४० का तेल ८० में बेच रही हैं देश की कल्याणकारी सरकारें

2
215

विनायक शर्मा

कांग्रेस के मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रीत्व में चल रही यूपीऐ की सरकार के दूसरे कार्यकाल की गलत नीतियों के कारण देश की आम जनता का जीना दुश्वार हो गया है. . अपनी हठधर्मी के चलते अब केंद्र सरकार ने पेट्रोल के दामों में ७.५० रुपयों की यकायक और बेतहाशा वृद्धि कर जनता और विपक्षी दलों को सड़कों पर उतरने को मजबूर कर दिया है. पेट्रोल में हुई इस बेतहाशा वृद्धि की मार सीधे रूप से सबसे अधिक उन लोगों पर पडी है जिनको प्रतिदिन अपने मोटरचालित दोपहिये वाहन से नौकरी या रोजगार के लिए आना-जाना पड़ता है. आम जनता की कठिनाइयों को दरकिनार करते हुए इस बढ़ोतरी के पीछे सरकार द्वारा जो भी दलीलें दी जा रही हैं देश की आम जनता उसे समझने में असमर्थ है.

सर्वप्रथम सरकार यह कह कर अपना पल्ला झाड़ना चाहती है कि पेट्रोल के दामों में बढ़ोतरी तेल कम्पनियों द्वारा की गई हैं क्यूंकि नई नीतियों के चलते तेल कम्पनियां कच्चे तेल के अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों के आधार पर और चला आ रहा अपना घाटा पूरा करने के लिए दाम बढ़ाने के लिए स्वतन्त्र हैं. इस बढ़ोतरी के लिए सरकार का कोई दायित्व नहीं है. समझने की बात यह है कि क्या कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में एकाएक उछाल आ गया है ? क्या कारण था कि इस वर्ष में हुए पांच राज्यों के चुनावों और संसद के बजट सत्र के दौरान तेल कम्पनियों ने पेट्रोल की कीमतें नहीं बढाई गईं ? गोवा राज्य ने पेट्रोल को वैट कर मुक्त कर देश में सबसे सस्ता पेट्रोल अपने राज्य के निवासियों को उपलब्ध करवाया है. क्या इसी तर्ज पर केंद्र सरकार द्वारा पेट्रोल पर लगाये जाने वाले तमाम करों में कटौती नहीं कर सकती ? आज जब कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमत अगस्त 2008 की कीमत से भी कम है, फिर किस तर्क पर सरकार ने पेट्रोल के मूल्य में साढ़े सात रुपए की बढ़ोतरी कर दी ?

