आखिर क्या है बिहार सरकार की नक्सल-नीति ?

0
132

-आलोक कुमार-   naxals
बिहार की सरकार काफी समय तक नक्सलवाद को कानून और व्यवस्था की समस्या कह कर इसकी भयावहता का सही अंदाजा लगाने में नाकामयाब रही है। बिहार में भी इनकी सत्ता के आगे राज्य सरकार बेबस है। लगभग 38 जिलों में से 34 जिलों में नक्सलियों का दबदबा है। यक्ष -प्रश्न यह है कि ” जब बिहार के अधिकांश जिले नक्सल प्रभावित हों, इसके बाद भी इस समस्या का हल निकालने के लिए कोई ठोस नीति आज तक क्यों नहीं बनाई गई है ? गौरतलब है कि बिहार सरकार ने अन्य नक्सल प्रभावित राज्यों कि तरह बिहार में ” ऑप्रेशन ग्रीन- हंट” की मंजूरी नहीं दी है ? निःसंदेह इसका लाभ यहाँ के नक्सली उठाते हैं। अगर ख़ुफ़िया सूत्रों कि मानें तो पिछले वर्षों  की तुलना में 2013 में बिहार में नक्सलियों का हमला कई गुना अधिक बढ़ा। 2013 में लगभग 60 से अधिक जवान और नागरिक इन हमलो में मारे गए । वहीं हथियारों की लूट भी बड़े पैमाने पर हुई । गौरतलब है कि 2013 में पूरे देश में नक्सलियों ने जितने हथियार सुरक्षा – बलों से छिने गए , इसका 50 फीसदी अकेले बिहार से छीना गया। बिहार पुलिस के हौसले पूरी तरह पस्त हैं। 2013 में एक भी नक्सली को पुलिस मार गिराने में  सफल नहीं हो पाई । इसके बावजूद भी बिहार सरकार के गृह विभाग कि “कुम्भकर्णी निद्रा” नहीं टूटी है। बिहार में नक्सल प्रभावित जिलों में नक्सलियों के सफाये के लिए कोई अभियान नहीं चलाया जा रहा है ? आखिर क्या है प्रदेश सरकार कि नक्सल नीति ? वो मारते रहें और हमारे जवान और नागरिक भेड़- बकरी कि तरह मरते रहें ? क्यों नहीं दी गई यहां “ऑपरेशन ग्रीन हंट” जैसे अभियानों को मंजूरी ? क्यों नहीं मरा एक भी नक्सली हमलावर ? ऐसे में सरकार राज्य नागरिकों की सुरक्षा के प्रति कितनी चिंतित है यह समझा जा सकता है !!

सरकार को चाहिए कि वो नक्सलवाद के उन्मूलन की दिशा में गंभीरता से सोचे, सिर्फ बैठकें कर लेने और मीडिया के सामने बयानबाजी कर देने से इस समस्या का समाधान नहीं होने वाला है । ठोस कार्रवाई वक्त की मांग है। प्रदेश के राजनेता किसी बड़े नक्सली हमले के बाद शहीदों के शवों पर श्रद्धांजलि के नाम पर फूलों का बोझ बढ़ाने जाते हैं और नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने के लिए बड़ी-बड़ी कसमें खाते हैं। लेकिन जब नक्सलवाद के खिलाफ ठोस रणनीति या कार्रवाई करने का समय आता है तो हमारे नेता “गांधीवादी राग” अलापने लगते हैं। बिहार में सियासी बिसात पर नक्सलवाद को जब-तब सहलाया गया , पुचकारा गया। ये समस्या भी वोट की सियासत में उलझ कर रह गई। 2013 में ही बिहार के मुख्यमंत्री का एक बयान आया था कि ” बिहार में नक्सलवाद कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं है। ” नक्सलियों को उन्होंने ‘‘ अपने लोगों ’’ की संज्ञा दी थी। अब इन्हीं ‘ अपने लोगों’ ने नीतीश जी को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया है ।

लगातार हो रहे नक्सली हमले सरकार और समाज के लिए चेतावनी हैं। इसमें अब कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि ” नक्सली अब केवल क्षेत्र विशेष में फैले निरंकुश एवं असंतुष्ट ‘अपने’ नहीं रह गए। वे एक ऐसा अनुत्तरित सवाल हो गए हैं, जिसका जवाब ढूंढ़ना न केवल जरूरी है, बल्कि हमारी मजबूरी भी।” अब वक्त आ गया है कि बातों की भाषा न समझने वाले नक्सलियों को उन्हीं की जुबान में नसीहत दी जाए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here