अक्षय खुद सोंचे क्या फिट क्या अनफिट है बॉस

विवेक कुमार पाठक
अभी कुछ दिनों पहले फेसबुक पर एक महानुभाव की पोस्ट पढ़ी। डॉलर अंडरवियर के विज्ञापन पर उन्होंने बेबाक टिप्पणी की थी। भारत कुमार के खिताब की ओर बढ़ रहे अक्षय कुमार का एक एड इस पोस्ट का विषय था। विज्ञापन में कस्टम ऑफिसर महिला अक्षय से पूछती है कि डॉलर कहां है अक्षय भी महिला ऑफिसर को उलझाने में शान समझते हैं। जब महिला तलाशी में कुछ नहीं पातीं तो पूछती है डॉलर कहां है अक्षय कुमार जवाब देते हैं डॉलर यहां है।बाद में ड्यूटी के दौरान ही महिला कस्टम ऑफिसर को अपने प्रति अनुरक्त बनाते हुए अक्षय कहते हैं फिटट है बॉस। अंदर भी बाहर भी। इस एड पर तीखी टिप्पणी थियेटर टीवी सिनेमा से जुड़े व्यक्ति ने ही की थी सो लगा कि उन्होंने विषय पर यूं ही टिप्पणी नहीं की है। इस उदाहरण मात्र से लगा कि तमाम विज्ञापनों में महिलाओं का आकर्षण कैसे बेचा जाता है इस पर तंज कसना चाह रहे थे।निसंदेह फिट है बॉस से बहुत ज्यादा अश्लील और भद्दे विज्ञापन अब तक टीवी पर आ चुके हैं और समय समय पर आते रहते हैं। इनमें से कई विज्ञापनों पर हालांकि सरकार ने रोक भी लगाई है। अमूल माचो अंडरवियर का विज्ञापन भी हद दर्जे का अश्लील विज्ञापन था।  विज्ञापनों की दुनिया में मैंस अंडरवियर से लेकर मैंस डियोड्रेंट और मेंस टैल्कम पाउडर एड आजकल बिना महिलाओं को आगे किए नहीं बनते । इन विज्ञापनों का नजरिया देखें तो अच्छा डियोड्रेंट पर अच्छा मैंस टेल्कम पाउडर वह है जो सबको नहीं केवल महिलाओं को मोहित कर दे। महिलाओं के जरिए विज्ञापन और उससे व्यापार के लिए सीमाओं का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। कोई फिल्म पारिवारिक है या व्यस्कों की फिल्म है उसे देश में सेंसर सर्टिफिकेट के जरिए देखना न देखना तय किया जाता है मगर विज्ञापनों के जरिए व्यस्क और अव्यस्कों के लिए दिखाई जा रही सामग्री में ये विभाजन कतई नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि सारे विज्ञापन केवल खराब और खराब ही बन रहे हैं। कई तरह के विज्ञापन गजब की रचनात्मकता के साथ टीवी पर खूब लोकप्रिय होते हैं। मानव जीवन में नौ रस हैं तो एड निर्माताओं पर अवसर हैं कि उन नौ रसों पर भी कभी कभी मजेदार एड बना दें। खुशी की बात है कि ऐसे एड बनते भी हैं। एक पंखे में ऑटोमेटिक एडजस्टमेंट का फीचर प्रचारित करने शानदार एड आया है। एक मृत व्यक्ति अपनी शोकसभा में बिना एडजस्टमेंट वाले पंखे के कारण उसे सही करने ताबूत के अंदर से उठ खड़ा होता है। वह उठकर पंखे को एडजस्ट करता है फिर ताबूत में वापस सो जाता है। इस विज्ञापन की पंच लाइन है एकबार सो गये तो सो गये। चुनाव के समय लोगों को वोट के लिए जाग्रत करने भी कई उत्पादों के एड तारीफ के काबिल हैं। इन विज्ञापनों का असर अगर हमारे दिलों दिमाग पर नहीं पड़ता तो फिर आखिर इनसे क्यों मतदान करने की अपील की जा रही होती। विज्ञापनों से अच्छे बुरे दोनों तरह के संदेश बहुत तेजी से करोड़ों दर्शकों के दिलों दिमाग तक पहुंचते हैं। कारवां का विज्ञापन बुजुर्गों से गानों के जरिए जुड़ने की बात कह रहा है। यह भावनाओं से भरा एड है। माता पिता का ख्याल रखने की बात करने वाला। किक्रेटर महेन्द्र सिंह धोनी भी एक बस बुकिंग एप के जरिए बस की वीआईपी सवारियों से दादागिरी को बंद करने की बात कह रहे हैं। ये वास्तव में बस स्टैण्डों पर दबंगों और वीआईपी लोगों की हकीकत बताने वाला विज्ञापन है। अकड़ और ऐंठ के साथ बसों में दादागिरी पर कटाक्ष करने वाला एड है। टीवी पर दाग अच्छे हैं एड श्रृंखला सर्फ एक्सेल की बेहतर पहल रही है। इसमें बुजुर्ग दादा दादी व नाना नानी के प्रति बच्चों का प्रेम चर्चित रहा है। अपने कपड़ां ंपर मिट्टी कीचड़ के दाग की परवाह न करते हुए दादी के दस रुपए उठाते देखना लोगों को अच्छा लगता है। हालांकि सर्फ एक्सेल के एक विज्ञापन पर हाल ही में विवाद खड़ा हुआ था। इस विज्ञापन के विषय पर हिन्दू संस्थाओं ने आपत्ति खड़ी की थी। विज्ञापन महीनों और मौसम के हिसाब से बदलते हैं। वे दीपावली की कई महीने पहले से डिस्टेम्पर तो रक्षाबंधन के समय उपहारों को हमारे सामने परोसते हैं। सर्दियों में कॉटसवूल्स तो गर्मियों में शीतल पेय शरबत और पंखों के विज्ञापन दिन भर टीवी पर होते हैं। हर विज्ञापन एक व्यवसायिक विचार के साथ टीवी पर होता है। अपने उत्पाद को बेचने के लिए वह हमारे मन में एक विचार छेड़ता है। भावनाओं से तार जोड़ता है और जो जितना सफल हो पाता है वह उतना कारोबारी लाभ कमाने मे कामयाब हो जाता है। नफा और नुकसान के इस सीधे गणित में फिट है बॉस जैसे विज्ञापन उन तमाम प्रतिबंधित विज्ञापनों जैसे तो नहीं हैं मगर देश के तमाम विचारवान नागरिकों को भाते भी नहीं हैं।  ऐसे विज्ञापनों पर ये आपत्तियां महिलाओं को लेकर एक अलग तरह की मानसिकता फैलाने के आरोप के साथ सामने आती हैं। तो डॉलर अंडरवियर बेचने का लक्ष्य लिए आज के भारत कुमार मतलब अक्षय कुमार इस पर विचार कर सकते हैं। उन्हें भी सोचना चाहिए कि क्या महिलाओं के भरोसे पुरुष अंडरवियर का कारोबार  क्या फिट है बॉस।

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