मिले तो सम्मान अन्यथा मज़ाक़?

0
155

1तनवीर जाफ़री
पिछले दिनों भारत सरकार द्वारा विभिन्न क्षेत्रों की देश की 112 हस्तियों को पद्म सम्मान दिए जाने की घोषणा की गई। सर्वप्रथम इन सभी सम्मान प्राप्त कर्ताओं को मेरी हार्दिक बधाई। इसमें कोई शक नहीं कि पद्म पुरस्कारों को जिसमें पदमश्री, पदमभूषण तथा पद्मविभूषण जैसे सर्वोच्च पुरस्कार शामिल हैं तथा इनके अतिरिक्त भारत रत्न जैसा देश का सर्वोच्च सम्मान भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले सर्वप्रतिष्ठित पुरस्कारों में गिने जाते हैं। परंतु इन पुरस्कारों के हमेशा विवादित होने में भी कोई संदेह नहीं है। कांग्रेस पार्टी के शासनकाल में जहां कांग्रेस ने ढूंढ-ढूंढ कर अपने शुभचिंतकों तथा धर्मनिरपेक्ष विचारधारा से जुड़े लेखकों, पत्रकारों, विचारकों तथा अन्य कई क्षेत्रों के लोगों को इन पुरस्कारों से नवाज़ा वहीं उसी दौर में तमाम योग्य एवं प्रतिभावान हस्तियां भी इन पुरस्कारों की हक़दार बनीं। परंतु चाहे वह कांग्रेस का शासनकाल रहा हो या वर्तमान भारतीय जनता पार्टी के शासन का दौर, इसमें भी कोई शक नहीं कि इन पुरस्कारों को प्राप्त करने में जहां किसी व्यक्ति को उसकी योग्यता तथा उसके अपने क्षेत्र में किए गए उसके कार्यों की कसौटी पर तौला जाता है वहीं इस सूची में सिफ़ारिशी लोगों की भी गहरी पैठ रहती है। स्वयं केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले दिनों इस बात का खुुलासा किया था कि-पुरस्कारों की वजह से उन्हें सिरदर्द होने लगा है, लोग पीछे पड़ जाते हैं पद्म पुरस्कार के लिए सिफारिशें चाहते हैं। उन्होंने फ़िल्म अभिनेत्री आशा पारेख का नाम लेकर यह कहा कि वे पद्मभूषण पाने की ग़रज़ से मेरे घर की लिफ़्ट खराब होने पर भी बारहवीं मंज़िल पर सीढियां चढ़कर पहुंची। गडकरी द्वारा आशा पारेख के विषय में यह कहे जाने पर आशा पारिख को बुरा भी लगा था।
बहरहाल, स्वतंत्रता से लेकर अब तक छोटे से लेकर बड़े पुरस्कारों तक की हालत कुछ ऐसी ही है। या तो पार्टी यानी सत्तारूढ़ दल अपना नफ़ा-नुक़सान देखकर किसी को पुरस्कारों से नवाज़ते हैं या फिर उसकी सत्ता के प्रति वफ़ादारी को पैमाना बनाकर। या फिर जुगाड़बाजी और सिफ़ारिश में पारंगत महारथी ऐसे पुरस्कार झटक पाने में कामयाब हो जाते हैं। परंतु इन सब के बावजूद यह कहना भी गलत नहीं होगा कि पुरस्कार पाने वाले लोगों में कुछ न कुछ योग्यता तो आख़िरकार रहती ही है जिसके बल पर वे भले ही अपनी सिफ़ारिश क्यों न करें परंतु वे स्वयं को पुरस्कार के योग्य समझते हैं। परंतु ऐसा कम ही देखा गया है कि कोई एक व्यक्ति इन्हीं पुरस्कारों को मजाक भी बताए, इनकी प्रमाणिकता पर सवाल भी खड़ा करे और जब उसे पुरस्कार मिले तो वही व्यक्ति स्वयं को सम्मानित महसूस करते हुए भारत सरकार को शुक्रिया भी अदा करे।
