गजल

गजल- मेरा तो घर जला दिया अच्छा नहीं किया

इक़बाल हिंदुस्तानी

तुमने हमें हरा दिया अच्छा नहीं किया,

सोये थे क्यों जगा दिया अच्छा नहीं किया।

 

सौदा तो कर लिया मगर कैसे टिकेगा ये,

रूठों को यूं मना दिया अच्छा नहीं किया।

 

खुद पर जो आंच आई तो हल्ला मचा दिया,

मेरा तो घर जला दिया अच्छा नहीं किया।

 

तुम तो अमनपसंद थे तुम भी बहक गये,

तुमने भी सर झुका दिया अच्छा नहीं किया।

 

उंगली कटाई आपने हमने कटाया सर,

फिर भी हमें भुला दिया अच्छा नहीं किया।

 

आधी सदी के बाद में सोकर उठे थे हम,

अपनों ने फिर सुला दिया अच्छा नहीं किया।

 

सदियां लगीं थीं देश से जाने में जिनको कल,

फिर से उन्हें बसा दिया अच्छा नहीं किया।

 

कुर्सी की कुश्तियों के खिलाड़ी तो एक हैं,

दुश्मन हमें बना दिया अच्छा नहीं किया।।