कविता

एक छात्र की जिज्ञासा ?

हे आजाद भारत के माता पिताओं

क्या है हम ? हमें तुम बताओ ?

भेजा है जबसे स्कूल में आपने

दबाते है किताबों के बोझ हमें आप में ।

किकर्तव्यमूढ़ पंक्तिबद्ध प्रार्थनाएँ हम गाते है

अनभिज्ञ है हम, कभी समझ नहीं पाते है ।

स्कूलों में जब भी , हम अव्वल नंबर आते है

आदर्श और उसूलों का, तब मेडल हम पाते है ।

अंजान असंख्य सवालों को लिए कब

शून्यवत हम खड़े हो जाते है ।

आश्चर्य तब ! जब बच्चों से हम जवान हो जाते है

तब मन में एक प्रश्न बाकी रह जाता है

क्या आदर्श और उसूलों का जीवन, ऐसा जिया जाता है?

जहाँ-

अशांति,अतृप्ति और जडता का,

मानव जीवन असमता का

विषधर आस्तीनों में पलते है

जिनके अदृश्य विषैले दांतों ने

निगला है सत्य ओर धर्म को

पीव उन के करकमलों से

हम सम्मानित हो नहीं थकते है ।

आदर्श और उसूलों का जहाँ

नित वस्त्र हरण किया जाता है

भ्रष्टाचार और अराजकता का

नित चरित्र वर्णन किया जाता है

अनीति और अधर्म

सत्य,धर्म और निष्ठा को सम्मानित करते है

चाटुकारिक और कूटनीतिज्ञ

पीव इसे उद्घाटित कर नही थकते है ।

हे आजाद भारत के माता पिताओं

क्या यही था आजादी का स्वप्न, हमें तुम बताओं॥

आत्‍माराम यादव पीव