प्रसारण परंपरा पर कुछ प्रतिक्रिया

2
284

बी एन गोयल

इस माला की अगली कड़ी प्रारम्भ करने से पहले कुछ मित्र पाठकों की बात करना चाहता हूँ. इनमित्रों ने पिछली कड़ियों को लेकर कुछ प्रतिक्रियाएँ भेजी हैं.कुछ मित्रों ने प्रश्न भी किये हैं. इनसब ने ई- मेल से अपनी बात कही है.पूरी मित्र मंडली को मैं दो भागों में देखता हूँ –

 

एक ग्रुप में ऐसे व्यक्ति हैं जो मेरे 55 वर्ष के सक्रिय समय में(40 वर्ष नौकरी और 15 रिटायरमेंट के) मेरे साथ जुड़ते गए, कुछ घनिष्ठ हो गए, ये मेरी प्रशंसा करते हैं, मुझे सुझाव भी देते हैं और प्रोत्साहितभी करते हैं. इन में लोचनी, राजेश्वर, योगेश्वर जैसेहैं. राजेश्वर के मान सम्मान से मैं कभी उऋणनहीं हो सकता. दूसरा ग्रुप हैजिन से अभी इस लेखन के दौरान भेंट हुई. जैसेशकुन बहन जी और सागरचंद नाहर. पठनपाठन के प्रति इन की तन्मयता अतुलनीय है. इनसे अलग उमेश- पुष्पा अग्निहोत्री हैं. इनने अपने कमेंट्स से ज्ञान और अनुभवों का भण्डार ही खोल दिया है. मेरी दृष्टि में अन्य पाठक मित्रों केलिए भी ये कमेंट्समहत्वपूर्ण हैं अतः यहाँ उन के कुछ अंश दे रहा हूँ. एक समय था जब उमेश और पुष्पा अग्निहोत्री की जोड़ी आकाशवाणी दिल्ली में एक शांत सौम्य एवं स्मित मुस्कान वाली जोड़ीके रूप में प्रसिद्ध थी. उस समय को पुराने लोग अबआकाशवाणी का एक‘प्राचीन युग’मानते हैं. येदोनों हीमेरे वरिष्ठ रहे हैं. जून 1976 में ये वायस ऑफ़ अमेरिका में चले गए थे और वहीँ से रिटायर हुए. उन की प्रतिक्रिया के कुछ अंश –

UmeshAgnihotri 11 फ़रवरी2016अभी तुन्हारी ई मेल देखी ….क्या बात है तुम्हारी याददाश्त की.चलोआकाशवाणी रोहतक के इतिहास में हमारे नाम भी दर्ज रहेंगे । शुक्रिया      …उमेश

UmeshAgnihotri 12 फ़रवरी 2016 -आकाशवाणी काइतिहास लिख रहे हो तुम ।

इसकी बहुत ज़रूरत थी । ……..उमेश

उमेश ने स्व०कर्तार सिंह दुग्गल से सम्बंधित लेख पर लिखा है ——

‘दुग्गल जी वाला लेख भी अच्छा है …। तुम्हारी कलम दौड़ रही है

पुष्पाजी ने उनके दो नाटकों में कामभी किया था–  सात पैसे और बुखार । वें  रेडियो – नाटक – उत्सव के दौरानप्रसारित हुए थे ।  एक घटना याद हो आयी..। उत्सव में प्र्स्तुतीकरण  काक्रम होता था..7  –  6  – 5 – 4  3  2  1  ।   पहले नम्बर का नाटक अंतमें ।

कहा जाता है  एक बार दुग्गल जी का नाटक क्रम में कुछ नीचेथा,,उन्होंने अपना नाटक ऊपर कर दिया ..बहुत हो-हल्ला हुआ । दुग्गल जी नेकहा — इससे क्या अंतर पड़ता है ।
एक बार जब वह अमेरिका आये थे एक पंजाबी सम्मेलन में — जिसका आयोजन मेरे मित्र मन्ज़ूर इजाज़ ने किया था । उव दिनों मन्ज़ूर मेरा पड़ोसी भी थाहमारी उनसे मुलाकात हुई थी —  पुष्पा जी ने उन्हें बताया कि वहआकाशवाणी दिल्ली से है , और  उन्होनें उनके दो नाटकों में भी  भाग लियाथा ।  दुग्गल जी उन्हें  पहचाने नहीं थे । पर यह बातें अपनी जगह .. , असलबात तो यह है कि दुग्गल जी नेसाहित्य और प्रसारण के क्षेत्रों मेंउल्लेखनीय योगदान किया है,, उसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता औरउन्हें उसके लिये सम्मानित भी किया जाता रहा है ।  वह अफसर ज़रूर थेलेकिन मन से लेखक थे।  उनकी कई कहानियां मेरी और पुष्पा की पसंदीदा कहानियां हैं। अगरमुझे ठीक याद है तो दुग्गल जी की पत्नी और कृश्न चंदर की दूसरी पत्नी सलमा  सिद्दी क़ी बहने थीं ।  दुग्गल जी और कृश्न चंदर एक ही कॉलेज में पढ़े थे।‘

 

12 फ़रवरी 2016– मैंनेमजाकियातौर पर उमेश से कहा कि क्या तुमने अपनी प्रतिक्रिया देने से पहले पुष्पा जी से विचार विमर्श किया था या नहीं. मेरे लेखों पर उन की क्या राय है. पुष्पा जी मेरी सीनियर थी, नाटक कलाकार थी और मित्र मंडली में तो थी ही. उमेश का उत्तर एक दार्शनिक जैसा है….

 

‘……उनको भी रोहतक संबंधी तुम्हारा लेख पसंद आया .वास्तविकता तो यह है..कि मैंने जो लिखाथा..वह उन्हीं का कहा थाऔर तुम जानते ही होइस उम्र में आते-आते आदमीवह ही बोलता और लिखता है जो उसे उसकी पत्नी कहती है..।  ज़बान भले हीउसकी होती है अक्सर  अल्फ़ाज उसकी पत्नी के ही होते हैं ।अब यह भी कोई नई बात नहीं है । यह होता आया है..शेक्सपियर के एक नाटक से लिये इस संवाद पर तुम्हारी तवज्जो चाहूंगा ..।
Provost:  Can you cut off a man’s head?
Pompey:  If a man be a bachelor, sir, I can; but if he be a marriedman, he has his wife’s head, and I can never cut off a woman’s head

तो बंधूसब पुरुषों की यह ही कहानी है.माने या न माने ।  मैंने तो पुष्पा जी से कह दिया है,  ‘अब जितने वर्ष रह गये हैं इन्हें  मैं वह ही करता बिताऊंगा  जो आप कहोगी..ताकि तुम्हें यह गिला न रह जाये कि तुम्हारे पति ने कभी तुम्हारी बात नहीं मानी..।’   हालांकि अपने परिवार में अपनी रेपुटेशन यह ही रही है कि जब से शादी हुई है मैं अपनी पत्नी के इशारे पर चलता आया हूं ।

 

11 फ़रवरी – 2016 मैंने उन्हें लिखा, ‘मेरे लिए तो उन्होंने रोहतक में एक बहुत बड़ा काम किया था. उनका आभारीरहूँगा.रही बात शेक्सपीयर की तो उस ने ही हैमलेट से कहलवाया है –   Frailty thy name is woman.

 

पाठक मित्रों की एक मण्डली ऐसी भी है जिन्होंने लेख पढ़ कर इ-मेल से कुछजिज्ञासा प्रकट की उन्होंने अपना नाम और मेल गुप्त रखने का आग्रह किया है. उन की जिज्ञासा एक पंक्ति से है.‘देश के आकाश पर छा रहे बड़े सितारे की छत्रछाया में स्थानीय प्रद्योत भी निर्द्वंद आँख मिचौनी खेल रहे थे. हरियाणा भी इस का अपवाद नहीं था. इस के उत्तर में मैं एक छोटी सी सत्यकथा सुनाता हूँ. गर्मी का मौसम था, इस मौसम में दिन बड़े होते है. हमने रोहतक में एक बेडमिन्टन क्लब बनाया था जिस में सब शाम के समय ऑफिस के बाद डेढ़ दो घंटे के लिए बेडमिन्टन खेलते थे. एक दिन खेल ख़त्म हो चुका था, लगभग शाम के साढ़े सात बज रहे थे . सब अपने अपने घर चले गए थे. अंत में मैं भी निकल रहा था कि एकाएक एक सफ़ेद कार पोर्टिको में रुकी. उस में दो नवयुवक और एक सफ़ेद साडी में बहुत ही ख़ूबसूरत युवती उतरी. मैं रुक गया और उन से पूछा

‘किसी से मिलना है आप को’ – मैंने पूछा.

‘लाल कहाँ है- लाल कहाँ है’ उन में से लीडर जैसे नेता ने बड़े ही जोर शोर से कहा.

‘लाल ?’ मैंने कुछ अचकचाकर कहा ‘क्या आप केंद्र निदेशक लाल साब के बारे पूछ रहे हैं?

‘हाँ वही जो यहाँ का कमांडर है’

‘जी, उन का नाम श्री बी एम लाल है, वे स्टेशन डायरेक्टर हैं. हमारे यहाँ कमांडर जैसा कोई पद नहीं होता. लाल साब आज यहाँ नहीं हैं – बाहर गए हैं’ (उन दिनों लाल साब एक मीटिंग के लिए नागपुर गए हुए थे)

‘उन के बाद कौन है इंचार्ज ?’ – ‘इस वक़्त तो मैं ही हूँ. आप….कौन …कहाँ….?’

उन के साथी युवक थोडा घबराये स्वर में बोले …….’अरे आप इन्हें नहीं जानते ..आप .चौ..साब हैं…. ….. अच्छा अच्छा …..मेरा उत्तर था

कौन नहीं जानता था उस समय के नवोदित होते हुए सितारे को …… 00000

Previous articleप्रेम की जीत !!
Next articleवैदिक धर्म के प्रति सच्ची श्रद्धा रखने वाले अन्य मतों के अनुयायी
बी एन गोयल
लगभग 40 वर्ष भारत सरकार के विभिन्न पदों पर रक्षा मंत्रालय, सूचना प्रसारण मंत्रालय तथा विदेश मंत्रालय में कार्य कर चुके हैं। सन् 2001 में आकाशवाणी महानिदेशालय के कार्यक्रम निदेशक पद से सेवा निवृत्त हुए। भारत में और विदेश में विस्तृत यात्राएं की हैं। भारतीय दूतावास में शिक्षा और सांस्कृतिक सचिव के पद पर कार्य कर चुके हैं। शैक्षणिक तौर पर विभिन्न विश्व विद्यालयों से पांच विभिन्न विषयों में स्नातकोत्तर किए। प्राइवेट प्रकाशनों के अतिरिक्त भारत सरकार के प्रकाशन संस्थान, नेशनल बुक ट्रस्ट के लिए पुस्तकें लिखीं। पढ़ने की बहुत अधिक रूचि है और हर विषय पर पढ़ते हैं। अपने निजी पुस्तकालय में विभिन्न विषयों की पुस्तकें मिलेंगी। कला और संस्कृति पर स्वतंत्र लेख लिखने के साथ राजनीतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक विषयों पर नियमित रूप से भारत और कनाडा के समाचार पत्रों में विश्लेषणात्मक टिप्पणियां लिखते रहे हैं।

2 COMMENTS

  1. मिडिया अपनी सान्दर्भिकता खोता जा रहा है। अब मीडिया विश्वसनीय नही रह गया। उनकी निष्ठा किसी दल और विचारधारा के अनुकूल होती है और उसके अनुकूल प्रसारण करते है. पैसे मिले तो आज के मुड़ियाकर्मि अपनी माँ को बेच डाले. राष्ट्र और राष्ट्रहित उनके लिए बेमाने होता जा रहा है.

    • धन्यवाद – आप ने दिल की गहराई में उठते हुए दर्द को छू दिया है ….

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,849 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress