पारदर्शी चंदा, मुसीबत का धंधा   

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जब से वित्त मंत्री अरुण जेतली ने राजनीतिक चंदे को पारदर्शी बनाने की बात कही है, तब से कई दलों की नींद हराम है। यद्यपि जेतली ने अभी बस कहा ही है; पर सब जानते हैं कि जेतली ने कहा है, तो सरकार अंदरखाने जरूर कुछ तैयारी कर रही होगी। विपक्ष (और अधिकांश सत्तापक्ष) वालों की भी मानें, तो सरकार इस समय तीन लोग ही चला रहे हैं। ये हैं नरेन्द्र मोदी, अमित शाह और अरुण जेतली। इसलिए जेतली की बात यानि मोदी की बात। बस इसी से कई नेताओं और दलों की रातें करवट बदलते बीत रही हैं।

हमारे प्रिय शर्मा जी चुनाव में खड़े होने और हारने के लिए विख्यात हैं। चुनाव राष्ट्रपति का हो या गलीपति का, शर्मा जी वहां जरूर खड़े मिलेंगे। कोई बाहर खड़ा न होने दे, तो वे खाट पर ही खड़े हो जाते हैं। सड़क पर कोई उनकी बात न सुने, तो वे घर में ही प्रचार करने लगते हैं। उन दिनों बेचारी शर्मा मैडम को न जाने क्या-क्या झेलना पड़ता है।

चुनाव छोटा हो या बड़ा, बिना चंदे के नहीं लड़ा जाता। इसलिए अरुण जेतली के बयान से शर्मा जी कुछ ज्यादा ही दुखी हैं। कल मिले, तो बिना भूमिका के ही शुरू हो गये।

– वर्मा, तुम्हारे नेता गरीबों के पेट पर लात मार रहे हैं। ये मत भूलो कि लाखों लोगों के घर चुनाव के दिनों में ही ठीक से चूल्हा जलता है।

– मैं समझा नहीं शर्मा जी ?

– देखो वर्मा, भारत में चुनाव लोकतंत्र का महापर्व है। चुनाव के लिए राजनीतिक दल जरूरी हैं और दलों के लिए चंदा।

– पर मैंने सुना है कि कई दल चंदे के लिए ही अपना अस्तित्व बनाये हुए हैं। इसकी आड़ में वे अपना काला पैसा रातोंरात सफेद कर लेते हैं। चंदा बंद यानि उनका धंधा बंद।

– जिन्हें कभी चुनाव नहीं लड़ना, वे ही ऐसी बकवास करते हैं। जरा सोचो, चुनाव से कितने लोगों को काम मिलता है। झंडे और बैनरों से कपड़े बनाने और बेचने वाले के साथ ही दर्जी और पेंटर का भी पेट भरता है। चुनाव सभा में माइक, कुर्सी और शामियाने की जरूरत पड़ती है। प्रचार के समय नारे लगाने में हजारों बेरोजगार युवा खप जाते हैं। परचे और पोस्टर से कागज और स्याही वालों का कारोबार बढ़ता है। रात में अपने पोस्टर लगाने और दूसरे के फाड़ने में भी कई लोग लगते हैं। बड़ी रैलियों में ठेके पर स्त्री और पुरुषों की भीड़ जुटाई जाती है। उसमें गाड़ियां लगती हैं और खाने के पैकेट भी। ठेकेदारों के लिए खाना और रात में पीने का भी प्रबंध किया जाता है। आजकल तो विरोधी नेता जी पर पथराव करने वालों को भी पैसे देने पड़ते हैं। ये भी तो रोजगार ही है। चुनाव न हो, तो लाखों लोगों को भूखे पेट सोना पड़ेगा।

– आखिर आप कहना क्या चाहते हैं शर्मा जी ?

– देखो वर्मा, हमारे लोकतंत्र का प्राण ही बार-बार होने वाले चुनाव हैं; पर मोदी और अमित शाह कह रहे हैं कि पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होने चाहिए। चुनाव कम होंगे, तो गरीबों का रोजगार मारा जाएगा। इसलिए चुनाव जल्दी और बार-बार होने चाहिए।

– लेकिन आपका तो कोई ऐसा कारोबार नहीं है, जिसका चुनाव से संबंध हो ?

– तुम भी कितने मूर्ख हो वर्मा। चुनाव लड़ना ही तो मेरा धंधा है। हर चुनाव में मैं चंदा इकट्ठा करता हूं। उसमें से कुछ खर्च होता है और बाकी हर-हर गंगे। फिर चुनाव लड़ने से मेरी पुलिस और प्रशासन में पहचान बनती है। कभी किसी का कोई काम अटक रहा हो, तो मैं उचित दाम पर करा देता हूं। तुम भी साथ आ जाओ। जो मिलेगा, उसमें से चौथाई तुम्हारा। दो नंबर का काम मैं पूरी ईमानदारी से करता हूं।

– ये काम आप कब से करने लगे शर्मा जी ?

– ये तो आजादी के बाद नेहरू जी के जमाने से ही होता आ रहा है। मैं तो बस उस श्रेष्ठ परम्परा को निभा रहा हूं। हमारी देखादेखी बाकी सब दल और नेता भी यही करने लगे हैं।

– शायद इसीलिए सब चंदे की पारदर्शिता से परेशान हैं ?

– बिल्कुल ठीक। इसलिए मैं चाहता हूं कि मोदी और जेतली जहरीली गैस वाले इस चुनावी गटर में न घुसें। सत्ता में होने से आज शायद उन्हें कष्ट न हो; पर लोकतंत्र में जिंदगी भर का पट्टा तो कोई लिखा कर नहीं लाया। इसलिए आगे चलकर उन्हें भी कष्ट भोगने होंगे।

शर्मा जी की इन बातों पर मैंने ध्यान नहीं दिया; पर सुना है अगले सप्ताह नये और पुराने, छोटे और बड़े कई दल मिलकर दिल्ली में जंतर-मंतर पर धरना देने वाले हैं। उनका नारा है –

चंदे में पारदर्शिता नहीं चलेगी।

पारदर्शी चंदा, मुसीबत का धंधा।।

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