अब विमर्श मन बहे जमुन की ओर : यमुना नदी

2
237
यमुना नदी

विश्व सांस्कृतिक उत्सव के आकार, स्थल, शासन-प्रशासन की कर्तव्यपरायणता, नीति और नीयत को लेकर राष्ट्रीय हरित पंचाट के भीतर जो कुछ घटा, वह काफी कुछ पंचाट के आदेश से स्पष्ट है। एक बहस, पंचाट के बाहर अभी भी जारी है; मीडिया में, संसद के गलियारों में, राजनैतिक पार्टियों के प्रवक्ताओं के बीच, श्री श्री के अनुयायियों के बीच, राष्ट्र प्रमुखों के बीच और आमजन के बीच।

एक बहस खेमेबाजी

यमुना नदी
यमुना नदी

दुखद है कि कुछ की बहस का लक्ष्य, मुद्दे को पार्टी बनाम पार्टी, कुंभ बनाम हज अथवा देश की छवि बनाने वाले बनाम बिगाङने वाले बनाने का दिखा। किसी ने कहा कि कुछ लोग, देश की छवि बर्बाद करना चाहते हैं। उनके अनुसार कुछ लोग हैं, जिन्हे एक हिंदू पुरुष द्वारा आयोजित यह भव्य आयोजन रास नहीं आ रहा है। किसी ने आयोजन स्थल के चुनाव का विरोध करने वालों को कांग्रेस का एजेंट करार दिया। कुछ ने कहा कि विरोध करने वाले अचानक कहां से आ गये। पूछ रहे हैं यमुना मंे इतनी बर्बादी हो गई, वे कहां थे ?

कुछ इस तर्क पर विरोध को नाजायज बता रहे हैं कि दिल्ली यमुना की भूमि पर अक्षरधाम, मेट्रो, खेलगांव समेत, मिलेनियम डिपो समेत कितना निर्माण पहले से है, उत्सव को तीन दिन का है; इससे क्या फर्क पङ जायेगा ? हमने यमुना के साथ पहले भी गलतियां की हैं। क्या सिर्फ इस आधार हमें आगे भी गलतियां करते रहने का लाइसेंस दे दिया जाना चाहिए ?

बहस यह भी चली कि भारत सरकार के लिए संस्कृति मंत्रालय द्वारा दिया 2.25 करोङ रुपये इस आयोजन विशेष के लिए दिए गये या अन्य के लिए ? बहस, निजी आयोजन में सेना व लोक निर्माण विभाग की भूमिका तथा आयोजकों द्वारा पंचाट के समक्ष बताये आयोजन खर्च को लेकर भी चली ??

एक बहस हमारे श्री श्री

कुछ ने कहा कि श्री श्री तो बहुत पहले से यमुना सफाई का काम करते रहे हंै, वह भला यमुना बिगाङ का काम कैसे कर सकता है ? बहस, श्री श्री के बयानों के सच-झूठ को लेकर भी चली और मलवा न डालने, पेङ न कटने, किसानों के समर्थन होने और फिर कई नदियों का पुनरो़द्धार करने व एंजाइम संबंधी उनके दावे को लेेकर भी।

एक खबर आई कि जमा की जाने वाली मुआवजा राशि को लेकर आयोजक सुप्रीम कोर्ट जायेंगे; फिर एक चैनल में पट्टी चलती दिखाई दी कि प्रवक्ता ने कहा है राशि जमा करेंगे। फिर पंचाट जैसी संवैधानिक संस्था के आदेश को गलत बताता श्री श्री का बयान आया। उन्होने कहा कि जब गलती ही नहीं की है, तो फिर जुर्माना क्यों दें ? फिर श्री श्री के इस बयान पर बहस चली कि वह एन जी टी द्वारा लगाया जुर्माना भरने की बजाय, जेल भरना पसंद करेंगे।

इस पर बहस यूं भी बेमतलब थी, क्योंकि सच यह है कि न तो श्री श्री और न ही आर्ट आॅफ लिविंग, इस आयोजन के वास्तविक आयोजक हैं और न ही पंचाट में दायर मामले में वास्तविक पक्ष। आयोजक और वास्तविक पक्ष… दोनो ही आर्ट आॅफ लिविंग से संबद्ध एक अन्य संस्था ’व्यक्ति विकास केन्द्र, नोएडा’ है। श्री श्री जानते हैं कि धनराशि जमा करने, न करने का श्री श्री पर सीधे कोई असर नहीं पङने वाला।

एक बहस विश्व सांस्कृतिक उत्सव

मेरा निजी निवेदन है कि बेहतर हो कि हम यह बहस किसी दल, व्यक्ति, संगठन अथवा संप्रदाय के पक्ष मंे खङे न होकर, यमुना नदी के पक्ष में खङे होकर करें।

