अच्छा नही।।

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दीप बनकर जलो तो जलो ठीक है
आग बनकर भड़कना तो अच्छा नहीं।
ज्योति बनकर जलो ज्ञान की ठीक है
अहं करके चहकना तो अच्छा नही।
रास्ते में उजाला सभी के बनों
कर अँधेरे थिरकना तो अच्छा नही।

दूसरों का सहारा हमेशा बनों
बेसहारा बनाना तो अच्छा नही।
प्रेम से तुम बुराई को भी मात दो
जंग से जीत जाना तो अच्छा नही।
बाती बनकर जलो तुम दिये की सदा
दूसरों से भी जलना तो अच्छा नही।

दीप की लौ से जलकर उजाला करे
औरों का घर जलाना तो अच्छा नही।
फर्श से अर्श जाती है लौ ये सदा
अर्श से फर्श गिरना तो अच्छा नही।
दीप जलकर किया करते है रोशनी
दूसरों को जलाना तो अच्छा नही।

धीमे धीमे जलो शीतल हो रोशनी
ज्वाला बनकर दहकना तो अच्छा नही।
दूर करते अँधेरे धरा के चलो
उसको चादर से ढकना तो अच्छा नही।
रूप सुन्दर लगे रोशनी यूं करो
आँखों का चकमकाना तो अच्छा नही।

तुम उजाले स्वयं में समाहित करो
बन अँधेरे मचलना तो अच्छा नहीं।।

 - अजय एहसास

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