बात का धनी नहीं है पाकिस्तान

pakistanसुरेश हिन्दुस्थानी
भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से किए वादे से पाकिस्तान एक बार फिर पलट गया है, इससे पाकिस्तान के आतंकवाद के रवैये के बारे में यह साफ प्रमाणित होता है कि पाकिस्तान हमेशा आतंकवादियों के हित के लिए ही काम करता है। इस बात से यह भी भारत सहित अन्य देशों को यह भी समझ लेना चाहिए कि पाकिस्तान विश्व का सबसे बड़ा झूठा देश है, उसकी कही हुई का कोई मतलब नहीं है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ द्वारा कही हुई बात का पालन नहीं होना, क्या यह प्रमाणित नहीं करता कि पाकिस्तान में शासकों की जुबान का कोई महत्व नहीं है। हम जानते हैं कि पाकिस्तान में शासकों के निर्णयों को बदलने का सामथ्र्य केवल अतिवादियों को है। दूसरी ओर यह भी कहा जा सकता है कि पाकिस्तान आतंकवाद के प्रति कभी भी संजीदा नहीं रहा।
पूरा विश्व इस बात को भलीभांति जानता है कि मुंबई हमले के मास्टर माइंड जकीउर रहमान लखवी प्रथम दृष्टया भारत का दोषी ही नहीं अपराधी भी है, और भारत की सरकार को लखवी के बारे में प्रमाण मांगने का पूरा अधिकार है। पाकिस्तान द्वारा दो दिन पहले अपनी कही बात से पलट जाना बहुत बड़ा अविश्वास है। यह केवल लखवी की ही बात है पाकिस्तान में लखवी जैसे भारत विरोधी वातावरण का निर्माण करने वाले अनेक कट्टरपंथी मौजूद होंगे ही, क्योंकि जिस प्रकार से पाकिस्तान की सरकार और वहां की जनता द्वारा लखवी को पूरा समर्थन मिल रहा है इससे लगता है कि भारत विरोधियों के लिए पाकिस्तान सबसे अच्छी जगह है। कौन नहीं जानता कि भारत का सबसे बड़ा अपराधी दाऊद इब्राहिम पाकिस्तान में अघोषित रूप से निवास कर रहा है। पाकिस्तान सरकार में इस बात की हिम्मत नहीं है कि वह इन सबके विरोध में जाकर कार्रवाई को अंजाम दे सके। इन सभी बातों से ऐसा ही लगता है कि पाकिस्तान में सत्ता, सेना और जनता के सारे निर्णयों में केवल और केवल आतंकवादियों की ही चलती है।
अभी हाल ही में पाकिस्तान में अभियोजन टीम के प्रमुख चौधरी अजहर ने कहा कि मुंबई आतंकवादी हमले की सुनवाई कर रही रावलपिंडी की एक अदालत ने चार साल पहले लखवी की आवाज के नमूने हासिल करने की एक अर्जी इस आधार पर खारिज कर दी थी कि ऐसा कोई कानून देश में मौजूद नहीं है जो किसी आरोपी की आवाज का नमूना प्राप्त करने की इजाजत देता हो। इससे यह तो लगता ही है कि पाकिस्तान की सरकार में इस बात की हिम्मत नहीं है कि वह आतंकवादियों के विरोध में कोई कानून बना सके। इस बात को और सीधे शब्दों में कहा जाए तो यही कहना तर्कसंगत होगा कि पाकिस्तान की सभी सरकारों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर वहां के आतंकवादी ही चला रहे हैं। अजहर ने यह भी कहा कि पाकिस्तान सरकार मुंबई हमला मामले में लखवी की आवाज हासिल करने के लिए आतंकवाद रोधी अदालत में कोई नई याचिका दायर नहीं करेगी। लखवी फिलहाल साक्ष्य के अभाव में जमानत पर है। इससे एक बात तो साफ हो जाती है कि पाकिस्तान लखवी के मामले में ऐसा कोई कदम उठाने का साहस नहीं कर सकता जो आतंकवादी लखवी के विरोध में हो। उल्लेखनीय है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और शरीफ ने रूसी शहर उफा में शुक्रवार को आवाज का नमूना मुहैया करने सहित मुंबई मामले की सुनवाई पाकिस्तान में तेज करने के तौर तरीकों पर चर्चा करने के लिए सहमति जताई थी। इस वार्ता के बाद जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया था कि दोनों देश आवाज का नमूना मुहैया करने सहित मुंबई मामले की सुनवाई तेज करने के तौर तरीकों पर चर्चा करने पर सहमत हुए हैं।
अब अभियोजन टीम की घोषणा से शायद यह जाहिर होता है कि मोदी से प्रधानमंत्री शरीफ के वादे के बावजूद पाकिस्तान मुंबई हमले के आरोपी को न्याय के दायरे में लाने के लिए ज्यादा आगे नहीं जाएगा। पाकिस्तान ने कहा कि हमने भारत को लिखित में कहा है कि पाकिस्तान में ऐसा कोई कानून नहीं है, जो किसी आरोपी के आवाज के नमूने हासिल करने की इजाजत देता हो। भारत और अमेरिका तक में भी ऐसा कोई कानून नहीं है।Ó उन्होंने कहा कि ऐसा कानून सिर्फ पाकिस्तान की संसद के जरिए ही बन सकता है। अगर पाकिस्तान वास्तव में ही आतंकवाद के मुद्दे पर उचित कार्यवाही चाहता है तो ऐसे कानून बनाना चाहिए जिससे दूसरे देशों को पाकिस्तान के रवैये पर विश्वास हो सके। पाकिस्तान अगर इसी प्रकार की पलटी खाने का व्यवहार करता रहे तो भारत को चाहिए कि वह पाकिस्तान की कही गई बातों पर एकदम विश्वास न करते हुए सोच समझकर कदम उठाए।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ में जब अपनी ही कही बात को पूरा करने का सामथ्र्य नहीं है तब वे आतंकवाद के विरोध में बात ही क्यों करते हैं। इस पूरे मामले को पाकिस्तान द्वारा थूक कर चाटने वाला कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। अब भारत सरकार को चाहिए कि पाकिस्तान द्वारा कही किसी बात पर एक दम भरोसा नहीं किया जाए। वैसे पाकिस्तान का हमेशा से ही यही चरित्र रहा है कि वह कहता कुछ और है और करता कुछ है। कथनी और करनी में सामंजस्य के अभाव के कारण ही वर्तमान में पाकिस्तान की अविश्वसनीयता बढ़ती जा रही है। इस बात को कौन नहीं जानता कि पाकिस्तान की सरकारों ने हमेशा ही आतंकवादियों को बढ़ावा देने का अघोषित कृत्य किया है। चाहे वह भारतीय सीमा के पास चलाए जा रहे आतंकवादियों के प्रशिक्षण केन्द्र हों या फिर भारतीय सीमा में हो रहे हमलों की बात हो, सभी में पाकिस्तान की सरकारों का अप्रत्यक्ष समर्थन रहा है। सीमा पर चल रहे प्रशिक्षण केन्द्रों के बारे में ठोस जानकारी होने के बाद भी पाकिस्तान की सरकार उन्हें हटाने का प्रयास नहीं कर पा रही है। केवल इतना ही नहीं पाकिस्तान की सरकारों द्वारा इस प्रकार के प्रशिक्षण केन्द्रों के लिए आर्थिक सहायता भी दी जाती है।
जहां तक कश्मीर मामले की बात है तो पाकिस्तान यह कभी नहीं चाहता कि कश्मीर का मामला सुलझ जाए, क्योंकि यह मुद्दा ही पाकिस्तानी राजनीति के लिए संजीवनी का काम करता है। पाकिस्तान द्वारा कश्मीर और पाकिस्तान की जनता के बीच इस बात का भ्रम फैलाया जाता है कि पाकिस्तान एक दिन पूरे हिन्दुस्थान पर राज करेगा। ऐसा करना पाकिस्तान के शासकों की मजबूरी है, क्योंकि वहां की जनता को वर्तमान में पाकिस्तानी सरकार पर बिलकुल भी भरोसा नहीं रहा। ऐसे में पाकिस्तान की जनता सरकार के खिलाफ विद्रोह कर सकती है। पाकिस्तान की जनता में शुरू से ही भारत के खिलाफ वैमनस्य का वातावरण निर्मित किया गया है, अगर वहां की सरकारें भारत के विरोध में काम नहीं करेंगी तो वहां की सरकारों में शामिल लोगों का जीना मुश्किल हो जाएगा।

