खाने में कैसा शर्म

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NETAमिलन सिन्हा

कसमें वादे  निभायेंगे  न हम

मिलकर खायेंगे जनम जनम

 

जनता ने चुनकर भेजा है

चुन- चुनकर खायेंगे

पांच साल बाद खाने का कारण

विस्तार से उन्हें बतायेंगे

 

कसमें वादे  निभायेंगे  न हम

मिलकर खायेंगे जनम जनम

 

हीरा-मोती, सोना-चांदी तो है ही

बस थोड़ा  और रुक जाइये

जंगल,जमीन के साथ साथ

कोयला भी सब खा जायेंगे

 

कसमें वादे  निभायेंगे  न हम

मिलकर खायेंगे जनम जनम

 

छोड़ दिया जब लज्जा व शर्म

तब काहे का कोई  गम

जारी रहेगा यूँ ही खाने का खेल

फूटे करम तभी जाना पड़ेगा जेल

 

कसमें वादे  निभायेंगे  न हम

मिलकर खायेंगे जनम जनम

 

खाने का अब चल पड़ा एक सिलसिला  है

सचमुच,खाना विज्ञानं नहीं एक कला है

खाते- खाते लोग कहाँ – कहाँ पहुँच जाते हैं

क्या ऐसे पराक्रमी लोग कभी पछताते हैं ?

 

कसमें वादे  निभायेंगे न हम

मिलकर खायेंगे जनम जनम !

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