मुख्यमंत्री कमलनाथ के बिगड़े बोल

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प्रमोद भार्गव
मध्य-प्रदेश के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री कमलनाथ ने स्थानीय बनाम बाहरी मुद्दा उछालकर ‘आ बैल मुझे मार‘ कहावत चरितार्थ कर दी है। कमलनाथ ने उद्योग संवर्धन नीति के तहत कहा है कि अब मध्य-प्रदेश में लगने वाले नए उद्योगों में 70 प्रतिशत नौकरियां स्थानीय लोगों को दी जाएंगी। कमलनाथ यहीं ठहर जाते तब तो यह मामला तूल नहीं पकड़ता, किंतु उन्होंने आगे बढ़कर यह भी कह डाला कि बिहार और उत्तर-प्रदेश के लोग यहां कि नौकरियां हड़प लेते हैं, नतीजतन स्थानीय नौजवान नौकरियों से वंचित रह जाते हैं। इस बयान के चर्चा में आते ही भाजपा एवं अन्य दलों के नेताओं ने कमलनाथ को आड़े हाथ लेते हुए उनसे माफी मांगने की गुहार लगाई है। भाजपा ने इसे विभाजनकारी बयान का दर्जा दिया है। भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने तो इस कथन को असंवेदनशील ठहराते हुए कमलनाथ को उनके मूल की याद दिला दी। उन्होंने कहा कि कमलनाथ खुद कानपुर में जन्में, उनकी पढ़ाई-लिखाई दून स्कूल और कानपुर के डीएवी काॅलेज में हुई। वे इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी के सहपाठी रहे और राजनीति के संस्कार उन्हीं से ग्रहण किए। मध्य-प्रदेश के छिंदवाड़ा से संसद बने और व्यापार पूरे देश में कर रहे हैं। बहरहाल कमलनाथ ने किसानों की कर्जमाफी के साथ जो सकारात्मक वातावरण रचा था, उसे इस बयान ने धुंधला दिया है। चूंकि कमलनाथ एक वरिष्ठ और वजनदार नेता है, इसलिए उनसे क्षेत्रवाद को हवा देने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। बावजूद उन्होंने वहीं किया जो क्षेत्रवाद के आधार पर पिछले कुछ समय से महाराष्ट्र , गुजरात और कर्नाटक में देखने में आता रहा है।
दरअसल इस बयान से ऐसा लगता है कि अभी कमलनाथ को स्थानीय नीतियों का पूरा ज्ञान नहीं है। मध्य-प्रदेश समेत देश के अन्य प्रदेशों में स्थानीय लोगों को रोजगार में प्रधानता देने के प्रावधान पहले से ही है। उन्होंने भी अपने बयान में 70 फीसदी रोजगार स्थानीय लोगों को देने की बात कही है। जबकि शेष बचे जो 30 प्रतिशत रोजगार हैं, उन्हें अन्य प्रदेश के युवाओं से ही भरा जाना है। दरअसल यह बयान कुछ वैसा ही हो गया, जैसा कि महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों को लेकर राज ठाकरे जब-तब देते रहते हैं। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने भी एक बार दिल्ली में बढ़ते अपराधों के लिए बिहार के लोगों को उत्तरदायी ठहरा दिया था। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार से संविधान को खतरा बताते रहे हैं, जबकि अब उन्हीं की पार्टी के वरिश्ठ नेता ने भारत के संघीय ढांचे पर हमला बोलकर यह जाता दिया है कि बड़े नेताओं के अवचेतन में भी क्षेत्रीयता, भाषा , प्रांतवाद और धर्म से जुड़े पूर्वाग्रह कहीं गहरे पैठ बनाए हुए हैं। जबकि देश के हरेक नागरिक को देश में कहीं भी रहने और काम करने का संवैधानिक अधिकार हैं। इसीलिए आज बिहार और उत्तर-प्रदेश के लोग पूरे देश में काम कर रहे हैं। राजस्थान का मारवाड़ी वैश्य समाज और पंजाब के सिख भी समूचे देश और दुनिया में काम कर रहे हैं। यही नहीं, यहीं वे लोग हैं, जो जिस प्रांत में रह रहे हैं, उस प्रांत की अर्थव्यवस्था को भी गतिशील बनाए हुए हैं। देष में अकेला जम्मू-कश्मीर ऐसा प्रांत है, जहां अन्य राज्यों के लोग काम-धंधा नहीं कर सकते हैं। इसी कारण यह राज्य पिछले तीन दशक से आतंकवाद की चपेट में हैं और यहां हर रोज इंसानी खून से अलगाव की नई इबारत लिखी जा रही हैं। इस जड़ता का कारण यहां की जातीय और धार्मिक विविधता खत्म हो जाना ही है।