1 COMMENT

  1. यह कोई नई बात नहीं है , पाकिस्तान व उसके नेता कभी भी विश्वसनीय नहीं रहे हैं ,यह उसकी चारित्रिक विशेषता है , इसलिए यदि हम बार बार उस पर यकीन करते हैं तो यह उसका दोष नहीं हमारा दोष है ,साथ ही इससे हमारी कमजोरी ही जाहिर होती है , यह स्वप्न हमें लेना छोड़ देना चाहिए कि वहां की जनता कभी बगावत कर देगी , यह तो सिरदर्द हमारा बना ही रहेगा व पंडित नेहरू की शुरूआती नीतियां इसका मुख्य कारण रही हैं ,
    विश्व इतिहास में कहीं भी यह उदहारण नहीं मिलेगा कि युद्ध में जीतता हुआ देश अपनी लड़ाई को रोककर सयुंक्त राष्ट्र में जा कर समझोता करने या हमलावर को रोकने की अपील करे , लेकिन नेहरू ने शांतिदूत कहलाने की चाह रखते हुए व विश्व में अपनी छवि बनाने के लिए ऐसा किया वरना पूरे कश्मीर से पाक को बाहर निकाल कर अपनी सीमा सुरक्षित करनी थी
    कुछ ऐसा ही 1965 के युद्ध मीन हुआ और कुछ 1971 के युद्ध में भी ,इस मसले को समय पर हल कर दिया जाता तो आज यह नौबत न आती

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