यमुना नदी का पक्ष यह है कि विश्व सांस्कृतिक उत्सव के आयोजकों से गलती हुई है। स्थल का चुनाव और आयोजन का विशाल आकार-प्रकार, यमुना बाढ़ भूमि की बर्बादी का काम है। इसी आकलन के आधार पर पंचाट ने विश्व सांस्कृतिक उत्सव के आयोजकों पर भरपाई खर्च के रूप में प्रारम्भिक तौर पर पंाच करोङ रुपये जमा करने को कहा है। आयोजक को पूरा भुगतान कितना करना होगा, यह पंचाट द्वारा गठित प्रधान समिति द्वारा चार सप्ताह के भीतर भरपाई खर्च का वास्तविक अनुमान पेश करने के बाद पता चलेगा।

यह निष्कर्ष, पंचाट के आदेश से भी स्पष्ट है और तीन-तीन विशेषज्ञ रिपोतार्ज से भी। गौर करने की बात है कि पंचाट ने विश्व सांस्कृतिक उत्सव आयोजन को मंजूरी देकर आयोजकों को दोषमुक्त नहीं किया है। पंचाट नेे आयोजन पर रोक नहीं लगाने का आधार मुख्यतः याची द्वारा पंचाट से देर में संपर्क किया जाना बनाया है।

गौर करें कि यमुना नदी के पक्ष में खङे होकर ही न सिर्फ भारत के महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने आयोजन में अपनी उपस्थिति से इंकार कर दिया है, बल्कि अन्य राष्ट्र प्रमुखों ने मना कर दिया है। आर्ट आॅफ लिविंग के प्रवक्ता दिनेश घौङके के हवाले से मिली खबर यह है कि महोत्सव में किसी भी देश के राष्ट्राध्यक्ष नहीं आ रहे हैं।
आदेश से यह भी स्पष्ट है कि दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और दिल्ली विकास प्राधिकरण ने अपने कर्तव्य का निर्वाह नहीं किया। आदेश में पंचाट ने यह भी सवाल उठाया है कि क्या यमुना नदी का सरंक्षण और पुनरोद्धार, वन एवम् जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, जल संसाधन नदी विकास एवम् गंगा पुनरोद्धार मंत्रालय तथा दिल्ली सरकार की जिम्मेदारी नहीं है ? यमुना नदी का पक्ष यह है कि अब यह कैसे सुनिश्चित हो कि जिन पर हमारे पानी, पर्यावरण और नदियों की रक्षा-संरक्षा की शासकीय/प्रशासकीय जवाबदेही है, वे समय आने पर सोयें नहीं, बल्कि जागते रहे।

एक बहस हमारी यमुना

यमुना नदी का पक्ष यह है कि यह कैसे हो कि यमुना आजाद बह सके ? नदी की भूमि कैसे नदी के उपयोग की ही बनी रहे ? पंचाट ने दुष्प्रभावित हुए बाढ़ क्षेत्र को जैव विविधता पार्क में बदलने का आदेश दिया है। हालांकि यह आदेश असमंजस मंे डालता है। यमुना सत्याग्रह मामले में उपराज्यपाल द्वारा जारी स्थगनादेश (मोरेटोयिम) के मुताबिक तो खेलगांव प्रकरण के बाद बची शेष भूमि को जैव विविधता क्षेत्र में तब्दील किया जाना था। जैव विविधता क्षेत्र के रूप में तब्दील करने के लिए किसी एजेंसी की कहां जरूरत है ? हम यमुना का पीछा न करें; उसे नैसर्गिक छोङ दें। बीज बोने का काम चिङिया और हवा के झोंकें किया ही करते हैं। यदि स्थान, मानव हस्तक्षेप से सुरक्षित हुआ, तो जीव-जन्तु बसेरा कर ही लेंगे। क्या कोई अच्छे से अच्छा विकासकर्ता, प्रकृति से बेहतर जैव विविधता विकसित कर सकता है ?

गौर करें कि पिछले कुछ समय से किसानों की लीज का नवीनीकरण नहीं किया गया। अभी तहसीलदार की वसूली पर खेती जारी है। पंचाट ने कहा है कि बाढ़ क्षेत्र की तबाही व भरपाई खर्च का अनुमान आने के बाद उसे पंचाट द्वारा बताये अनुपात में दिल्ली विकास प्राधिकरण तथा आयोजकों को वहन करना होगा। प्राकृतिक संसाधनों के व्यावसायीकरण के विरोधियों की चिंता यह है कि क्या इसके जरिये, हम दिल्ली की यमुना मंे ’पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप माॅडल’ को प्रवेश देने जा रहे हैं ? किसानों की चिंता यह है कि क्या इसके जरिये खेती व चारागाह हेतु लीज नवीनीकरण की उनकी संभावना पर हमेशा के लिए रोक लगने का रास्ता तैयार हो रहा है ? यमुना की चिंता यह है कि क्या इस खुलते नये प्रवेश मार्ग के कारण इससे यमुना बाढ़ क्षेत्र में निजी के हस्तक्षेप की संभावना और नहीं बढ़ जायेगी ??

