कविता

जनता के नाम

-पीयूष पंत

मना लो तुम आज़ादी, फ़हरा लो तिरंगा

कौन जाने कल, अब क्या होगा,

जिस तरह हमारी अभिव्यक्ति पर

पहरा लगाया जा रहा है,

देश की गरिमा और अस्मिता को

विश्व बैंक के हाथों

नीलाम किया जा रहा है,

‘विकास’ के नाम पर ग़रीबों, मज़दूरों

और किसानों का आशियाना

उजाड़ा जा रहा है,

और जाति-धर्म के नाम पर क़ौम को

आपस में लड़ाया जा रहा है,

उठो कि अब थाम लो हाथ में मशाल तुम!

बचा लो, बचा लो तिरंगे की ‘आन’ तुम!!