भृगु तीर्थ ,पुरी ,आश्रम व मन्दिर जिला बलिया

डा. राधेश्याम द्विवेदी
भृगु आश्रम बलिया वाराणसी से 145 किमी. तथा बलिया शहर से लगभग 2 किमी. दक्षिण में स्थित है। यह पूर्वोत्तर रेलवे तथा गोरखपुर, आजमगढ़, मऊ, तथा विहार के अन्य शहरों से भी जुड़ा हुआ है। राष्ट्रीय राजमार्ग 19 तथा राज्य मार्ग 1 से भी यहा है। बाबतपुर वाराणसी के एयर पोर्ट ये यहां की दूरी 160 किमी है। बलिया राजा बलि की राजधानी कही जाती है। हरदोई से 6 6 मील पश्चिम बावन को भी राजा बलि की राजधानी कही जाती है।
बलिया को बाल्मीकि रामायणके बाल्मीकि ऋषि से व्युत्पन्न भी माना जाता है। यहां वह गंगा के रेत से इस स्थान को उत्सर्जित कराये थे। बाद में भुगु ऋषि को इस स्थान पर धार्मिक तथा सांसारिक संस्कार तथा विकास के लिए भेजा गया था। यहां ऋषियों ने हजारो वर्षो तक तप तथा आराधना किया था। ऋषि भृगु बलिया में ही स्वर्गारोही हुए थे। इसलिए उनसे समर्पित यहां मन्दिर बना हुआ है। इसे एक सिद्ध व शक्तिपीठ भी माना जाता है। यहां पर भृगु ऋषि तथा उनके शिष्य दादर मुनि के सम्मान में प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा को एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। बहुत दूर दूर से देशी व विदेशी पर्यटक यहां दर्शनार्थ आते रहते है। सरयू या घाघरा नदी यहां गंगा में मिलती है। इसलिए इसे भृगरासन भी कहाजाता है। यह भृगु आश्रम का अपभ्रंश है। जब ऋषियों ने त्रिदेवों की परीक्षा के लिए भृगु मुनि को भेजा था तो उन्होने सहनशीलता की परीक्षा हेतु विष्णु के छाती पर पैर से प्रहार किया था। भृगु मुनि द्वारा लिखा गया भृगु संहिता ज्योतिष का महत्वपूर्ण दस्तावेज माना जाता है। गंगा के तट पर स्थित दादरी शहर में महोत्सव मनाया जाता है। उस आश्रम को भी भृगु आश्रम कहा जाता है। महाभारत इसे भृगुतीर्थ के रूप में लिखता है। जब राम ने परशुराम की शक्ति छीन लिया था तो वह यहां आकर वह अपनी शक्ति पुनः अर्जित किये थे। इसी आश्रम में वीतिहोत्र ने आश्रय ले रखा था। भृगु के दिव्य शक्ति से वह ब्राह्मण बन गये थे। यहां भृगु के चरणों की छाप भी बनी हुई है।

 

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