एक बहस हमारा कुंभ

पंचाट का आदेश आने के बाद, मुझे लगता है कि अब हमें इस विश्व सांस्कृतिक उत्सव विवाद की चिता छोङ, नदी संस्कृति में आते बिगाङ पर चिंतित होना शुरु चाहिए। विश्व सांस्कृतिक उत्सव को ’आधुनिक कुंभ’ कहने वालों का भारतीय कुंभ की असली अवधारणा, प्रयोजन, आस्था, विज्ञान और सादगी पूर्ण व्यवहार से परिचित करना चाहिए। बताना चाहिए कि हमारा असल कुंभ दिखावट और सजावट की बजाय, सादगी और संयम का पर्व था। हमारा असल कुंभ, सिर्फ स्नान का पर्व भी नहीं था। हमारा असल कुंभ तो अमृत और विष को अलग करने का मंथन पर्व था। हमारा असल कुंभ, धर्मसत्ता द्वारा राजसत्ता तथा समाजसत्ता के शिक्षण, परिमार्जन और नियमन का पर्व था।

हमारे कुंभ की सादगी जलवायु परिवर्तन रोकती थी। विश्व सांस्कृतिक उत्सव की भांति हमारी दैनिक जीवन शैली और निजी आयोजनों में जरूरत से अधिक दिखावट और सजावट, जलवायु परिवर्तन में कैसे सहयोगी होती है; हमें इस पर चिंतन करना चाहिए ?? अपव्यय और उपभोग कैसे घटे ? सादगी और संयम कैसे घटे ? जवाब हासिल करने के लिए क्या यह हमारी और भावी पीढ़ी की जरूरत का सबसे जरूरी प्रश्न नहीं है ?

एक बहस हमारा व्यवहार

क्या आपको नहीं लगता कि यही समय है। इसे अब और टाला नहीं जाना चाहिए। क्या उचित नहीं होगा कि हम अब यमुना की चिंताओं पर चिंतन को अपने व्यवहार रूप में बढ़ाने का काम तेज करंे ? मेरा निजी मत है कि यदि हम ऐसा कर सके, तो यह विश्व सांस्कृतिक उत्सव द्वारा यमुना भूमि चुनाव की गलती पर यमुना जिये अभियान समेत यमुना प्रेमियों की पहल के साथ-साथ पंचाट के फैसले की असल उपलब्धि होगी। भूलें नहीं कि यमुना, भारत की सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में से एक है।

2 COMMENTS

  1. एक बहस यह क्यों न हो कि ऐसे सांस्कृतिक समारोह से हासिल क्या हुआ? श्री श्री ने इतना बड़ा मेगा शो कर क्या दिखाने की कोशिश की ? यह कि विश्व में उनका कितना साम्रज्य है ?कितने उनके अनुयाई हैं?यदि वे इस मानव शक्ति को किसी जान हितकारी कार्य में लगाते कोई सामजिक सरोकार वाला कार्य करते इस सारे पैसे से वह बड़े से बड़ा प्रोजेक्ट चला कर दूसरे लोगों के समक्ष मिसाल देते तो शायद उनका दर्जा कहीं कई गुना ऊँचा होता अन्य लोगों , बाबाओं से वे बहुत ऊपर होते।
    यह मात्र एक शक्ति प्रदर्शन , समाचारों में बने रहने का प्रयास था हमें नहीं लगता कि इसके बाद विश्व संस्कृति में कोई नया आयाम आ जायेगा बेरोजगारी,भूख,बिमारियों से पीड़ित जनता के लिए श्री श्री कोई रोजगार का साधन जुटाते , निर्धनता से निपटने का कोई विकल्प देते, स्वस्थ्य के लिए कोई सुविधाएँ जरूरतमंदों के क्षेत्रों में उपलब्ध कराते तो लोगों के निकट भी पहुँचते और समाज का होता लेकिन उन्होंने यह रास्ता नहीं चुना , वे भी हाई प्रोफाइल सोसायटी में बने रहना पसंद करते हैं वह मीडिया में भी
    इसके अलावा तो मुझे कोई उपलब्धि नजर नहीं आती और इस पर बहस क्यों नहीं की जाती

    • आदरणीय महेंद्र जी

      सुझाव के लिए आभार.

      आपके सुझाव में छिपी चिंता जायज़ है. मैं कुछ घटनाओं – दुर्घटनाओं का आकलन समय स्वयं पेश कर देता है. प्रत्येक देशवासी की ऊर्जा अमूल्य है. आपकी चिंता के समाधान की पहल तो टुकड़े-टुकड़े में हो सकती है, किन्तु टुकड़ा – टुकड़ा आकलन करने में हमारा और समय जायेगा.
      इसके स्थान पर अब ज़रूरी मालूम होता है कि चहुँ ओर हो रही हमारी चारित्रिक गिरावट के कारणों का समग्र विश्लेषण और समाधान की राह चलने की चल रही कोशिशों को गति देने में हम अपना योगदान दें.
      आपका अरुण

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress