पश्चिम बंगाल में वामपंथी आन्दोलन के पुरोधा माने जाने वाले ज्योति बसु को वामपंथी खेमा भावावेश में भले किंवदन्ती मान बैठे, पर ज्योति बसु की इकलौती संतान को इन सबसे कुछ लेना देना नहीं है। चन्दन ज्योति बाबू के इकलौते बेटे हैं। बचपन से ही उन्होंने अपने पिता को आन्दोलनों में हिस्सा लेते, गरीबों की तरफदारी करते और साम्राज्यवाद की मुखालफत करते और जेल आते-जाते देखा है। जेल जाने पर पिता के अभाव को भी चन्दन ने महसूस किया, पर उनपर वामपंथ का लाल रंग कभी नहीं चढ़ा। बंगाल के लाखों लोग ज्योति बाबू के मुरीद हुए होंगे, पर चंदन बसु को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जी हां, उन्हें अपने पिता की नास्तिकता से भी कोई लेना देना नहीं।
ज्योति बाबू ने सच्चे वामपंथी कैडर के नाते अपनी आंखें और पूरा देहदान करने की घोषणा कर दी थी। इस घोषणा के अनुरुप 17 जनवरी को दोपहर सवा एक बजे के आसपास ही उनके दोनों नेत्र निकाल लिए गए थे। सोमवार 18 जनवरी 2010 को ज्योति बाबू के इन नेत्रों नें दो जनों को दुनिया देखने का अवसर भी प्रदान कर दिया। ज्योति बाबू के नेत्र किन्हें मिले, इसकी घोषणा सार्वजनिक रूप से नहीं की जा सकती, क्योंकि ऐसा ही नियम है।
अब जहां तक उनके देहदान की बात है, राजकीय सम्मान के साथ मंगलवार, 19 जनवरी को उनका शव कोलकाता के विभिन्न अंचलों, मसलन, अलीमुद्दीन स्ट्रीट स्थित पार्टी भवन, राज्य सचिवालय राइटर्स बिल्डिंग-जहां मुख्यमंत्री बतौर वे लगातार 23 वर्षों तक रहे, विधानसभा भवन, जहां उन्होंने विधायक, विपक्ष के नेता, उपमुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री बतौर लम्बी पारी खेली, फेरी लगाने के बाद सेना के तोपों की सलामी के बाद सेठ सुखलाल करनानी मेडिकल अस्पताल (एसएसकेएम) पहुंचा दिया गया। अब कर्मयोगी ज्योति बसु का पार्थिव शरीर यहीं चिर विश्राम करेगा। यहां पहुंचाने के साथ ही पार्टी और सरकार की जिम्मदारियां पूरी हो गयीं। पर ज्योति बसु के बेटे चंदन ने इहलोक का अपना दायित्व निभाने का फैसला किया है। वामपंथी पिता ने भले देहदान किया है, चन्दन तो पूरा श्राद्धकर्म करेंगे।
इस बात पर तमाम वामपंथी भले पसर जाएं, पर चन्दन बसु ने बाकायदा हिन्दु रीति-रिवाजों के अनुसार अपने पिता का श्राद्धक्रम की 12 दिन चलने वाली प्रक्रिया शुरु कर दी है। इस बात की पुष्टि स्वयं चन्दन बसु की मौजूदा पत्नी राखी (चंदन की दूसरी पत्नी हैं राखी) ने की है। राखी ने जानकारी दी है कि चन्दन बंगाली परम्परा के अनुसार अपने पिता के मरणोपरान्त किए जाने वाले नियमों का पालन कर रहे हैं। वे नीचे बिछौने पर सो रहे हैं, भोजन अथवा आहार के नाम पर सिर्फ फल-फूल गहण कर रहे हैं। बंगाली परम्परा के अनुसार दो ईंटों के बीच पकाया जाने वाला आहार भी उन्होंने तैयार किया, साथ ही वे सिंधा नमक भी ग्रहण कर रहे हैं। वामपंथी पिता के देहदान के बावजूद चन्दन के इन कार्यों को प्रबुद्ध वर्ग गलत नहीं मानता। स्थानीय लोगों का कहना है, ज्योति बसु ने अपनी इच्छा से जो करना चाहा, किया, पर उनके बेटे का अपना धर्म है। उसे तो अपना कार्य करना ही चाहिए. बंगाल में मरणोपरान्त किए जाने वाले ऐसे धार्मिक क्रियाकर्मों को हव्वीशी कहा जाता है। इसके हिंसाब से चन्दन बाकायदा हब्बीसी कर रहे हैं।
वामपंथियों के एक खेमे को चन्दन के इन क्रियाकर्मों से परहेज है। नाम छिपाने की शर्त पर एक वरिष्ठ वामपंथी नेता ने कहा, ये सब बातें प्रेस में जाएंगी, तो बसु और पार्टी की बदनामी होगी। दुहराने की आवश्यकता नहीं कि धर्म और आस्था को लेकर माकपा महासचिव प्रकाश करात ने भी इसी सप्ताह उदारवादी रवैया अपनाने का संकेत दिया था। देखा जाए, आने वाले दिनों में वामपंथियों का नास्तिकवादी मुखौटा उतरता है, या नहीं? वैसे यहां बताया जा सकता है कि बंगाल की वाममोर्चा सरकार में कई मंत्री हैं, जो वामपंथी राजनीति करने के बावजूद ईश्वरीय सत्ता के समक्ष नतमस्तक होते हैं। इनमें सुभाष चक्रवर्ती सहित कई नाम हैं। पाठकों को याद होगा, ज्योति बसु के करीबी सहयोगी और उनके मंत्रिमंडल में वरिष्ठ मंत्री रहने वाले सुभाष चक्रवर्ती ने तीर्थस्थान तारापीठ में जाकर मां काली की आराधना की थी, जिसपर काफी बावेला हुआ था।
-प्रकाश चण्डालिया
“वरिष्ठ वामपंथी नेता ने कहा, ये सब बातें प्रेस में जाएंगी, तो बसु और पार्टी की बदनामी होगी।”
बड़े बड़े पूँजीपति ज्योतिबाबू का तारीफ में कसीदे कस कस कर थक नहीं रहे हैं, कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी और तमाम दक्षिणपंथी पार्टियाँ ज्योति बाबू को आला दर्जे का मुख्यमंत्री बताने में कोई कोर कसर नहीं रख रहीं, यह सब बात प्रेस में नहीं जा रहीं हैं क्या ? प्रेस ने जब उन्हें जीवन भर मार्क्सवाद के नाम पर पूँजीपतियों की सेवा करते देखा है तो अब यदि श्राद्धकर्म भी देखना पड़े तो इससे क्या फर्क पड़ता है।
दृष्टिकोण
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