राजनीति

आप के ताप का महानायक अरविंद केजरीवाल

शादाब जफर ‘‘ शादाब’’

आम आदमी पाटी्रभ्रष्टाचार और कांग्रेस के खिलाफ आम आदमी के हित में छिडी जंग में अन्ना हजारे के पूर्व सारथी अरविंद केजरीवाल ने चंद दिनों में ही देश की तस्वीर बदल कर रख दी। सिर्फ एक साल में दिल्ली और देश की राजनीति में उथल पूथल मचा कर रख दी। यू तो अरविंद केजरीवाल अपने जीवन काल में शुरू से ही भ्रष्ट सिस्टम में सुधारात्मक बदलाव के पैरोकार रहे है। लेकिन जब से केजरीवाल ने देष और दिल्ली की राजनीति में सिर्फ अपने अकेले के दम पर पहली बार विधानसभा चुनाव में आम जनता को साथ लेकर देश के आम ईमानदार नागरिको को टिकट देकर भाजपा और कांग्रेस जैसी बडी पार्टियो के बीच पंद्रह सालो से दिल्ली पर राज करने वाली शीला दीक्षित को चैलेज कर के हराने के बाद 28 सीटी जीत एक ऐसा भूचाल मचाया है आज पूरा देश अरविंद केजरीवाल को सलाम कर रहा है वही वर्श 1993 में केजरीवाल के साथ फाउंडेशन कोर्स करने वाले आईएएस, आईपीएस और आईआरएस आज भी उन दिनो की चर्चा करते नही थक रहे है जब दोस्तो की टेबिल टॉक हो या सेमीनार पर बोलने का मौका उन के साथी कहते है कि अरविंद के चरित्र में देश में भ्रष्ट व्यवस्था परिवर्तन के एक सिपाही की छवि उस वक्त भी छलकती थी।

ये बात 1993 में 5 सितंबर से 24 दिसंबर के बीच की है जब लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमीनिस्ट्रेशन मंसूरी में आईएएस, आईपीएस और केंद्र सरकार की दूसरी सेवाओ के अधिकारियो का एक बैच फाउंडेशन कोर्स कर रहा था। केजरीवाल आईआरएस के लिये यहा बेसिक कोर्स करने गये थे। टेªनिग पीरियड में अरविंद केजरीवाल के करीबी अफसरो का कहना है कि उन के विचार उस वक्त भी बडे क्रांकारी थे। ये सब लोग आज केजरीवाल की सफलता के बाद कहते है कि कौन जानता था कि उनके साथ कोर्स करने वाला एक दुबला पतला नौजवान देश में भ्रष्‍टाचार के खिलाफ इतना जबरदस्त युद्ध लडेगा के सारा देश हिला कर रख देगा।

अरविंद केजरी के दिल में भ्रष्‍ट राजनीति और भ्रष्ट हो रहे राजनेताओ और अफसरो के लिये एक दशा और दिशा परिवर्तन की आग उन की जवानी की उम्र में ही धधक चुकी थी जिस पर वो धीरे धीरे काम करते रहे। ये उन्ही की सोच थी कि उन्होने अन्ना हजारे को महाराष्ट से उठा कर दिल्ली के जंतर मंतर और रामलीला मैदान के साथ ही देश ही नही विष्व के लोगो के दिलो में बैठा दिया। 2006 में उत्कृष्ट नेतृत्व के लिए रमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित अरविंद केजरीवाल ने भारत के सूचना अधिकार अर्थात सूचना कानून (सूका) के आन्दोलन को जमीनी स्तर पर सक्रिय बनाया, और सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह बना दिया। अरविंद केजरीवाल का जन्म 1968 में हरियाणा के हिसार शहर में हुआ और उन्होंने 1989 में आईआईटी खड़गपुर से यांत्रिक अभियांत्रिकी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। बाद में 1992 में वे भारतीय नागरिक सेवा (आईसीएस) के एक भाग, भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) में आ गए, और उन्हें दिल्ली में आयकर आयुक्त कार्यालय में नियुक्त किया गया। शीघ्र ही, उन्होंने महसूस किया कि सरकार में बहुप्रचलित भ्रष्टाचार के कारण प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है। अपनी अधिकारिक स्थिति पर रहते हुए ही उन्होंने, भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग शुरू कर दी। अरविंद ने आयकर कार्यालय में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए कई परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

जनवरी 2000 में, उन्होंने काम से विश्राम ले लिया और दिल्ली आधारित एक नागरिक आन्दोलन-परिवर्तन की स्थापना की, जो एक पारदर्शी और जवाबदेह प्रशासन को सुनिश्चित करने के लिए काम करता है। इसके बाद, फरवरी 2006 में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया, और पूरे समय के लिए सिर्फ ’’परिवर्तन’’ में ही काम करने लगे। अरुणा रॉय और कई अन्य लोगों के साथ मिलकर, उन्होंने सूचना अधिकार अधिनियम के लिए अभियान शुरू किया, जो जल्दी ही एक मूक सामाजिक आन्दोलन बन गया, दिल्ली में सूचना अधिकार अधिनियम को 2001 में पारित किया गया और अंत में राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय संसद ने 2005 में सूचना अधिकार अधिनियम (आरटीआई) को पारित कर दिया।

