गज़ल:ज़िन्दगी बहता पानी है–सतेन्द्रगुप्ता

ज़िन्दगी बहता पानी है ,बहने दो उसे

अपना रास्ता ,ख़ुद ही ढूँढने दो उसे।

बिना लहरों के समन्दर फट जायेगा

जी खोल कर के ही, मचलने दो उसे।

नदी के अन्दर भी, एक नदी बहती है

रफ़्ता रफ़्ता समंदर से मिलने दो उसे।

घर किनारे टूट करवरना ढह जायेंगे

उफ़न कर, कभी न बिखरने दो उसे।

चाँद को भी जरूरत होती है चाँद की

अपनी चांदनी को ख़ुद चुनने दो उसे।

वक्त आदमी को काट ही डालता है

कभी, तन्हाइयों में न कटने दो उसे ।

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