अभिलाषा
हर आँगन में उजियारा हो, तिमिर मिटे संसार का।
चलो, दिवाली आज मनायें, दीया जलाकर प्यार का।
सपने हो मन में अनंत के, हो अनंत की अभिलाषा।
मन अनंत का ही भूखा हो, मन अनंत का हो प्यासा।
कोई भी उपयोग नहीं, सूने वीणा के तार का ।
चलो, दिवाली आज मनायें, दीया जलाकर प्यार का।
इन दीयों से दूर न होगा, अन्तर्मन का अंधियारा।
इनसे प्रकट न हो पायेगी, मन में ज्योतिर्मय धारा।
प्रादुर्भूत न हो पायेगा, शाश्वत स्वर ओमकार का।
चलो, दिवाली आज मनायें, दीया जलाकर प्यार का।
अपने लिए जीयें लेकिन औरों का भी कुछ ध्यान धरें।
दीन-हीन, असहाय, उपेक्षित, लोगों की कुछ मदद करें।
यदि मन से मन मिला नहीं, फिर क्या मतलब त्योहार का ?
चलो, दिवाली आज मनायें, दीया जलाकर प्यार का।
विश्वासों के दीप
जीवन के इस दुर्गम पथ पर सोच-समझकर कदम बढ़ाना।
विश्वासों के दीप जलाकर, अंधकार को दूर भगाना।
आयोजन अंधों ने की है आपस में ही टकराने का ।
रौंद के सारे रिश्ते-नाते आगे ही बढ़ते जाने का ।
दूर हो रहे जो अपनों से, है अब तुमको उन्हें मनाना।
विश्वासों के दीप जलाकर, अंधकार को दूर भगाना।
मानवता का मान बढ़ेगा, मानव धर्म निभाने से ।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, क्या होगा कहलाने से ?
तुमको तप्त धरा के तन-मन पर होगा मोती बिखराना।
विश्वासों के दीप जलाकर, अंधकार को दूर भगाना।
हुई रक्तरंजित वसुंधरा, थर्राई हैं दशों दिशाएं।
कूंक हूई जहरीली कोयल की, गुमसुम हो गई हवाएं।
सुर हो गया पराया अब, कल तक जो था जाना-पहचाना।
विश्वासों के दीप जलाकर, अंधकार को दूर भगाना।
देख आगमन पतझड़ का, उतरा है चेहरा बहार का।
स्वर अब कौन सुनेगा, गुमसुम पड़े हुए सूने सितार का।
स्नेह, शील, सद्भाव, समन्वय से घर-आँगन को महकाना।
विश्वासों के दीप जलाकर, अंधकार को दूर भगाना।
विश्वासों के दीप जलाकर, अंधकार को दूर भगाना| अति सुन्दर!
भाव भरी ,प्रसंसनीय