एक संविधान, फिर दो विधान क्यों?

-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 चीख चीख कर कहता है कि भारत में सभी लोगों को कानून के समझ समान समझा जायेगा और सभी लोगों को कानून का समान संरक्षण प्राप्त होगा। अनुच्छेद13 में यह भी कहा गया है कि यदि उक्त प्रावधान का उल्लंघन करने वाला या कम करने वाला कोई कानून सरकार द्वारा बनाया जाता है, तो ऐसा कानून उल्लंघन की सीमा तक शून्य माना जायेगा। इतने स्पष्ट और सख्त प्रावधान के बावजूद भी हमारे देश में लोगों से उनकी हैसियत के अनुसार अलग-अलग तरह से बर्ताव करने के लिये अलग-अलग प्रकार के कानून बनाये हुए हैं।

राष्ट्रीय महिला हॉकी टीम के कोच एमके कौशिक पर एक खिलाडी ने यौन उत्पीडन का आरोप लगया है, जिस पर कौशिक के विरुद्ध कोई आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं करवाया गया है, बल्कि हॉकी इण्डिया ने इस मामले की जांच के लिए राजीव मेहता की अध्यक्षता में चार सदस्यीय समिति गठित कर दी है जिसमें पूर्व खिलाडी जफर इकबाल, अजीत पाल सिंह और सुदर्शन पाठक को भी शामिल किया गया है।

सवाल यह उठता है कि यदि यही आरोप महिला हॉकी टीम की खिलाडी ने हॉकी संघ के बाहर के किसी व्यक्ति पर लगाया होता, मसलन किसी दर्शक पर, क्या तब भी हॉकी इण्डिया ऐसा ही करती? कर ही नहीं सकती थी, क्योंकि बाहरी किसी व्यक्ति के मामले में उसे जाँच करने का कोई हक नहीं है। यहाँ पर सवाल यह उठता है कि हॉकी इण्डिया को हॉकी से जुडे विवादों या मामलों की जाँच करने के लिये तो अपनी खेल विशेषज्ञता का उपयोग करना चाहिये, इस पर किसी को काई आपत्ति नहीं होगी, लेकिन हॉकी के पूर्व खिलाडियों को आपराधिक मामलों की जाँच के लिये बनायी गयी समिति में शामिल करके उनसे उस अपराध के लिये जाँच करवाई जा रही है, जो भारतीय दण्ड संहिता में दण्डनीय अपराध है, यह किस कानून द्वारा स्वीकृत है?

आश्चर्यजनक तो यह है कि देश के लोग चुपचाप मूक दर्शक बने बैठे हैं! क्या कौशिक के विरुद्ध भी भारतीय दण्ड संहिता के तहत आपराधिक मामला दर्ज नहीं होना चाहिये? यदि पुलिस द्वारा जाँच की जाती है, तो कौशिक की गिरफ्तारी भी सम्भव है, जबकि विभागीय जाँच में मामले को कुछ सुनवाईयों के बाद रफा दफा कर दिया जायेगा, जेसा कि हमेशा से होता आ रहा है। केवल हॉकी की ही बात नहीं है, प्रत्येक सरकारी विभाग में भी इसी प्रकार से उन सभी मामलों में जो आपराधिक प्रकृति के हैं और जिनमें भारतीय दण्ड संहिता के तहत कठोर कारावास की सजा का प्रावधान है, सभी को विभागीय जाँच के नाम पर आपसी गठजोड के जरिये रफा दफा कर दिया जाता है। विभाग की ओर से दबाव डालकर अधिकतर मामलों में तो शिकायतकर्ता को प्रकरण को वापस लेने के लिये ही विवश कर दिया जाता है।

संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 13 की सरेआम धज्जियाँ उडाई जा रही हैं। लोक सेवक जो जनता के नौकर हैं, लोक सेवक से लोक स्वामी बन बैठे हैं। सबसे बडा आश्चर्य तो यह है कि न्यायपालिका के अन्दर भी इस प्रकार के मामलों में आपराधिक मुकदमें दायर करने के बजाय, विभागीय जाँच का ही सहारा लिया जाता है। जिन लोगों को इस प्रकार की नाइंसाफी एवं भेदभाव से जरा भी पीडा हो रही हो, या जिन्हें अपने नौकरों की कारगुजारियों को रोकने की जरा सी भी इच्छा हो, उन्हें चाहिये कि इस प्रकार के मामलों को अपने राज्य के उच्च न्यायालय में या सर्वोच्च न्यायलय में याचिका दायर करके संविधान के (क्रमशः) अनुच्छे 226 एवं 32 के तहत चुनौती दें।

Previous articleमहंगाई व नक्सलवाद मुद्दे पर उलझी लोकसभा व विधानसभा
Next articleवर्तमान सोच और हमारे देश की हालत
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मीणा-आदिवासी परिवार में जन्म। तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी! बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष! जीवन के 07 वर्ष बाल-मजदूर एवं बाल-कृषक। निर्दोष होकर भी 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे। जेल के दौरान-कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की! 20 वर्ष 09 माह 05 दिन रेलवे में मजदूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति! हिन्दू धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, समाज, कानून, अर्थ व्यवस्था, आतंकवाद, नक्सलवाद, राजनीति, कानून, संविधान, स्वास्थ्य, मानव व्यवहार, मानव मनोविज्ञान, दाम्पत्य, आध्यात्म, दलित-आदिवासी-पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़न सहित अनेकानेक विषयों पर सतत लेखन और चिन्तन! विश्लेषक, टिप्पणीकार, कवि, शायर और शोधार्थी! छोटे बच्चों, वंचित वर्गों और औरतों के शोषण, उत्पीड़न तथा अभावमय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययनरत! मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष-‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (BAAS), राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एंड रायटर्स एसोसिएशन (JMWA), पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा/जजा संगठनों का अ.भा. परिसंघ, पूर्व अध्यक्ष-अ.भा. भील-मीणा संघर्ष मोर्चा एवं पूर्व प्रकाशक तथा सम्पादक-प्रेसपालिका (हिन्दी पाक्षिक)।

8 COMMENTS

    • आदरणीय पाण्डेय जी, वैचारिक समर्थन के लिए आभार एवं धन्यवाद! आशा करता हूँ कि आगे भी मार्गदर्शन मिलता रहेगा!

  1. शानदार आलेख लिखने के लिये बधाई और साधुवाद। इसे कहते हैं, न्याय की बात करना। जो लोग धर्म, जाति, वर्ग आदि में उलझे हुए हैं, उन्हें फालतू की बातों को छोडकर इस प्रकार के मामलो में समर्थन देना चाहिये।

    • पंकज जी, आभार एवं धन्यवाद! आशा करता हूँ कि आगे भी मार्गदर्शन मिलता रहेगा!

  2. Apprehension expressed by the learned author appears to be : constitution of 4-member committee by Hockey India under the Chairmanship of Shri Rajiv Mehta, having former hockey players as members, for investigation of offence of sexual exploitation by team coach N.K. Kaushik, is an eye-wash and instead a criminal case should have been filed.
    It is opined that that there is a large scale breach of Articles 13 and 14 of the Constitution (14-Equality before law) and (13-Laws inconsistent with or in derogation of fundamental rights… being void) and matter should be taken up before High Court/Supreme under Articles 32/226 and that when there is one Constitution, why there be two remedial courses?
    I beg to submit : (1) there appears to be no breach of law / Constitution of India in constitution of a departmental committee; (2) a copy of findings of preliminary investigation has already been made available to the Police for action; (3) delinquent coach has been removed with a life ban; (4) it is valid in law to have both departmental action and criminal case; and (5) last but not the least Hockey India should be complimented for prompt action taken.

    • आभार एवं धन्यवाद! आशा करता हूँ कि आगे भी मार्गदर्शन मिलता रहेगा!

Leave a Reply to Pankaj Sattawat Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here