गौ रक्षा पर भारत के प्रधानमंत्री के नाम पत्र

प्रतिष्ठा में
श्रीमान नरेंद्र मोदी जी
प्रधानमंत्री भारत सरकार नई दिल्ली

महोदय

सादर प्रणाम ।
एक समाचार के अनुसार राजस्थान की पथमेड़ा गौशाला में इस समय 135 से ₹140 किलो गौमूत्र बेचा जा रहा है । जिससे किसानों को बड़ा लाभ पहुंच रहा है और उनकी आर्थिक स्थिति सुधरती जा रही है। समाचार में कहा गया है कि लोग प्रातः काल गौ का ताजा मूत्र प्राप्त करने के लिए पंक्तिबद्ध होकर खड़े हो जाते हैं और किसान लोग अपनी-अपनी गायों का मूत्र उन्हें पिलाते हैं । जिससे लोगों का स्वास्थ्य भी सुरक्षित हो रहा है और किसानों को भी पर्याप्त लाभ मिल रहा है।
मैंने अपनी पुस्तक ‘ वैदिक धर्म में गौ माता ‘ में इस विषय पर पर्याप्त प्रकाश डाला है । मैंने उक्त पुस्तक में स्पष्ट किया है कि एक गाय 24 घंटे में लगभग 5 लीटर मूत्र देती है । यदि इसे ₹100 किलो भी किसान बेचे तो ₹500 प्रतिदिन एक गाय से उसे आय हो सकती है । इसके अतिरिक्त गाय के गोबर से हम जैविक खाद तैयार कर सकते हैं । गाय 24 घंटे में 5 से 7 किलो गोबर देती है । यदि इस 7 किलो गोबर में कुछ मिट्टी ,कुछ हरी पत्तियां और कुछ पानी एक उचित अनुपात में मिलाया जाए तो 20 – 21 किलो खाद तैयार की जा सकती है । उस खाद को भी कट्टों में पैक करके यदि ₹ 5 किलो से भी बेचा जाए तो भी उससे ₹ 100 प्राप्त हो सकते हैं ।
इसके अतिरिक्त गाय के गोबर और मूत्र से अनेकों औषधियां भी तैयार की जा सकती हैं। हवन के लिए समिधाएं भी गोबर से तैयार की जा रही हैं । साथ ही साबुन और कीटनाशक दवाएं , घरों में मच्छर आदि को भगाने के लिए तैयार की जाने वाली धूपबत्तियां आदि भी गौ के गोबर से तैयार हो सकती हैं । जिससे और भी अधिक आय एक किसान को हो सकती हैं।
अब आते हैं गाय के दुग्ध पर गाय के दूध से अनेकों लाभ हमें प्राप्त होते हैं जिससे स्वास्थ्य की रक्षा हो सकती है अनेकों दवाइयां गांव के ताजा दूध या गर्म दूध के साथ ली जाती हैं आयुर्वेद की उन सब दवाओं को तैयार कर और देश से अंग्रेजी दवाओं के व्यापार को पूरी तरह बंद करके यदि गाय केंद्रित स्वास्थ्य शिक्षा अभियान देश में चलाया जाए तो गांव के दूध से ली जाने वाली दवाओं के चलते हम सबके लिए गाय रखना या गाय के दूध का सेवन करना अनिवार्य हो जाएगा इससे देश के करोड़ों किसानों को लाभ होगा। साथ ही देश के लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा भी प्राकृतिक रूप से हो सकेगी । अंग्रेजी दवाओं के व्यापार या निर्यात को देश से बंद करते ही अनेकों लोगों को वनस्पतियों से औषधियां तैयार करने का अवसर उपलब्ध होगा और वे अपने आप औषधियों को बनाने लगेंगे तो उनकी आय बढ़ेगी।