इस बार पदम पुरस्कार पाने वालों में अभिनेता अनुपम खेर का नाम एक ऐसा ही नाम है जिन्होंने बावजूद इसके कि 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में इन्हें पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त हो चुका था परंतु 2010 तक पद्मभूषण पुरस्कार की सूची में इन का नाम नहीं आया और इस दौरान कुछ समय के लिए पद्म पुरस्कारों का वितरण बंद भी हो गया। उस समय यानी 2010 में अनुपम खेर ने एक ट्वीट् के माध्यम से कहा था कि-हमारे देश में पुरस्कार प्रणाली मजाक बन कर रह गई है। किसी भी पुरस्कार में कोई प्रमाणिकता नहीं बची है। चाहे वे फिल्म पुरस्कार हों या फिर पद्म पुरस्कार। इसके पश्चात गत् वर्ष देश में सहिष्णुता व असहिष्णुता को लेकर देश के बुद्धिजीवियों में छिड़ी बहस के दौरान देश के सैकड़ों नामी-गिरामी हस्तियों द्वारा जब एक के बाद एक विभिन्न प्रतिष्ठित पुरस्कार वापस किए जाने का सिलसिला शुरु हुआ उस समय यही अनुपम खेर सरकार का पक्ष लेते हुए पुरस्कार वापस करने वालों के विरुद्ध होने वाले एक मार्च के आयोजक बने। उसी समय मीडिया ने अनुपम खेर से यह सवाल पूछना शुरु कर दिया था कि आखिर आपको देश में बढ़ती असहिष्णुता के विरुद्ध अपने पुरस्कार वापस करने वालों के विरुद्ध इस प्रकार खुल कर सरकार के पक्ष में मोर्चा संभालने की जरूरत क्यों महसूस हुई? उन्हीं दिनों से यह सवाल भी पूछा जाने लगा कि कहीं आप यह सब इस लिए तो नहीं कर रहे कि आपको राज्यसभा का सदस्य बनने का मोह है? या फिर किसी दूसरे सरकारी उच्च पद की लालसा है या पदम पुरस्कार पाने की तमन्ना लेकर आप यह सब कर रहे हंै? इसके जवाब में भी अनुपम खेर ने पद्म अवार्ड ग्रहण करने की बात से इंकार नहीं किया था। उसी समय से लगभग यह निश्चित हो गया था कि निकट भविष्य में पद्म पुरस्कारों की सूची में और किसी का नाम हो या न हो परंतु अनुपम खेर का नाम तो जरूर शामिल होगा। और हुआ भी यही। कल तक इन पुरस्कारों को मजाक व अप्रमाणिक बताने वाले अनुपम खेर के लिए यही पुरस्कार गंभीर तथा प्रतिष्ठित व प्रमाणिक बन गया है। और अपने नाम की घोषणा सुनते ही उन्होंने एक ताजातरीन ट्वीट के माध्यम से इस क्षण को अपने जीवन की सबसे बड़ी खबर बताया तथा खुशी का इजहार किया। हालांकि बिहार विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में प्रचार करने वाले िफल्म अभिनेता अजय देवगण तथा भारतीय जनता पार्टी के चुनाव प्रचार में पार्टी के पक्ष में चुनावी गीत अपनी आवाज में रिकॉर्ड कराने वाले उदित नारायण को भी पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया है। परंतु इनके नामों को लेकर आम लोगों में इतनी चर्चा नहीं है जितनी कि अनुपम खेर के नाम को लेकर की जा रही है। अनुपम खेर स्वयं इस बात से वािकफ हैं कि असहिष्णुता को लेकर पुरस्कार वापसी के विरोध में उनके द्वारा किए गए मार्च से लेकर पिछले दिनों पद्मभूषण सम्मान प्राप्त होने तक सोशल मीडिया पर उनकी कैसी किरकिरी हो रही है? परंतु बड़े दुर्भाग्य की बात है कि पद्मभूषण की घोषणा के बाद उन्होंने जिन हल्के व घटिया शब्दों का प्रयोग करते हुए अपने आलोचकों को अपने ट्वीट् के माध्यम से जवाब देने की कोशिश की है उससे तो निश्चित रूप से पद्मभूषण सम्मान पाने वाले व्यक्ति के