गजल

गजल:पैसे से रोग पाल के मग़रूर हो गया-इक़बाल हिंदुस्तानी

 हर शिकवा गिला आपसे जब दूर हो गया,

अब आपका हर फ़ैसला मन्ज़ूर हो गया।

 

अब तो वतन के वास्ते भी काम कुछ करो,

रहबर तुम्हारा काम तो भरपूर हो गया।

 

औरों के वास्ते तो बनाता रहा महल,

छत चाही सर पे तो मजबूर हो गया।

 

कमज़ोर पे सदा ही जो गुस्सा बिखर पड़ा ,

जब माफ़िया मिला तो काफूर हो गया।

 

तुमने पचास साल में नश्तर चुभोये हैं,

वो ज़ख़्म क्या भरोगे जो नासूर हो गया।

 

पैसा ना था ज़मीर था तो चैन से रहा,

पैसे से रोग पाल के मग़रूर हो गया।

 

ग़ैरों से पाये ज़ख़्मों का चर्चा मैं क्या करूं,

नश्तर चुभोना अपनों का दस्तूर हो गया।

 

लाखांे अदीब आज किताबों में बंद हैं,

कोई गले के काम से मशहूर हो गया।।

 

नोट- शिकवाः शिकायत,रहबरः नेता,काफूरः गायब,अदीबः साहित्यकार