का प्रयोग हुआ है। जो सहज सरल ओर बोधगम्य है बस अनतर इतना है अँग्रेजी गिनती में जो पहले आया है संस्कृत में बाद में आया है ओर देवनागरी लिपी हिन्दी की गिनती की तरह समानता दिखाई देती है ।  

      अँग्रेजी ओर संस्कृत भाषा की गिनती में एकाई ओर दहाई का प्रयोग बिलकुल एक दूसरी गिनती के विपरीत हुआ है ओर यह इन भाषाओं का नियम है । देखे – फिफ्टी वन  (Fifty-one) एकपञ्चाशत्,  फिफ्टी टू  (Fifty-two) द्विपञ्चाशत् , फिफ्टीथ्री  (Fifty- three) त्रिपञ्चाशत्,  फिफ्टी फोर,  (Fifty-four) चतुःपञ्चाशत् ,  फिफ्टी फाइव  (Fifty-five) पञ्चपञ्चाशत्, फिफ्टीसिक्स (Fifty-six) षट्पञ्चाशत्, फिफ्टी सेवन (Fifty-seven)  सप्तपञ्चाशत् , फिफ्टीएट (Fifty-eight) अष्टपञ्चाशत्, फिफ्टीनाइन  (Fifty-nine) नवपञ्चाशत्, सिक्सटी  (Sixty) षष्टिः ,सिकस्टीवन  (Sixty-one) एकषष्टिः, सिकस्टीटू (Sixty-two) द्विषष्टिः, सिकस्टी थ्री (Sixty-three) त्रिषष्टिः, सिकस्टी फोर  (Sixty-four) चतुःषष्टिः, सिकस्टी फाइव  (Sixty-five) पञ्चषष्टिः, सिकस्टी सिक्स  (Sixty-six) षट्षष्टिः, सिकस्टी सेवन (Sixty-seven) सप्तषष्टिः, सिकस्टीएट (Sixty-eight) अष्टषष्टिः, सिक्सटी नाइन  (Sixty-nine) नवषष्टिः, सेवेण्टी इसी प्रकार यह क्रम में अँग्रेजी गिनती में इकाई के बाद दहाई के अंको का क्रम जारी रहता है।(Seventy) सप्ततिः,71 (Seventy-one) एकसप्ततिः, 72 (Seventy-two) द्विसप्ततिः, 73 (Seventy-three) त्रिसप्ततिः,74 (Seventy-four) चतुःसप्ततिः, 75 (Seventy-five) पञ्चसप्ततिः,76 (Seventy-six) षट्सप्ततिः, 77 (Seventy- seven) सप्तसप्ततिः, 78 (Seventy- eight) अष्टसप्ततिः,79 (Seventy- nine) नवसप्ततिः, 80 (Eighty) अशीतिः, 81 (Eighty-one) एकाशीतिः, 82 (Eighty-two) द्वयशीतिः, 83 (Eighty-three) त्र्यशीतिः, 84 (Eighty-four) चतुरशीतिः, 85 (Eighty-five) पञ्चाशीतिः, 86 (Eighty-six) षडशीतिः, 87 (Eighty- seven) सप्ताशीतिः, 88 (Eighty-eight) अष्टाशीतिः, 89 (Eighty-nine) नवाशीतिः,90 (Ninety) नवतिः, 91 (Ninety-one) एकनवतिः, 92 (Ninety-two) द्विनवतिः, 93 (Ninety-three) त्रिनवतिः, 94 (Ninety-four) चतुर्नवतिः, 95 (Ninety-five) पञ्चनवतिः, 96 (Ninety-six) षण्णवतिः, 97 (Ninety- seven) सप्तनवतिः, 98 (Ninety-eight) अष्टनवतिः, 99 (Ninety-nine) नवनवतिः, 100 (One- hundred) शतम् स्पष्ट है इसमें बच्चो सहित सभी को पढ़ने में मात्र एकाई ओर दहाई के अंक के स्थान पर विपरीत बदलाब है किन्तु गिनतिया पढ़ने ओर लिखने में किसी भाषा में दहाई पहले तो किसी में बाद में है ओर किसी में इकाई पहले तो दहाई बाद में है परंतु इनका नामकरण  होने से यह सभी के लिए सुबोधओर सुलभ व बोधगम्य है । संस्कृत ओर अँग्रेजी में दहाई ओर इकाई के क्रम में एक दूसरे के विपरीत नामकरण किया गया है ओर बोलने पढ़ने लिखने में किसी में दहाई पहले तो किसी में बाद में प्रयोग हुई है ओर इसी प्रकार इकाई के साथ का नियम है। इसलिए नियमों में आबद्ध होने से अँग्रेजी के कुछ अंक अवबाद मान लिए जाए तो बाद के स्वरूप इन दोनों गिनतियों में सरल, होने से एकरूपता का आभास देता है।

      इन गिनतियों में तुलनात्मक अध्ययन के बाद जो नियमित ढंग से सुबोधता का आभास होता है ओर इसके अपवाद भी इस गिनतियों में परिवर्तित किए जाने अर्थात सुधार कर उपयोग किए जाने की आवश्यकता है वह हिन्दी की गिनतियों के लिए नवीन रूप में इस प्रकार होना चाहिए – एक, दो, तीन, चार, पाच, छ्ह, सात, आठ, नौ,दस के पश्चात दहाई ओर इकाई के क्रम में देवभाषा संस्कृत में है वैसे ही देवनागरी हिन्दी में होना चाहिए – देखे –दसएक,  दसदो, दसतीन,  दसचार,  दसपांच, दसछ, दससात, दसआठ, दसनौ,  बीस । बीसएक, बीसदो,  बीसतीन,  बीसचार, बीसपांच, बीसछ, बीससात, बीसआठ,  बीसनौ, तीस । तीसेक,तीसदो,तीसतीन,तीसचार,तीसपांच,तीसछ,तीससात,तीसआठ,तोसनौ,चालीस। चालीसेक, चालीसदो, चालीसतीन, चालीसचार, चालीसपांच,  चालीसछ,  चालीससात, चालीसआठ, चालीसनौ, पचास। पचासेक, पचासदों, पचासतीन, पचासचार,  पचासपाच, पचासछ,  पचाससात, पचासआठ, पचासनौ, साठ। साठेक, साठ्दो, साठतीन, साठचार, साठपांच, साठछ, साठसात, साठआठ, साठनो, सत्तर। सत्तरएक, सत्तरदो,  सत्तरतीन, सत्तरचार, सत्तरपाँच,  सत्तरछ, सत्तरसात,  सत्तरआठ, सत्तरनो , अस्सी। अस्सीएक, अस्सीदो, अस्सीतीन, अस्सीचार, अस्सीपाँच, अस्सीछ, अस्सीसात,अस्सीआठ, अस्सीनौ, नव्वे। नब्बेएक, नब्बेदो, नब्बेतीन, नब्बेचार,  नब्बेपाच, नब्बेछ,  नब्बेसात, नब्बेआठ,  नव्वेनो ओर  सौ । इस प्रकार सौ तक की गिनती के क्रम को देखा पढ़ा जाए ओर उनके इस नामकरण को स्वीकारा जाकर मान्यता दी जाए तो यह अत्यन्त सरल, स्वाभाविक, नियमबद्ध एवं एक श्रृखला में होंगे जो अँग्रेजी क्रम मे भी है।

आत्माराम यादव पीव

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