आप ने फिर की बड़ी गलती

संदर्भ : आम आदमी पार्टी द्वारा भाजपा के जगदीश मुखी को मुख्यमंत्री प्रत्याशी बताना

सुरेश हिन्दुस्थानी
वर्तमान में राजनीति का स्तर कितना गिर चुका है, इसका साक्षात प्रमाण दिल्ली में देखने को मिल रहा है। राजनीति के नौसिखिए कहे जा सकने  वाले अरविन्द केजरीवाल जाने अनजाने में फिर पहले जैसी गलती करने की ओर कदम बढ़ाते दिखाई दे रहे हैं। अभी दिल्ली विधानसभा के लिए केवल सुगबुगाहट ही प्रारंभ हुई है, लेकिन केजरीवाल और उनके समर्थकों ने ऐसा प्रचारित करना शुरू कर दिया है, जैसे चुनाव प्रचार अंतिम चरण में पहुंच चुका है। कहा जा सकता है कि जब राजनीतिक तरकश में सारे तीर समाप्त हो जाते हैं, तब आगे की लड़ाई में आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल किन राजनीतिक हथियारों का प्रयोग करके अपना चुनाव प्रचार करेंगे।
दिल्ली विधानसभा चुनाव की पहल होते ही आम आदमी पार्टी के अरविन्द केजरीवाल ने स्वयं ही यह प्रचारित करना शुरू कर दिया है कि हमारी पार्टी को विधानसभा में 45 सीट प्राप्त होंगी। इससे एक बात तो साफ है कि केजरीवाल को अपने वर्तमान कद का बिलकुल भी अंदाज नहीं है। वर्तमान राजनीतिक अवस्था का अध्ययन करने से यह तो आसानी से दिखाई देता है कि अरविन्द केजरीवाल का जादू अब पहले जैसा नहीं रहा। कहीं न कहीं यह बात उनको भी पता है, तभी तो उन्होंने प्रारंभ से ही विधानसभा की राजनीतिक लड़ाई को भाजपा और आम आदमी पार्टी की सीधी टक्कर के तौर पर प्रचारित करना शुरू कर दिया है। इससे यह भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि वे कांगे्रस को इस बार भी लड़ाई से बाहर ही मानकर चल रहे हैं।
अरविन्द केजरीवाल ने अपने पार्टी समर्थकों की ओर से यह प्रचारित करना कि दिल्ली की लड़ाई अरविन्द केजरीवाल और भाजपा के जगदीश मुखी के बीच होने वाली है। इसके विपरीत भाजपा पहले ही यह स्पष्ट कर चुकी है कि यह चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाएगा। इसमें सबसे ज्यादा नासमझी की बात यही कही जाएगी कि जब भाजपा ने अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित ही नहीं किया तब अरविन्द केजरीवाल इसे घोषित करने वाले कौन होते हैं। यहां यह उल्लेख करना समीचीन सा लग रहा है कि आम आदमी पार्टी के नेता स्वयं को केवल जगदीश मुखी के टक्कर का मानकर ही चल रही है। ऐसे में यह स्वत: ही प्रमाणित हो जाता है कि नरेन्द्र मोदी का कद केजरीवाल से कई गुना ऊंचा है। क्या अरविन्द केजरीवाल, भाजपा के जादुई नेतृत्व प्रमाणित हो चुके नरेन्द्र मोदी के समक्ष टिक पाने में अक्षम महसूस करने लगे हैं। अगर ऐसा नहीं है तो दिल्ली विधानसभा के चुनाव को जगदीश मुखी बनाम केजरीवाल बनाने का प्रयास क्यों किया गया? इसे अरविन्द केजरीवाल की नासमझी नहीं तो और क्या कहा जाए कि वे जानबूझकर स्वयं को राजनीतिक भंवर में ले जाने का प्रयत्न कर रहे हैं। जो सत्य नहीं है उसको प्रचारित करके केजरीवाल क्या साबित करना चाहते हैं। कहीं इसके पीछे आप पार्टी की कोई गंभीर योजना तो नहीं है। हालांकि यह उनका अपना नजरिया हो सकता है कि अपनी पार्टी को विजय के करीब पहुंचाने के लिए वे कौन कौन से राजनीतिक हथियारों का उपयोग करेंगे। लेकिन भाजपा की ओर नाम घोषित नहीं करने के बाद भी उसको प्रचारित करना कहीं उनकी सबसे बड़ी भूल प्रमाणित न हो जाए। केजरीवाल एक और बड़ी गलती यह मानी जा सकती है कि जब दिल्ली की राजनीति में उनका प्रभाव दिखाई देने लगा था, तब उनको दिल्ली में स्थापित होने की राजनीतिक नीति अपनानी चाहिए थी, लेकिन उनकी महत्वाकांक्षाएं जाग्रत होने लगीं और वे दिल्ली की परिधि से बाहर निकलकर अपना जादू चलाने निकल पड़े। उनको संभवत: इस बात का अहसास नहीं था कि देश बहुत बड़ा है और दिल्ली बहुत ही छोटी। यह अरविन्द केजरीवाल का ऐसा प्रयास था, जैसे कोई व्यक्ति जमीन से सीधे ही छत पर जाने का प्रयास करता हो, इस प्रकार जाने में निश्चित ही बहुत बड़ी छलांग लगानी होती है, जिसका सामथ्र्य केजरीवाल के पास नहीं था, इसके अलावा वे सीढ़ी दर सीढ़ी जाने का प्रयास करते तो संभवत: एक दिन अपने मुकाम को अवश्य ही प्राप्त कर लेते। दिल्ली उनकी पहली सीढ़ी थी।
