कलयुग के मुर्गे

cock

रोज चार पर मुर्गों की अब,
नींद नहीं खुल पाती बापू|
इस कारण से ही तो अब वे,
गाते नहीं प्रभाती बापू|

कुछ सालों पहिले तो मुर्गे,
सुबह बाँग हर दिन देते थे|
उठो उठो हो गया सबेरा,
संदेशा सबको देते थे|
किंतु बात अब यह मुर्गों को,
बिल्कुल नहीं सुहाती बापू|
इस कारण से ही तो अब वे,
गाते नहीं प्रभाती बापू|

हो सकता है अब ये मुर्गे,
देर रात तक जाग रहे हों,
कम्पूटर टी वी के पीछे,
पागल होकर भाग रहे हों|
लगता है कि मुर्गी गाकर,
फिल्मी गीत रिझाती बापू|
इस कारण से ही तो अब वे,
गाते नहीं प्रभाती बापू|

नई सभ्यता पश्चिमवाली,
सबके सिर‌ चढ़ बोल रही है|
सोओ देर से उठो देर से,
बात लहू में घोल रही है|
मजे मजे की यही जिंदगी,
अब मुर्गों को भाती बापू|
इस कारण से ही तो अब वे,
गाते नहीं प्रभाती बापू|

पर पश्चिम की यही नकल तो,
हमको लगती है दुखदाई|
, |भूले अपने संस्कार क्यों,
हमको अक्ल जरा न आई|
यही बात कोयल कौये से,
हर दिन सुबह बताती बापू|
इस कारण से ही तो अब वे,
गाते नहीं प्रभाती बापू|

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लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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