यदि दैनिक भास्कर डॉट कॉम के कैलकुलेशन के अनुसार गणना की जाये तो आज कच्चे तेल का मूल्य १०० डालर प्रति बैरल बैठता है. रुपये के अवमूल्यन के बाद आज एक डालर ५६ रूपये के बराबर है. इसका अर्थ हुआ कि एक बैरल कच्चे तेल की कीमत हुई ५६०० रुपये और जबकि २००८ में यही तेल ५९०० रुपये प्रति बैरल मिल रहा था तो आज पेट्रोल के दामों में ७.५० रुपये प्रति लीटर की बदोतरी का क्या औचित्य ? एक बैरल में लगभग १५० लीटर कच्चा तेल होता है. कच्चे तेल को रिफाईनरी द्वारा शोधन कर पेट्रोल बनाने में प्रति बैरल ६७२ रुपये आने वाले खर्चे को भी जोड़ दिया जाये तो पेट्रोल का बेसिक मूल्य लगभग ४१-४२ रुपये बैठता है. इसमें केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लगाये जाने वाले करों ( लगभग 35-40 रुपए ) और ड्यूटीज जोड़ा जाये जिसके चलते ही प्रट्रोल के दाम 82 रुपए तक हो जाता है. इसका अर्थ यह हुआ कि पेट्रोल के दाम सरकारों द्वारा लगाये जाने वाले तमाम करों के बाद ही आसमान छूने लगते हैं. जिसका अर्थ हुआ कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कीमतों का बढना या रुपये के अवमूल्यन का इस महंगे होते पेट्रोल से कोई सरोकार नहीं है. सरकारों द्वारा लगाये जाने वाले तमाम प्रकार के करों में बेसिक एक्साइज ड्यूटीज सहित अन्य ड्यूटीज और सेस के साथ स्टेट सेल्स टैक्स ( वैट ) भी सम्मिलित है. इस तरह से केंद्र और राज्य दोनों मिलकर आम जनता की भलाई के नाम पर पैसा उगाहने के लिए उन्हीं के जेब पर बोझ बढ़ा रहे हैं. इन सब के बीच गौर करने वाला तथ्य यह है कि पेट्रोल के दाम ७.५० बढ़ाने से पूर्व भी यही ४२ रुपये प्रति लीटर वाला पेट्रोल सरकार लगभग 70 रुपए में बेच रही थी. दामों में हाल की बढ़ोतरी के बाद तो बेसिक पेट्रोल प्राइस पर सरकार और 83 प्रतिशत टैक्स उगाह रही है. फिर सब्सिडी का कैसा रोना ? दूसरी ओर सरकार द्वारा डीजल पर कोई सब्सिडी नहीं दी जा रही है परन्तु सब्सि़डी के नाम पर 44-46 रुपए में एक लीटर डीजल बेचा जा रहा है जबकि वस्तुस्थिति यह है कि रिफाइनिंग से लेकर सारे कॉस्ट जोड़कर भी डीजल का दाम ४२ रुपए प्रति लीटर बैठता है.

पेट्रोल के बाद अब सरकार अपने अगले कदम में एलपीजी, केरोसिन और डीजल के दाम में भी बढ़ोतरी करने की तैयारी कर रही है. सूत्रों की माने तो सरकार एलपीजी के दाम में लगभग 100 रुपए प्रति सिलेंडर, केरोसिन व डीजल के दाम में 5-7 रुपए प्रति लीटर की बढोतरी करने जा रही है. सरकार का कहना है कि वर्तमान समय में जहाँ एलपीजी पर सरकार को प्रति घरेलू सिलेंडर पर लगभग 479 रुपए का घाटा हो रहा है वहीँ केरोसिन की बिक्री पर सरकार को प्रति लीटर 31.41 रुपए और डीजल की बिक्री पर 13.64 रुपए प्रति लीटर के घाटे को सहन कर रही है. अब प्रश्न यह उठता है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की बढती कीमतों और रुपये के अवमूल्यन जैसी कठिन परिस्थितियों में पेट्रोल जैसे इंधन के आवश्यक तेल पद्धार्थों की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए तेल कम्पनियाँ और सरकारें क्या करें, जबकि विगत दो वर्षों में १५ बार कीमतें बढाई जा चुकी हैं. इसका एक मात्र हल यही नजर आता है कि गोवा की भांति ही केंद्र और राज्य सरकारें भी पेट्रोल और डीजल पर वसूले जाने वाले करों में कटौती कर इसके बढते दामों पर रोक लगाने में जहाँ सफल होंगे वहीँ देश की आम जनता को इस बढती महंगाई से आम जनता को भी राहत मिलेगी. सीमित आय के चलते राज्य सरकारों से राज्य बिक्री कर ( वैट ) में अधिक कटौती की आशा तो नहीं की जा सकती. हाँ, पेट्रोल के बेसिक मूल्य में वृद्धि होने से प्रतिशत के आधार पर लगने वाले कर में होने वाली स्वतः बढ़ोतरी और कुछ उनकी ओर से राहत की आशा तो की जा सकती है.