वास्तव में राजनीतिक वक्तव्यों के पीछे कोई न कोई ठोस कारण अवश्य ही होना चाहिए, लेकिन केजरीवाल प्रारंभ से लेकर अभी तक केवल आधारहीन बात ही करते रहे हैं। इस प्रकार की बातें निश्चित ही उनके राजनीतिक भविष्य पर बहुत बड़ा सवाल स्थापित करती हैं। हम जानते हैं कि पिछले चुनाव में दिल्ली की जनता ने अरविन्द केजरीवाल को सर आंखों पर बिठाया था, लेकिन केजरीवाल उस समर्थन का मखौल उड़ाने वाले अंदाज में जिम्मेदारी से भाग खड़ हुए। जबकि कांगे्रस ने बाकायदा लिखित में समर्थन दिया था। कांगे्रस के बयानों से आज भी यही लगता है कि उसने अरविन्द केजरीवाल को काम करने का अवसर दिया था, लेकिन उन्होंने केवल जनता को मूर्ख बनाने का काम किया और केजरीवाल बिना काम किए ही जनता के अरमानों पर पानी फेर गए। क्या कभी किसी ने सुना है कि खुद की सरकार को केवल काम नहीं करने देने के मुद्दे पर मुख्यमंत्री द्वारा धरना दिया गया हो। संवैधानिक दायरे में रहकर मुख्यमंत्री हर काम कर सकता है, उसे कोई रोक भी नहीं सकता। केजरीवाल का धरना वास्तव में एक ऐसा कदम था जो संविधान की मर्यादाओं का मखौल उड़ाता था। इसके अलावा केजरीवाल ऐसा काम करना चाहते थे, जो संविधान के विरुद्ध था, उस समय केन्द्र में संप्रग की सरकार थी। दिल्ली सरकार के कई कार्य केन्द्र के अधीन थे, लेकिन केजरीवाल खुद ही उन कामों को करना चाह रहे थे जो कि संभव ही नहीं था। ऐसे में उनको कार्य को परिणाम तक पहुंचाने में केन्द्र सरकार ही मदद कर सकती थी, लेकिन उस समय की केन्द्र सरकार ने दिल्ली सरकार का सहयोग नहीं किया। जिसका पूरा दोष केवल और केवल मनमोहन सिंह सरकार को ही देना चाहिए था। वर्तमान में दिल्ली में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के लिए केजरीवाल को जिम्मेदार माना जा सकता है, अगर वे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देते तो संभवत: चुनाव की नौबत नहीं आती।
वर्तमान राजनीतिक हालातों का अध्ययन किया जाए तो यह दिखाई देने लगा है कि दिल्ली विधानसभा के चुनावों में कांगे्रस अपने आपको मुकाबले से बाहर मानकर चल रही है। पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने एक समाचार चैनल को दिए साक्षात्कार में स्वयं स्वीकार किया है कि हमको जनता ने सबक दे दिया है। अब हम सब मिलकर चुनाव लडें़। इससे यह संकेत अवश्य ही मिल जाता है कि पूर्व के चुनावों में कांगे्रस में तमाम विरोधाभास रहे होंगे। बगावती तेवरों के बीच चुनाव लड़ी कांगे्रस पार्टी को जबरदस्त खामियाजा भुगतना पड़ा। शीला दीक्षित के स्वरों में इस हार की टीस अभी तक सुनाई दे रही है। उन्हें अभी भी अपनी हार दिखाई दे रही है, तभी तो उन्होंने भविष्य में चुनाव नहीं लडऩे का ऐलान कर दिया।
आम आदमी पार्टी द्वारा किया जा रहा झूठा प्रचार उनका अपना स्वभाव हो सकता है, लेकिन लम्बे समय तक उसके सहारे नहीं चला जा सकता। आज केजरीवाल के समक्ष राह तो है लेकिन उस राह पर अकेले ही चलने की राजनीति कर रहे हैं, जिससे आम आदमी पार्टी का सामान्य कार्यकर्ता उनसे बहुत दूर होता जा रहा है। अगर राजनीतिक दृष्टि से दिल्ली का आकलन किया जाए तो यह दृश्य जरूर सामने आता है कि भाजपा ने अपने जनाधार में व्यापक समर्थन हासिल किया है, लोकसभा चुनावों में भाजपा को पूरी सात सीट प्राप्त होना इस बात को प्रमाणित कर देता है। वर्तमान में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिलने के संकेत दिखाई देने लगे हैं।

8 COMMENTS

  1. यदि भाजपा पर दिल्ली की जनता को भरोसा है, तो विधान सभा भंग करवाने मे इतना विलम्ब क्यों किया?

  2. अरविन्द केजरीवाल का जगदीश मुखी को दिल्ली में भाजपा का मुख्य मंत्री का उम्मीदवार बताना गलत हो सकता है,पर क्या यह गलत नहीं है कि भाजपा दिल्ली का चुनाव नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़ेगी ?क्या यह जनता के साथ धोखा नहीं है? क्योंकि मोदी जी प्रधानमन्त्री का पद छोड़कर दिल्ली का मुख्य मंत्री तो नहीं बनेंगे न।

    • कैसे भूल गए रमश सिंह जी कि अनैतिक ढंग से Modi for PM, Kejriwal for CM का नारा लगा आआप ने स्वयं प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी को दिल्ली में आमंत्रित किया है! भारत का अभाग्य है कि स्वभाव से व्यक्तिवादी भारतीय मूल के अर्ध-बुद्धिजीवी वर्ग ने किसी भी विषय पर तर्क को भारतीय संदर्भ में नहीं बल्कि स्वार्थ-वश केवल परिस्थितियों के अनुसार व्यक्त किया है| स्वामी विवेकानन्द के कथन, “जब तक लाखों लोग भूखे और अज्ञानी हैं तब तक मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को गद्दार समझता हूँ जो उनके बल पर शिक्षित बना और अब उनकी ओर ध्यान तक नहीं देता|” को दोहराते मैं आपसे पूछता हूँ कि भारतीय संदर्भ (भारत-हित) में क्या आप निष्पक्षता से श्री अरविन्द केजरीवाल और प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी में तुलना कर पाठकों को अपने मन की बात बता सकते हैं?

      • आप इस सन्दर्भ में “इस राजनीति की काट फिलहाल मुश्किल” पर मेरी टिप्पणी पढ़िए.ऐसे ट्वीटर पैर मैं नमो का फॉलोवर भी हूँ और प्रधान मंत्री को जानिये पोर्टल पर भी मेरे सुझाव जाते हैं,पर अभी तक उस दिशा में कोई कार्य होता नहीं दिखाई देता.मेरे ऐसे ही सुझावों में से एक यह सुझाव है कि गंगा नदी को पांच वर्षों में साफ़ किया जा सकता है.मैं यह बतलाना चाह रहा हूँ कि न मैं किसी का भक्त हूँ न किसे का विरोधी.मेरा अपना समर्थन व्यक्ति को नहीं बल्कि सिद्धांत को है.

        • श्री अरविन्द केजरीवाल और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी में तुलना करने पर आप किसी व्यक्ति-विशेष नहीं परन्तु सिद्धांत में विश्वास रखते हुए केवल उस सिद्धांत के फल को महत्त्व दे रहे हैं। आप सहज भूल जाते हैं कि फल लगने में समय चाहिए और हमें धैर्य। हम अधीर हो सिद्धांत व उस सिद्धांन्त के प्रतिपालक व्यकित्व में उपयुक्तता अथवा समानता नहीं बल्कि उनमे पक्षपात ढूंढते अपने सार्वलौकिक लक्ष्य से भटक जाते हैं।

          • आपने शायद मेरी वह टिप्पणी नहीं पढ़ी या पढ़ने की आवश्यकता नहीं समझी.नमो का बैलेंसिंग ऐक्ट उनके सब बड़बोलेपन का पोल खोल देता है और तब वे सिद्धांत व् अपने वादे से बहुत दूर जाते हुए नजर आते हैं.

  3. केजरीवाल केवल बयानवीर हैं, बयान दे कर थ्रिल पैदा करना उनकी हॉबी है। अब उनको सपना आ गया , या वे मोदी लहर से डर गए यह वे ही जानते हैं , पर राजनीति को मुद्दों से भटकाना उन्हें अच्छी तरह आता है , पर वे यह भूल रहे हैं कि उनका यह फार्मूला अब पुराना हो गया है , और जनता भी समझने लगी है। पिछले चुनाव के बाद यमुना में काफी पानी बाह चुका है ,राजनीतिक गंदगी में भी कुछ सफाई हुई है , इस लिए अब इन बयानों से ही काम चलने वाला नहीं है ,49 दिन का भी जादू अपनी पोल खोल चूका है ,आत्म मुग्धि की हालत से निकल कुछ ठोस करना होगा नहीं तो मार खाने के लिए भी तैयार रहेँ

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