विषय में कोई भी व्यक्ति बहुत कुछ सोचने पर मजबूर हो जाएगा। उनके द्वारा अपने ट्वीट् के माध्यम से 25 जनवरी को रात 10 बजकर 21 मिनट पर यह कहा गया कि-सुन रहा हूं आज बाजार में बर्नाल बहुत जोर-ओ-शोर से बिक रहा है। जाहिर है उनके इस ट्वीट का तात्पर्य सिर्फ यही है कि लोगों में उनके पद्मभूषण पुरस्कार पाने से ईष्र्या व जलन हो रही है। जबकि हकीकत में अनुपम खेर एक ऐसे मंझे हुए व उच्च कोटि के कलाकार हैं जिन्हें पुरस्कृत किया जाना वास्तव में उनके शुभचिंतकों तथा उनके फैन्स को पुरस्कृत किया जाना है। अनुपम खेर का यह ट्वीट और इसमें इस्तेमाल किए गए शब्द बेहद स्तरहीन हैं तथा उनकी ऐसी मानिसकता भी उनके पद्मभूषण पाए जाने पर प्रश्चचिन्ह खड़ा करती है। यदि उन्हें बाजार में बर्नाल बिकने की बात कहकर बर्नाल का विज्ञापन इसी तरीके से करना ही था तो कम से कम उन्हें यह बताना चाहिए था कि जिस अनुपम खेर ने 2010 में इन्हीं पदम पुरस्कारों को अप्रमाणिक व एक मजाक बताया था आज उसी अनुपम खेर की नजरों में वही पुरस्कार प्रमाणिक, सम्मानित तथा गंभीर व विशिष्ट कैसे हो गए? यदि 2010 में किया गया उनका ट्वीट् सच्चाई पर आधारित था और वह उनके दिल और आत्मा से निकली हुई बात थी तो उन्हें आज पद्मभूषण पुरस्कार लेने से इंकार कर देना चाहिए था अन्यथा इन पुरस्कारों का 2010 में अपमान किए जाने हेतु उन्हें माफी मांगनी चाहिए थी। अनुपम खेर को कम से कम देश के उन तीन लोगों से भी सबक लेना चाहिए जिन्होंने इसी वर्ष पद्म पुरस्कार लेने से इंकार भी किया तथा इन पुरस्कारों की शान में कोई गुस्ताखी भरे अपशब्द भी नहीं कहे। उदाहरण के तौर पर मशहूर व्यंग्यकार शरद जोशी के निधन के बाद उनके परिवार के लोगों ने पदम पुरस्कार लेने से इंकार किया। कारण यह बताया गया कि 1992 में भी शरद जोशी को यह पुरस्कार दिए जाने का प्रस्ताव था। परंतु उन्होंने चूंकि उस समय यह पुरस्कार स्वीकार नहीं किया था इसलिए उनके मरणोपरांत भी यह पुरस्कार स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार प्रसिद्ध तमिल लेखक जयमोहन ने यह कहकर अपना पद्म पुरस्कार ग्रहण करने से इंकार कर दिया परंतु साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि उनके लिए यह खबर गर्व का विषय है। इसी प्रकार पत्रकार वीरेंद्र कपूर ने यह कहकर पुरस्कार लेने से इंकार किया कि वह सरकार के िखलाफ नहीं हैं परंतु पिछले 40 वर्षों में उन्होंने किसी भी सरकार से कोई सम्मान नहीं लिया इसलिए इस बार भी पद्म सम्मान नहीं ले रहे हैं। इनमें से किसी भी सम्मान न स्वीकार करने वाले ने सम्मान की प्रासंगिकता, उसकी उपयोगिता या उसकी प्रतिष्ठा व मान-सम्मान या प्रमाणिकता आदि पर न तो प्रश्र उठाया न ही उसका मजाक उड़ाया। परंतु अनुपम खेर के ट्वीट से तो यह साफ जाहिर हो गया कि यदि पदमभूषण उन्हें न मिले तब तो यह मजाक है और यदि उन्हें मिल जाए तब यही एक प्रतिष्ठित सम्मान है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,841 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress