राजनीति

चरमपंथियों का दुस्साहस

jnuजवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी देने की तीसरी बरसी पर एक धुर वामपंथी छात्र संगठन ने कार्यक्रम आयोजित किया। प्रशासन ने इसके लिए दी गई अनुमति को वापस ले लिया था। फिर भी आयोजन हुआ और विरोध मार्च भी निकाला। कार्यक्रम को ‘द कंट्री विदाउट ए पोस्ट ऑफिस’ का नाम दिया गया था। उसके लिए लगाए गए पोस्टर पर लिखा था, ‘लोकतांत्रिक अधिकार- आत्मनिर्णय के लिए कश्मीरियों के संघर्ष के साथ एकजुटता में।’ एक दूसरे पोस्टर पर लिखा था, ‘अफजल और मकबूल की न्यायिक हत्या के खिलाफ।’ जेएनयू छात्र संघ ने इसका समर्थन किया। छात्र संघ पर सीपीआई-एमएल (लिबरेशन) ग्रुप से जुड़े ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) का कब्जा है। छात्र संघ के अध्यक्ष और आइसा नेता कन्हैया कुमार ने कहा कि वामपंथी संगठन अभिव्यक्ति की आजादी और लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने के अधिकार को छीनने के खिलाफ है, इसलिए हमने प्रोग्राम का समर्थन किया। इस बिंदु पर आकर यह सवाल खड़ा होता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा आखिर क्या है? अफजल और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के सह-संस्थापक मकबूल बट्ट को फांसी भारत की न्यायिक प्रक्रिया के तहत हुई थी।
लोकतंत्र में न्यायिक फैसलों से असहमति रखने का हक जरूर होता है, लेकिन उस फैसले का उल्लंघन लोकतांत्रिक अधिकार के दायरे में नहीं आता। मकबूल बट्ट कश्मीर को भारत से अलग करना चाहता था। दरअसल, कश्मीर के संदर्भ में आत्मनिर्णय के अधिकार की वकालत का सीधा अर्थ पाकिस्तान संचालित वहां के अलगाववादी आंदोलन का समर्थन ही होता है। क्या कोई देश किसी गुट को खुलेआम अपनी अखंडता को चुनौती देने की इजाजत दे सकता है? धुर वामपंथी छात्र संगठनों ने यही करने की कोशिश की है। मगर इसे देश का व्यापक जनमत स्वीकार नहीं करता। दरअसल, अपने नकारवादी और चरमपंथी नजरिए से इन संगठनों ने भारतीय जन-मानस को आहत किया है। ये संगठन इस संदर्भ में आत्म-मंथन करें, तो जान सकेंगे कि वे क्यों हाशिये पर बने रहते हैं। वैसे सियासत में वे कहां रहना चाहते हैं, यह उनका चयन है। मगर जब राष्ट्रीय एकता और अखंडता को वे चुनौती देते हैं, तो अपने खिलाफ वैधानिक कार्रवाई को भी आमंत्रण देते हैँ। जेएनयू की घटना के सिलसिले में विश्वविद्यालय प्रशासन और पुलिस को बेशक यह पता करना चाहिए कि क्या वहां किसी कानून का उल्लंघन हुआ। ऐसा हुआ तो उसके लिए जिम्मेदार लोगों पर अवश्य ही उचित कार्रवाई होनी चाहिए।