एक विचारधारा, दो विराट व्यक्तित्व, एक ही दिन अवसान

ashoksinghal17 नवंबर का दिन भारतीय आधुनिक इतिहास का कभी न भूलने वाला दिन बन गया है। तीन वर्ष पूर्व इसी तिथि पर हिंदूहृदयसम्राट बाला साहेब ठाकरे महानिर्वाण को प्राप्त हुए थे तो इस वर्ष हिंदुओं की आस्था के प्रतीक राम मंदिर आंदोलन के पुरोधा अशोक सिंघल ने देह त्याग दी। दोनों ही विराट व्यक्तित्व हिंदुत्व के प्राण थे। राम मंदिर आंदोलन और विवादित ढांचे के विध्वंस पर दोनों को गर्व था। दोनों ही एक ही इच्छा थी- अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण, जो उनके जीवन काल में संभव न हो सका। आप ठाकरे और सिंघल से सहमत भले ही न हों किन्तु उन्हें नकारने का साहस भी नहीं दिखा सकते। दोनों ही मात्र एक व्यक्ति नहीं बल्कि संस्था थे। उनके लिए देश हित सर्वोपरि था। दोनों ही भारतीय राजनीति के ऐसे नेता थे जिन्होंने अपने बयानों पर कभी पलटी नहीं मारी। जो कह दिया; जीवन पर्यंत उसी पर कायम रहे। दोनों ने ही राजनीति ने कई लोगों को स्थापित करवाया पर खुद इसकी छाया से दूर रहे। बाल ठाकरे और अशोक सिंघल को पानी पी-पीकर गरियाने और कोसने वाले भी इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकते कि उन्होंने पद, प्रतिष्ठा और सत्ता को कभी धेय नहीं माना। बाल ठाकरे को जहां शिवसेना के निर्माण और उसको स्थापित करने में ही आत्म-संतुष्टि का भान होता था वहीं अशोक सिंघल हिंदू एकता और राम मंदिर के निर्माण को प्राण-वायु मानते थे। भारतीय जनता पार्टी लाख दावे करे कि हिंदुत्व की अवधारणा पर उसका एकाधिकार है किन्तु 1987 के महाराष्ट्र उपचुनाव में पहली बार ठाकरे ने ही हिंदुत्व के नारे का इस्तेमाल किया था। इसी प्रकार नब्बे के दशक में श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन जब अपने यौवन पर था, उन दिनों अशोक सिंघल की गर्जना से रामभक्तों के हृदय हर्षित हो जाते थे। आप अशोक सिंहल को संन्यासी भी कह सकते हैं और योद्धा भी; पर वे जीवन भर स्वयं को संघ का एक समर्पित प्रचारक ही मानते रहे। हिंदुत्व को पोषित करने में अपना सर्वस्व झोंकने वाले ठाकरे और सिंघल पर मुस्लिम विरोध का ठप्पा भी लगा किन्तु दोनों ही अपने ध्येय मार्ग से विचलित नहीं हुए। हालांकि इसमें उनके कट्टर बयानों ने भी महती भूमिका का निर्वहन किया किन्तु इसे खराब पत्रकारिता की पराकाष्ठा कहें या बिकाऊ अखबार मालिकों का दोनों के प्रति द्वेष; उनके कथनों को हमेशा बढ़ा-चढ़ा कर और चटखारे ले लेकर प्रस्तुत किया गया ताकि स्वयं सस्ती लोकप्रियता हासिल की जाए। जरा सोचिए, जिन व्यक्तित्वों के बयानों पर समाचार पत्रों में संपादकीय लिख दिए जाते हों या राजनीतिक विश्लेषकों की फ़ौज उनका विश्लेषण करने बैठती हो; उनमें कुछ तो बात होगी ही।

