मातृभाषा और मातृभूमि


जिन्होंने छोड़ा अपना देश ,
उनमें से बहुतों ने छोड़ी,
अपनी भाषा अपना वेष।
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जो रहते अपने ही देश,
उनमें से भी युवा जनों ने,
भाषा छोड़ी,त्यागा वेष।
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भाषा संस्कृति की संवाहक,
वेष देश का है परिचायक।
भाषा ही तो अपनी निधि है,
उस पर ही निर्भर संस्कृति है।
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दोनों का संरक्षण यदि हो जाए,
तो देश का गौरव भी बढ़ जाए।
हम सब मिलकर करें प्रयास तो
भारत पुन: विश्वगुरु बन जाए।।
०-०-०-०-०
– प्रो. शकुन्तला बहादुर

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भारत में उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में जन्मी शकुन्तला बहादुर लखनऊ विश्वविद्यालय तथा उसके महिला परास्नातक महाविद्यालय में ३७वर्षों तक संस्कृतप्रवक्ता,विभागाध्यक्षा रहकर प्राचार्या पद से अवकाशप्राप्त । इसी बीच जर्मनी के ट्यूबिंगेन विश्वविद्यालय में जर्मन एकेडेमिक एक्सचेंज सर्विस की फ़ेलोशिप पर जर्मनी में दो वर्षों तक शोधकार्य एवं वहीं हिन्दी,संस्कृत का शिक्षण भी। यूरोप एवं अमेरिका की साहित्यिक गोष्ठियों में प्रतिभागिता । अभी तक दो काव्य कृतियाँ, तीन गद्य की( ललित निबन्ध, संस्मरण)पुस्तकें प्रकाशित। भारत एवं अमेरिका की विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएँ एवं लेख प्रकाशित । दोनों देशों की प्रमुख हिन्दी एवं संस्कृत की संस्थाओं से सम्बद्ध । सम्प्रति विगत १८ वर्षों से कैलिफ़ोर्निया में निवास ।

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