इसके बाद, जुलाई 2006 में उन्होंने पूरे भारत में आरटीआई के बारे में जागरूकता फ़ैलाने के लिए एक अभियान शुरू किया। दूसरों को प्रेरित करने के लिए अरविन्द ने अपने संस्थान के माध्यम से एक आरटीआई पुरस्कार की शुरुआत की है। सूचना का अधिकार गरीब लोगों के लिए और भ्रष्टाचार और भ्रष्ट रानेताओ और अफसरो पर पर नकेल कसने के लिये तो महत्वपूर्ण साबित हुआ। साथ ही आम जनता और पेशेवर लोगों के लिए भी यह उतना ही महत्वपूर्ण हुआ कि आज भी कई भारतीय सरकार के निर्वाचन की प्रक्रिया में निष्क्रिय दर्शक ही बने हुए हैं। अरविंद केजरीवाल ने सूचना के अधिकार के माध्यम से देश के प्रत्येक छोटे बडे अमीर गरीब नागरिक को अपनी सरकार से प्रशन पूछने की शक्ति दी अपने संगठन परिवर्तन के माध्यम से वे लोगों को प्रशासन में सक्रिय रूप से हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करते रहें। आरटीआई को आम नागरिक के लिए एक शक्तिशाली उपकरण बनने में लम्बा समय तो पर अरविन्द केजरीवाल ने देश की आम जनता अगर वाहे तो सब कुछ संभव हो सकता है।

6 फरवरी 2007 को अरविन्द को वर्ष 2006 के लिए लोक सेवा में सीएनएन आईबीएन ’’इन्डियन ऑफ़ द इयर’’ के लिए नामित किया गया। अरविंद ने सूचना अधिकार अधिनियम को स्पष्ट करते हुए गूगल पर भाषण दिया। 2 अक्टूबर 2012 को गांधीजी और शास्त्रीजी के चित्रों से सजी पृष्ठभूमि वाले मंच से अरविंद केजरीवाल ने अपने राजनीतिक सफर की औपचारिक शुरुआत कर दी। उन्होंने बाकायदा गांधी टोपी, जो अब ’’अण्णा टोपी’’ भी कहलाने लगी है पहनी थी। वो शायद वही नारा लिखना पसंद करते जो पूरे ’’अन्ना आंदोलन’’ के दौरान टोपियों पर दिखाई देता रहा ’’मैं अन्ना हजारे हूं।’’ पर कुछ उन्ही के दोस्तो ने अन्ना को उन के खिलाफ भडका दिया जिस के बाद अन्ना ने उन्हे अपना नाम और तस्वीर के इस्तेमाल की इजाज़त नहीं है। इसलिए उन्होंने लिखवाया, ’’मैं आम आदमी हूं।’’ उन्होंने 2 अक्टूबर 2012 को ही अपने भावी राजनीतिक दल का दृष्टिकोण पत्र भी जारी किया। राजनीतिक दल बनाने की विधिवत घोषणा के साथ उन्होंने कांग्रेस नेता सोनिया गाँधी जो नेहरू परिवार की उत्तराधिकारी और संप्रग की मुखिया हैं के दामाद रॉबर्ट वढेरा और भूमि-भवन विकासकर्ता कम्पनी डीएलएफ के बीच हुए भ्रष्टाचार का खुलासा किया है और बाद में पूर्व केन्द्रीय विधि मंत्री सलमान खुर्शीद और उनकी पत्नी लुई खुर्शीद के ट्रस्ट में हो रही धांधलियों के खिलाफ इन्होने जबरदस्त आन्दोलन छेडा जिस के बाद सलमान खुरर्शीद और उन की पत्नी लुईस खुरर्शीद की देश में बडी फजीहत हुई। उन्हे 2004, अशोक फैलो, सिविक अंगेजमेंट अवार्ड, 2005 में ’’सत्येन्द्र दुबे मेमोरियल अवार्ड’’, आईआईटी कानपुर, सरकार पारदर्शिता में लाने के लिए उनके अभियान हेतु उन्हे 2006 में उत्कृष्ट नेतृत्व के लिए रमन मेगसेसे अवार्ड,2006 में लोक सेवा में सीएनएन आईबीएन, ’’इन्डियन ऑफ़ द इयर’’ अवार्ड 2009 में, विशिष्ट पूर्व छात्र पुरस्कारो सम्मानित किया जा चुका है। यदि केजरीवाल इसी प्रकार देश में आम आदमी की लडाई लडते रहे और आम आदमी को दो वक्त की रोटी चैन और सुकून से मिलने लगी तो आने वाले वक्त में देश उन्हे प्रधानमंत्री पद से अगर नवाज दे तो इस में कोई आष्चर्य की बात नहीं।