कमलनाथ का यह बयान इसलिए भी षर्मनाक है, क्योंकि वे कांग्रेस नाम के जिस अखिल भारतीय दल से जुड़े हुए हैं, वह कोई क्षेत्रीय दल नहीं है, इसलिए यह मानना बेमानी होगा कि कांग्रेस संकीर्णता की सोच प्रकट करे ? कमलनाथ को नहीं भूलना चाहिए कि मुख्यमंत्री की षपथ लेने के दौरान उन्होंने लगभग सभी क्षेत्रीय दलों के प्रमुखों को समारोह में आमंत्रित किया था। कांग्रेस के ऐसे प्रयासों को लोकसभा चुनाव के लिए महागठबंधन को अस्तित्व में लाने की भूमिका के रूप में भी देखा जाता रहा है। साफ है, कांग्रेस को आम चुनाव में सपा, बसपा, तेलगुदेषम और तृणमूल दलों के साथ ही लड़ना है। ऐसे में यह बयान भेदभाव को रेखांकित करते हुए गठबंधन की संभावनाओं को पालीता लगा सकता है।
एक समय षिवसेना से अलग होने के बाद राज ठाकरे ने महाराश्ट्र में अपनी स्वतंत्र राजनीतिक पहचान व स्थापना के लिए उत्तर भारतीयों को महाराश्ट्र से खदेड़ने की मुहीम ही चला दी थी। ऐसा उन्होंने मराठी भाशियों को लुभाने के लिए किया था। किंतु हम देख रहे हैं कि आज राज ठाकरे और उनकी महाराश्ट्र नवनिर्माण सेना हाषिए से भी नीचे चली गई है। कोई भी राश्ट्र या राज्य जब किसी क्षेत्र या व्यक्ति समुदाय के प्रति विषेश मोह, चिंता और केवल उसी के विकास को अहम् मानने लग जाता है तो वहां आंचलिक क्षेत्रवाद की परिणति जातिवाद, भाशावाद या सांप्रदायवाद में बदल जाती है। अतिवाद और अलगाववाद की आषंकाएं भी ऐसे ही कथित प्रयोजनों से पनपते हैं। नतीजतन संघीय भारत के खतरे में पड़ने की षंकाएं जताई जाने लगती हैं। क्योंकि भारत एक राश्ट्रीय ईकाई जरूर हैं, लेकिन उसमें अनेक सांस्कृतिक राश्ट्रीयताएं बसती हैं।
दरअसल क्षेत्रीयता सीमाई विभाजन के आधार पर समाज के एक वर्ग को दूसरे वर्ग के विरुद्ध खड़ा करती है। गोया, ऐसी राजनीतिक बयानबाजी सामाजिक समग्रता, समरसता और सांस्कृतिक-राश्ट्रीय चेतना को आघात पहुंचाने का काम करती हैं। चुनांचे, आजादी के 70 साल बाद भी हम ठीक से औपनिवेषिक मानसिकता से उबर नहीं पाए हैं। इसी कारण हम एक देष के रूप में राश्ट्रीय ईकाई होने के बावजूद हम पर क्षेत्रीय राश्ट्रीयताएं भाशावाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद एवं संप्रदायवाद अनेक रूपों में हावी हैं। नतीजतन जैसे ही किसी मुद्दे को हवा देने के उपक्रम षुरू होते हैं, वैसे ही क्षेत्रीय राजनीति के फलक पर विभाजन का संकट मंडारने लगता है। आंचलिक या स्थानीयता के इन्हीं उभारों के चलते षिवसेना, महाराश्ट्र नवनिर्माण सेना, तृणमूल कांग्रेस, गोंडवाणा गणतंत्र पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और हाल ही में अस्तित्व में आई सपाक्स पार्टी वजूद में आई है। दरअसल क्षेत्रीयता और जातीयता का उभार भी जन जगरण से जुड़ा होता है। लिहाजा इसी बहाने दलित और पिछड़े राजनीति के राश्ट्रीय फलक पर उभरे हैं। हालांकि भूमंडलीकरण के प्रभाव और बाजारवाद की आंधी में यह भ्रम होने लगा था कि स्थानीयता और जातीयता के मुद्दे कमजोर पड़ जाएंगे। वैष्वीकरण की उदारवादी आवधारणा में इनका विलोपीकरण हो जाएगा। पष्चिमी पूूंजीवाद जो एकरूपता रचने में लगा है, वह जैसे दुनिया के बहुलतावाद को खत्म कर देगा। हालांकि यह षंकाएं पूंजीवादी अर्थव्यवस्था ढहने के साथ ही स्वयं समाप्त हो गईं। पर भारत की आजादी के समय जो प्रष्न अनुत्तरित थे, वे कमोबेष आज भी अनुत्तरित ही बने हुए हैं। यही वजह है कि हमारे संवैधानिक पदों पर बैठे राजनेता गाहे-बगाहे ऐसे बयान दे जाते हैं, जो भेद की राजनीति को गहरा देते हैं। 1984 के सिख दंगों में भी उन्हें घेरने की कोषिष की जा रही है। लिहाजा कमलनाथ जैसे जिम्मेदार लोगों को ऐसे बिगड़े बोल, बोलने से बचना चाहिए, जो क्षेत्रीयता या जातीयता के आधार पर अलगाव का कारण बनें। बहरहाल 9 बार सांसद रह चुके कमलनाथ ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को अपने खिलाफ विभाजन की राजनीति खेलने के आरोप लगाने का ज्वलंत मुद्दा दे दिया है।

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