जिन्होंने छोड़ा अपना देश ,
उनमें से बहुतों ने छोड़ी,
अपनी भाषा अपना वेष।
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जो रहते अपने ही देश,
उनमें से भी युवा जनों ने,
भाषा छोड़ी,त्यागा वेष।
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भाषा संस्कृति की संवाहक,
वेष देश का है परिचायक।
भाषा ही तो अपनी निधि है,
उस पर ही निर्भर संस्कृति है।
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दोनों का संरक्षण यदि हो जाए,
तो देश का गौरव भी बढ़ जाए।
हम सब मिलकर करें प्रयास तो
भारत पुन: विश्वगुरु बन जाए।।
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– प्रो. शकुन्तला बहादुर