डॉ. नीरज भारद्वाज
सूचना प्रौद्योगिकी युग में दूरदर्शन अपना विशेष महत्व रखता है। यह दो शब्दों के योग से बना है। दूर और दर्शन अर्थात दूर के दर्शन करवाने वाला उपकरण। अंग्रेजी में इसे ‘टेलीविजन’ कहते हैं। यह भी दो शब्द के योग से बना है, टेली और विजन। ‘टेली’ ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘दूरी और ‘विजन’ लैटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘देखना’। कई बार लोग इसे टी.वी. भी कह देते हैं। आज प्रचलन में टीवी ही है। जहाँ रेडियो केवल श्रव्य अर्थात् सूचना, सन्देश और मनोरंजन का श्रवण माध्यम होता है। वहीं दूरदर्शन में दृश्य-श्रव्य दोनों का समावेश है।
कहा भी जाता है कि, एक चित्र हजार शब्दों पर भारी होता है। इस दृष्टि से टीवी की उपयोगिता और सार्थकता समाज में बढ़ती चली गई। विचार करें तो जनसंचार माध्यमों में इसका अपना महत्व है, सुविख्यात साहित्यकार कमलेश्वर ने दूरर्शन के बारे में कहा कि ‘‘दूरदर्शन सिनेमा नहीं है, दूरदर्शन अखबार नहीं है। यह रंगमंच कलाओं का प्रदर्शन मंच भी नहीं है। यह एक कल्चरल फैक्टरी है।’’ कहने का भाव रहा कि यहीं से फैशन, कार्यशैली, कलाओं आदि को नए आयाम मिले। टीवी के कार्यक्रम और इस पर दिखाए जाने वाले विज्ञापन व्यक्ति पर सीधे प्रभाव डालते हैं।
दूसरी ओर देखें तो दैनिक जीवन में दूरदूर्शन के हस्तक्षेप ने व्यक्ति की जीवन धाराओं को बदल दिया है। घर के ड्राईंगरूम में टीवी के माध्यम से लोग योगाभ्यास कर रहे हैं, मनोरंजन कर रहे हैं, वस्तु को देखकर उसे खरीदने का मन बना रहे हैं,हो-हुल्ला, हँसी मजाक आदि टीवी के साथ बांट रहे हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो टीवी ने मानव की दिनचर्या ही बदल दी थी किसी समय तक, व्यक्ति की रूचि बदल दी है और किसी हद तक सोच में परिवर्तन भी ला दिया था। अब इसका स्थान धीरे-धीरे इंटरनेट जनित मोबाइल ने ले लिया है।
टीवी के प्रकाश में आने की बात करें तो वर्ष 1925 में जे. एस. बेयर्ड ने टीवी उपकरण को बनाया। इसके माध्यम से तस्वीरों को प्रभावशाली ढंग से प्रसारित किया गया और जे. एफ. जेकिंस ने पहली बार अमेरिका में टीवी पर प्रसारित तस्वीरें दिखाई। इसके बाद टेलीविजन में एक नया परिवर्तन हुआ और मार्कोनी कंपनी ने रिसीविंग ट्यूब की पुरानी समस्याओं को दूर कर तस्वीरों में नयापन ला दिया। अब दृश्यों के साथ-साथ ध्वनि को भी जोड़ा गया। सन् 1930 में बोलते टेलीविजन अर्थात् ध्वनियुक्त टेलीविजन प्रकाश में आया।
टेलीविजन पर सर्वप्रथम कार्यक्रम सन् 1936 में बीबीसी द्वारा प्रारंभ किया गया। सन् 1939 में न्यूयॉर्क में लगे विश्व मेले में जनता ने टेलीविजन को देखा। इसके बाद टेलीविजन सारी दुनिया में तेजी से प्रसिद्ध होने लगा लेकिन अभी तक यह जनसंचार की अवधारणा से दूर था और उस समय ब्रिटेन में टेलीविजन के व्यक्तिगत रिसीवर बहुत ही कम लोगों के पास थे। आंकडें बताते हैं कि सन् 1930 से 1938 के बीच इनकी संख्या 400 थी। इसके बाद तो सन् 1939 में 7000 सेट दो महीने के अंदर ही बिक गए। धीरे-धीरे टेलीविजन की मांग बढ़ने लगी और उस पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में भी बढ़ोतरी होने लगी।
जहाँ तक भारत की बात है, भारत में 15 सितंबर,1959 को यूनेस्कों की सहायता से टेलीविजन कार्यक्रम का प्रसारण किया जा सका। सन् 1965 में भारत में नियमित रूप से एक घंटे का टीवी कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। वर्ष 1972 में दूरदर्शन के प्रसारण को स्थायी रूप दिया गया। सन् 1975 तक देश में दूरदर्शन के सात केंद्र स्थापित हो गए और 5 अगस्त, 1982 में एशियाई खेलों के दौरान भारत में रंगीन दूरदर्शन का सूत्रपात हुआ। सन् 2001 तक आते-आते देश में दूरदर्शन के इक्यावन (51) केंद्र कार्य करने लगे। टेलीविजन की विकास यात्रा निरंतर प्रगति कर रही है। इसमें कार्यक्रमों और चैनलों की बाढ़ सी आ गई है। आजकल प्रचंड भौतिकवादी लोग टीवी और उसके प्रसारण से दूरनई कार्यशैली में लगे हुए हैं। इंटरनेट सभी की आवश्यकता बना हुआ है।
मनुष्य के विकास के लिए जितना पढ़ना लिखना आवश्यक है उससे ज्यादा सुनना व देखना भी। टेलीविजन देखने और सुनने दोनों का काम करता है। दुनिया में हो रहे परिवर्तन का प्रभाव टेलीविजन के माध्यम से ही माना जा रहा है । वर्तमान में भी टीवी के दर्शक प्रचुर मात्रा में हैं। वर्तमान में यह मान लिया जाए कि आज भारत के हर घर में टीवी सैट हैं तो यह विचार गलत नहीं होगा, कुछ एक जनजातीय कबीलों आदि को छोड़कर। विचार करें तो टेलीविजन अमीर-गरीब, साक्षर-निरक्षर, बूढे-जवान सभी को अपने से जोड़े हुए है। यह राष्ट्रहित, विभिन्न संस्कृतियों, समाज की कार्यशैली आदि का ज्ञान कराता है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में टेलीविजन एक शक्तिशाली माध्यम है, जो अपने कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को अपने से जोड़े हुए हैं।
डॉ. नीरज भारद्वाज