बाल ठाकरे जहां कार्टूनिस्ट थे और व्यवस्था का विरोध अपने कार्टूनों के जरिए करते थे वहीं अशोक सिंघल की रुचि शास्त्रीय गायन में रही और संघ के अनेक गीतों की लय उन्होंने ही बनाई है। वेदों के प्रति अशोक सिंघल का ज्ञान विलक्षण था। बाल ठाकरे ने शिव सेना की स्थापना कर एकीकृत महाराष्ट्र के आंदोलन को बुलंद किया। दरअसल ठाकरे के उत्थान को समझने के लिए तत्कालीन महाराष्ट्र की परिस्तिथियों को समझना होगा। जिस वक्त ठाकरे प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट आर.के लक्ष्मण के साथ फ्री प्रेस जर्नल में काम करते थे, एकीकृत महाराष्ट्र का आंदोलन अपने चरम पर था। उनके कार्टून भी आंदोलन समर्थित हुआ करते थे। आंदोलन के चलते महाराष्ट्र में बेरोजगारी चरम पर थी, राजनीतिक विचारधाराओं के बीच इतनी धुंध जमा हो चुकी थी कि जनता दिग्भ्रमित हो रही थी। चारों और गुस्सा चरम था। महाराष्ट्र जातियों की जकड़न में कैद था। ऐसे में बाल ठाकरे मराठी मानुष और उसकी अस्मिता का मुद्दा लेकर आए। चूंकि मराठी मानुष की अवधारणा में जाति, वर्ग, सम्प्रदाय का स्थान नहीं था लिहाजा जनता ने उन्हें हाथों-हाथ लिया। अधिसंख्य लोगों के लिए बिना किसी गॉडफादर के ठाकरे का कद किसी अजूबे के सच होने जैसा ही है। दूसरी ओर अशोक सिंघल 1942 में प्रयाग में पढ़ते समय प्रो. राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) के संपर्क में आए और उनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में प्रवेश हुआ। अशोक सिंघल की तत्कालीन सरसंघचालक श्री गुरुजी से बहुत घनिष्ठता रही। प्रचारक जीवन में लंबे समय तक वे कानपुर में रहे। यहां उनका सम्पर्क श्री रामचंद्र तिवारी नामक विद्वान से हुआ। अशोक सिंघल अपने जीवन में इन दोनों महापुरुषों का प्रभाव स्पष्टतः स्वीकार करते थे। 1981 में डॉ. कर्णसिंह के नेतृत्व में दिल्ली में एक विराट हिंदू सम्मेलन हुआ; पर उसके पीछे शक्ति अशोक सिंघल और संघ की थी। उसके बाद अशोक सिंघल को विश्व हिंदू परिषद् के काम में लगा दिया गया। इसके बाद परिषद के काम में धर्म जागरण, सेवा, संस्कृत, परावर्तन, गोरक्षा.. आदि अनेक नए आयाम जुड़े। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन, जिससे परिषद का काम गांव-गांव तक पहुंच गया। इसने देश की सामाजिक और राजनीतिक दिशा बदल दी। भारतीय इतिहास में यह आंदोलन एक मील का पत्थर है। आज विश्व हिंदू परिषद् की जो वैश्विक ख्याति है, उसमें अशोक सिंघल का योगदान सर्वाधिक है जिसे शायद ही कभी भुलाया जा सके। ठाकरे की मृत्यु पर लता मंगेशकर ने मुंबई को अनाथ कहा था और शोभा डे ने महाराष्ट्र के शेर की दहाड़ को शांत बताया था; ऐसे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि ठाकरे की शख्सियत का स्तर क्या था? ठाकरे का जाना यदि शिवसेना के लिए अपूरणीय क्षति थी तो अशोक सिंघल का जाना हिंदुत्व और राम मंदिर आंदोलन के लिए ऐसी क्षति है जिसे कभी नहीं भरा जा सकता। दोनों के एक ही तारीख के अवसान से राजनीति ने ऐसे विरले नायकों को खोया जिन्होंने पद-सत्ता से इतर सर्वोच्च सत्ता पर अपना आधिपत्य जमाया। भारतीय राजनीतिक जगत दोनों की आक्रामकता को सदा-सर्वदा याद करेगा। ठाकरे और सिंघल सच्चे अर्थों में जन-नायक थे जिनके पीछे जनता का हुजूम स्वतः ही चल देता था।

सिद्धार्थ शंकर गौतम

Previous articleअशोक सिंहल होने के मायने
Next articleहिन्दुओं के इतने बुरे दिन क्यों आ गए कि दलाई लामा से सहिष्णुता का सर्टिफिकेट लेना पड़ रहा है।
सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,042 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress