अब पहले वाली कोई बात न रही !

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जिंदगी में कोई भी मिठास न रही !!
धरती पे हर तरफ जलन है ,घुटन है !
बादलों में पहले सी बरसात न रही !!
जिंदगी का दर्द हम किससे कहें किसको सुनाएँ !
रिश्ते तो ऐसे जलें की राख न रही !!
हमारी दुनियां गुम हुयी चीखों में ,चीत्कारों में !
रब के पास भी खुशियों की सौगात न रही !!
बस इतना इल्म कर लो अंधेरें के रहनुमाओं !
आफताब के आने पर कोई रात न रही !!
ऐतबार किस पर करें इस शहर में हम ‘मनीष’ !
आदमी अब भरोसे वाली जात न रही !!

 

मनीष कुमार सिंह

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