डरता है मन मेरा

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pollutionडरता है मन मेरा
कहीं हो न जाए
तेरे भी जीवन में अंधेरा
नाजों से पली थी मैं
अपनी बगिया की कली थी
एक दिन उस बगिया को
छोड़ चली थी मैं
नए सपनों को देख
मचली थी मैं
जैसे बहारों के मौसम में
खिली थी मैं
पर अगले ही दिन
मुस्कान खो चुकी थी मैं
काटों भरी राह पर
जैसे चली थी मैं
मां के लाड की जगह
सास के तानों में ढली थी मैं
परवरिश पर मेरी उठी उंगली
सब कुछ अर्पण करके भी
मुझे न कोई ख़ुशी मिली।
लाड में माँ ने कितना कुछ किया
लालच ने उनकी हर कोशिश पर
पानी फेर दिया।
कोशिश बहुत की इस बंधन में
बंधने की
पर सहनशीलता ने मेरी
एक दिन दम तोड़ दिया
तुझे लेकर साथ अपने
मैंने अपने सपनों का महल
एक पल में छोड़ दिया।
आज तक न आया कोई निभाने
सात फेरों की कसमों को
जैसे मेरे सपनों के राजकुमार ने
मुझसे हर नाता तोड़ दिया।
आज आई है
तुझे विदा करने की घड़ी
पर खड़ी है मन में मेरे
उलझनें बड़ी।
आज एक बार फिर
डरता है मन मेरा कहीं
तेरे जीवन में न हो जाए
कभी ऐसा सवेरा।

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