सूत्रों के हवाले से आ रहे समाचारों की माने तो केंद्र सरकार पेट्रोल की बढ़ी कीमतों में लगभग ढाई रुपये तक की कटौती कर सकती है. वैसे शुक्रवार शाम को पेट्रोलियम मंत्री ने प्रेस को संबोधित करते हुए ऐसी किसी भी सम्भावना से स्पष्ट इनकार ही किया है. दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी भी पेट्रोल की कीमतों में हुई इस बेतहाशा वृद्धि को जहाँ गलत समय में उठाया गया कदम मानती है वहीँ पार्टी डीजल, एलपीजी की कीमतों में बढ़ोतरी के पक्ष में भी नहीं है. २०१४ में होने वाले लोकसभा के आम चुनावों से पूर्व ११ राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव भी होने वाले हैं. बढ़ती महंगाई, आकंठ भ्रष्टाचार, नित नए घोटालों के उजागर होने और केंद्र सरकार के अलोकप्रिय नीतियों और निर्णयों से देश की जनता पहले ही तंग आ चुकी है और हाल ही में संपन्न हुए पांच राज्यों और दिल्ली नगर निगम के चुनावों में कांग्रेस के विरुद्ध मतदान करके देश की जनता अपनी मंशा जता चुकी है. ऐसे में पेट्रोल जैसे इंधन और उर्जा के आवश्यक पद्धार्थ की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी करके कांग्रेस देश की जनता से क्या अपेक्षा कर रही है यह तो सरकार में बैठे धुरंधर या कांग्रेस के नीतिकार ही समझ सकते हैं.

Previous articleशब्द वृक्ष तीन-डॉ. मधुसूदन
Next articleकाले धन पर श्वेत पत्र, सरकार की तरह कमजोर
विनायक शर्मा
संपादक, साप्ताहिक " अमर ज्वाला " परिचय : लेखन का शौक बचपन से ही था. बचपन से ही बहुत से समाचार पत्रों और पाक्षिक और मासिक पत्रिकाओं में लेख व कवितायेँ आदि प्रकाशित होते रहते थे. दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षा के दौरान युववाणी और दूरदर्शन आदि के विभिन्न कार्यक्रमों और परिचर्चाओं में भाग लेने व बहुत कुछ सीखने का सुअवसर प्राप्त हुआ. विगत पांच वर्षों से पत्रकारिता और लेखन कार्यों के अतिरिक्त राष्ट्रीय स्तर के अनेक सामाजिक संगठनों में पदभार संभाल रहे हैं. वर्तमान में मंडी, हिमाचल प्रदेश से प्रकाशित होने वाले एक साप्ताहिक समाचार पत्र में संपादक का कार्यभार. ३० नवम्बर २०११ को हुए हिमाचल में रेणुका और नालागढ़ के उपचुनाव के नतीजों का स्पष्ट पूर्वानुमान १ दिसंबर को अपने सम्पादकीय में करने वाले हिमाचल के अकेले पत्रकार.

2 COMMENTS

  1. अगर मान लिया जाए की केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लगाये टैक्स पेट्रोल की इस कीमत के जिम्मेवार हैं तो इस साझे खेल में सब पार्टियाँ सम्मिलित हैं.रह गयी बात २००८ से तुलना की तो शायद उस समय पेट्रोल से सरकारी नियंत्रण नहें हटा था.इसकामतलब यह है की उस समय पेट्रोलकी कीमत कम होने का घाटा जनता का वह भाग भी उठा रहा था,जिसको पेट्रोल से कुछ लेना देना नहीं है.आज भी जब सब पार्टियों की राज्य सरकारें टैक्स द्वारा पेट्रोल के दामों में बढ़ोतरी की जिम्मेदार हैं,तो केंद्र सरकार के विरुद्ध यह बंध ,हडताल इत्यादि क्यों?

  2. सरकार पेट्रोल diesel में कर छुट देकर अपनी बचत बनाकर चोरी करती है| परनवमुख्ररजी और माननीय मनमोहन जी के राज में ब्रस्थाचार केसे होगा |

Leave a Reply to आर.सिंह Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here