मैं जब भी
फरोलता हूँ
अलमारी में रखे
अपने जरूरी कागजात
तो सामने आ ही जाती है
एक चिट्ठी 

जो भेजी थी
वर्षों पहले
मेरे दिल के
महरम ने
भले ही उससे
मुलाकात हुए
हो गए वर्षों
पर चिट्ठी
करा देती है अहसास
एक नई मुलाकात का
-विनोद सिल्ला
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रहा है। ऐसे में मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। प्रवक्ता डॉट कॉम इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।