जिन्होंने छोड़ा अपना देश , उनमें से बहुतों ने छोड़ी, अपनी भाषा अपना वेष। ** जो रहते अपने ही देश, उनमें से भी युवा जनों ने, भाषा छोड़ी,त्यागा वेष। ** भाषा संस्कृति की संवाहक, वेष देश का है परिचायक। भाषा ही तो अपनी निधि है, उस पर ही निर्भर संस्कृति है। ** दोनों का संरक्षण यदि हो जाए, तो देश का गौरव भी बढ़ जाए। हम सब मिलकर करें प्रयास तो भारत पुन: विश्वगुरु बन जाए।। ०-०-०-०-० – प्रो. शकुन्तला बहादुर