‘ वीर सावरकर फाउंडेशन ‘ के एक कार्यक्रम में पिछले दिनों रेल से मुझे जमशेदपुर झारखंड जाने का अवसर प्राप्त हुआ था । तब मैं देख रहा था कि पूरे झारखंड में वनों का एक विस्तृत जंगल है । इसे वर्तमान दवा निर्माताओं ने केवल जंगल कहकर उपेक्षित कराने का षड्यंत्र रचा है। जबकि यह जंगल नहीं अपितु हमारे स्वास्थ्य की रक्षा का प्राकृतिक भंडार है । यदि पूरे झारखंड वासियों को पेड़ , पौधों तथा वनस्पतियों से औषधियां तैयार करने का काम दे दिया जाए तो पूरे झारखंड की अर्थव्यवस्था बदल सकती है । तब पूरा झारखंड सारे देश की स्वास्थ्य सुरक्षा की जिम्मेदारी उठा सकता है । इसके लिए अनिवार्य होगा कि अंग्रेजी दवाइयों को देश से पूर्णतया बंद कर दिया जाए। अंग्रेजी दवाइयों की दवा निर्माता कंपनियों और लोग हमारे देश के लोगों को बेरोजगार कर रहे हैं और करोड़ों लोगों को बेरोजगार कर उन्होंने चुपचाप घरों में बैठा दिया है। जिससे वह बेचारे आर्थिक कंगाली की मार झेल रहे हैं ।
प्रधानमंत्री जी ! हमारा देश बेरोजगार नहीं है , ना देश में बेरोजगारी है। देश को बेरोजगार या बेरोजगारी से ग्रस्त हम लोगों ने अपनी मूर्खतापूर्ण नीतियों के चलते किया है। स्वतंत्रता के उपरांत बनी सरकारों ने हमारे जुलाहों को बेरोजगार इसलिए कर दिया कि कपड़ा बनाने का काम बड़ी-बड़ी कंपनियों को दे दिया। लोहार , बढ़ई ,नाई ,धोबी आदि सबको भी ऐसी मूर्खतापूर्ण नीतियों के चलते बेरोजगार कर घरों में बैठाया गया है । यदि यह अपने परंपरागत रोजगार ओं में लगे रहते और समाज इनको सहायता करता रहता तो देश में बेरोजगारी भुखमरी आधी फैलती ही नहीं। हमें अपनी अर्थव्यवस्था के संदर्भ में यह ध्यान रखना चाहिए कि बड़ी कंपनियां रोजगार देती नहीं हैं , बल्कि रोजगार को छीनती हैं । ये बेरोजगारी समाप्त नहीं करती अपितु बेरोजगारी को बढ़ाती हैं। एक कंपनी आते ही हजारों लोगों को यदि रोजगार देने का स्वांग रचती हैं तो याद रखना चाहिए कि वह लाखों लोगों के हाथ का काम छीन भी लेती हैं ।
महोदय ! कुछ समय पहले ‘ सुदर्शन न्यूज़ चैनल ‘ पर जोधपुर के रहने वाले एक रामचंद्र नाम के सज्जन मेरे संपर्क में आए थे । जिन्होंने मुझे गोघृत से बनी एक औषधि दी थी । जिसमें मुश्किल से 20 ग्राम गोघृत था । उसे वह सज्जन ₹100 में बेचते थे । उन्होंने मुझे बताया था कि 2 गायों से वह ₹40000 प्रतिमाह कमाते हैं । उनकी उस दवाई की विशेषता थी कि यदि आपके कान में दर्द है तो आप उसको 2 टपका कानों में डाल लें । यदि सिर में दर्द है तो माथे पर और कनपटी पर रगड़ कर उसकी मालिश कर लें । यदि गले में दर्द है तो गले पर उसकी मालिश कर लें , जिससे नजला जुकाम आदि समाप्त हो सकते हैं । यदि आंखों में कोई परेशानी है तो आंखों में भी उसे स्याही की तरह लगा सकते हैं । इतने अधिक स्वास्थ्य लाभ उस छोटी सी शीशी में रखे हुए 20 ग्राम गोघृत से हमको मिल सकते हैं । जिसे उन्होंने कुछ अन्य औषधियों के साथ मिलाकर बनाया था । यदि हम देश के एमबीबीएस डॉक्टर्स के बारे में देखें तो ये हमारे नाक , गले , आंख , कान आदि के चेकअप के नाम पर ₹500 हमसे आराम से ले लेते हैं और दवाइयां अलग से बेचते हैं । जिससे छोटी-छोटी बीमारियों पर हमें हजारों रुपए खर्च करने पड़ते हैं । यदि हम रामचंद्र जी जैसे लोगों से उनकी तकनीक को पूरे देश में प्रचारित और प्रसारित कर हर किसान को ऐसी औषधि बनाने के लिए धन उपलब्ध कराएं और गौ के प्रति उसकी आस्था को उसकी अर्थव्यवस्था से बांधकर स्पष्ट करें तो गौ के प्रति सम्मान भाव अपने आप बढ़ जाएगा।
यदि औषधियों में मिलकर गाय का घी 20 ग्राम ₹100 का हो जाता है तो 100 ग्राम घी ₹500 का हुआ और 1 किलो घी ₹5000 का हुआ । यदि किसानों को इतना बड़ा लाभ एक गाय से होने लगेगा तो गाय को आवारा छोड़ना हर किसान बंद कर देगा। इसको आवारा पशु ही इसलिए बनाया गया या मान लिया गया है कि इससे अब कोई भी किसान अपना आर्थिक लाभ होता नहीं देख रहा या कहिए कि किसान से वह सारे साधन छीन लिए गए जिनसे गाय इस देश की अर्थव्यवस्था का केंद्र बन सकती थी । प्राचीन काल में गौ हमारी अर्थव्यवस्था का केंद्र थी और वह सारे देश का पालन पोषण करती थी । स्वास्थ्य की रक्षा करती थी इसीलिए हम उसे माता कह कर पुकारते थे । आज की युवा पीढ़ी गाय को माता जैसे शब्द से पुकारने पर हमारे पूर्वजों का और हमारे बुजुर्गों का मजाक उड़ाती है । इसमें उसका उसका दोष नहीं है , क्योंकि उसे बताया और समझाया ही ऐसा गया है कि गाय एक पशु मात्र है , और वह मनुष्य का भोजन भी है। किसान और गाय का संबंध समाप्त कर किसान की गाय माता को थाली में लाकर चट करने का कुछ लोगों ने षड्यंत्र रचा , जिसमें वह बहुत सीमा तक सफल हो चुके हैं।
यदि हम 25 करोड़ गाय इस देश में पैदा हो लेने देते हैं तो यह 25 करोड़ गाय सवा अरब आबादी की अर्थव्यवस्था का आधार बन सकती हैं । प्राचीन काल में हमारे देश के लोग गौधन को ‘ धन ‘ के नाम से भी पुकारते थे । उसका कारण यही था कि गाय हमारी अर्थव्यवस्था का आधार थी । यदि हम इसे फिर अपनी अर्थव्यवस्था का आधार बनाते हैं तो इससे बहुत सारे अशिक्षित लोगों को घर बैठे रोजगार का साधन प्राप्त हो जाएगा । करोड़ों लोगों को दवाइयां साबुन धूपबत्ती आदि बनाने का रोजगार प्राप्त हो जाएगा तो कुछ को खाद बनाने का रोजगार प्राप्त हो जाएगा । इसके अतिरिक्त कुछ को औषधियां तैयार करने का रोजगार प्राप्त होगा और कुछ को पंचगव्य से लोगों का उपचार करने का और जीविकोपार्जन करने का उचित माध्यम प्राप्त हो जाएगा। इस संबंध में पूरा खाका हमने अपनी उपरोक्त पुस्तक में खींचा है और स्पष्ट किया है कि कैसे गाय आज भी हमारी अर्थव्यवस्था का केंद्र बन सकती है ?
इसके लिए उचित होगा कि देश के वित्त मंत्रालय से संबध्द एक अलग गोधन विकास एवं संरक्षण मंत्रालय का गठन किया जाए ।
प्रधानमंत्री जी ! यदि हम इन उपायों को अपनाएं तो पर्यावरण संतुलन तो ठीक रहेगा ही साथ ही हमारी अर्थव्यवस्था का पहिया भी तेजी से दौड़ने लगेगा और हमारे बेरोजगार होते जा रहे किसानों व अशिक्षित लोगों को रोजगार भी प्राप्त हो जाएगा । इस पर आपकी सरकार को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है । सारा देश आपसे अपेक्षा करता है कि आप गऊ रक्षा के इन उपायों पर अवश्य विचार करेंगे और उन्हें अपनाने के लिए एक ठोस कार्य नीति को भी लागू करेंगे । इन्हीं अपेक्षाओं के साथ —
भवदीय
डॉ राकेश कुमार आर्य 

Previous articleमहान कलाम तुझे सलाम
Next articleहिंदू राष्ट्र स्वप्नदृष्टा : बंदा वीर बैरागी
राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,864 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress