झोलाछाप डॉक्टरों से कब मुक्त होंगे ग्रामीण?

सूर्याकांत देवांगन

धान का कटोरा के नाम से विख्यात छत्तीसगढ़ में प्राकृतिक संपदा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। जिसका उचित ढ़ंग से उपयोग किया जाए तो न सिर्फ देश को फायदा होगा बल्कि राज्य में भी आर्थिक विकास तेज होंगे और लोगों को रोजगार मिलेगा। परंतु नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण यहां आर्थिक विकास की गति आशा के अनुरूप नहीं हो पा रही है। हालांकि राज्य सरकार की ओर से इस दिशा में कई सार्थक प्रयास किए जाते रहे हैं। परंतु जमीनी स्तर पर उसे लागू करना टेढ़ी खीर बनता जा रहा है। बात सिर्फ आर्थिक क्षेत्र की ही नहीं बल्कि सामाजिक क्षेत्रों विशेषकर स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी इसका नकारात्मक प्रभाव सामने आ रहे हैं। राज्य सरकार की ओर से मुख्यमंत्री स्वस्थ पंचायत योजना काफी महत्वपूर्ण है। जिसके तहत ग्राम स्तर पर स्वास्थ्य कार्यक्रमों में जनभागीदारी सुनिश्चित करने और पंचायतों एवं ग्राम स्तरीय स्वास्थ्य संस्थाओं की क्षमता विकसित कर स्वास्थ्य सेवाओं का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करने पर बल दिया गया है। परंतु सरकार के तमाम घोषणाओं व दावों के बावजूद अभी भी छत्तीसगढ़ के कई जनजातीय व ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का बेहद अभाव है। डॉक्टर सहित स्वास्थ्य कर्मचारियों के लगभग 50 फीसदी पद खाली पड़े हैं। प्रशासनिक आदेश के बावजूद डॉक्टर ग्रामीण क्षेत्र में सेवाएं नहीं दे पा रहे हैं। ऐसी परिस्थिती में ग्रामीण क्षेत्र के स्वास्थ्य केंद्र मात्र दिखावे के रह गए हैं। अलबत्ता सप्ताह में एक बार स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी केंद्र पर आकर औपचारिकता अवश्यण पूरी कर रहे हैं। दूसरी ओर निजी स्वास्थ्य केंद्रों में ईलाज कम लूट की स्थिति ज्यादा है।

ऐसे में महंगे ईलाज से बचने, दूर स्थित निजी या सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र जाने से मुक्त होने व तत्काल ठीक होने की आवश्यकता आदि कारणों से ग्रामीण अपने बीच में उपलब्ध बिना डिग्री वाले डॉक्टर का सहारा लेने पर मजबूर हैं। जिन्हें लोग झोलाछाप डॉक्टर के नाम से ज्यादा जानते हैं। ये ही डॉक्टर वक्त पर उनके लिए भगवान साबित होते हैं। मौसमी बीमारियों के समय उनकी भूमिका और बढ़ जाती है। जब बारिश आदि कारणों से मरीजों का गांव से निकलना व सरकारी अमले का गांव पहुंचना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में ये डॉक्टर ही एकमात्र सहारा बने होते है। ये डॉक्टर या तो गांव में या आस-पास कहीं निवास करते है और पैदल या किसी अन्य आवागमन के साधनों के साथ मरीजों के हमदर्द बने रहते हैं।

झोलाछाप डॉक्टर ऐसे डॉक्टर होते है जिनके पास किसी प्रकार की कोई विशेष डिग्री नहीं होती है और ना ही कोई विशेष अनुभव होता है। ये शहरों या नगरों में रहकर किसी विशेषज्ञ डॉक्टर की क्लिनिक या किसी मेडिकल स्टोर्स में एक कम्पाउंडर या सेवक के रूप में कुछ वर्षो तक कार्य करते है। बाद में थोड़ी सी जानकारी और सम्पर्क हो जाने के बाद अपना अवैधानिक सेवा व्यवसाय शुरू कर देते हैं। इस प्रकार के डॉक्टरों की शिक्षा भी बहुत ही कम व सामान्य होती है। ज्यादातर ऐसे डॉक्टर अपने व्यवसाय को भलीभांति चलाने के लिए उन ग्रामीण क्षेत्र का रूख करते है, जहां सरकारी स्वास्थ्य विभाग की पहुंच बहुत कम है। इसी कारण वे सामान्य स्वास्थ्य परेशानियों से लेकर बड़े गंभीर बीमारियों को अपने हाथ में लेकर इलाज शुरू कर देते हैं। यदि में उत्तर बस्तर के कांकेर जिले की बात करें तो यहां हरेक ग्राम पंचायत में तकरीबन दो या तीन ऐसे डॉक्टर अपनी सेवाएं देते हुए मिल जाएंगे। कुछ डॉक्टर तो इतने प्रसिद्ध हो गए हैं कि नेम प्लेट के साथ खुद का क्लिनिक खोल रखा है और छोटे-छोटे सर्जरी तक कर लेते है। उनके पास दूर-दूर से मरीज आ रहे है। अज्ञानतावश उनकी कोशिश कभी-कभी जानलेवा भी साबित हो जाती है। जिसका पूरा नुकसान पीडि़त को उठाना पडता है।

हाल ही में दो-तीन मामले सामने आए हैं जिसमें झोलाछाप डॉक्टर की लापरवाही व गलत इलाज के कारण मरीज मौत के गाल में समा गए। ऐसी ही एक घटना कांकेर के कापसी से 10 किमी दूर देवपुर पंचायत के पीवी 1 गांव की है। जहां सामान्य बुखार से पीडि़त 22 वर्षीय प्राणकृष्ण को एक झोलाछाप डॉक्टर ने गलत इंजेक्शन लगा दी। जिससे मरीज की तत्काल मौत हो गई। बताया गया कि इंजेक्शन इक्सपाइरी तारीख की थी। आंकड़ों के अनुसार कापसी क्षेत्र में झोलाछाप डाक्टर के लापरवाही का यह तीसरा मामला है। कुछ इसी तरह के आंकड़े छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों के भी हैं। फिर भी आम लोगो का इनसे विश्वास नहीं टूटा है। जनजातीय क्षेत्र में झोलाछाप डॉक्टरों के पैर पसारने की मुख्य वजह यह है कि वहां पर सरकारी स्वास्थ्य विभाग की सुविधाए खस्ताहाल हैं। ग्रामीणों को मजबूरी में इनकी सेवा लेनी पड़ती है।

आंकड़ों पर नजर डालें तो छत्तीसगढ के कांकेर जिले में स्वास्थ्य विभाग का बहुत बुरा हाल है। जिले में जितने डॉक्टरों की जरूरत है, उसके मुकाबले आधे भी पदस्थ नहीं हैं। अधिकारियों का मानना है कि शिक्षकों का मिलना आसान है लेकिन डॉक्टरों का मिलना मुश्किल है। यही नहीं जिले के प्रायः प्राथमिक तथा सामुदायिक स्वास्थ्य केद्रों में डॉक्टरों की कमी होती है। जिला अस्पताल में पर्याप्त डॉक्टर नहीं होने से गंभीर मरीजों को निजी अस्पताल या बाहर ले जाना मजबूरी हो जाता है। उच्च वर्ग तो किसी तरह इलाज की व्यवस्था कर लेता है। लेकिन समस्या गरीब तबके को लेकर है। कई गरीब परिवारों को तो गहने तथा जमीन बेचकर इलाज कराना पड़ा है। शासन प्रशासन की ओर से इसे गंभीरता से नहीं लिए जाने से समस्या गहराते जा रही है और जिले भर में डॉक्टरों का टोटा है।

कांकेर जिले में पदास्थापित डॉक्टरों की स्थिति

अस्पताल   स्वीकृत    कार्यरत    रिक्त
कोमलदेव अस्‍पताल कांकेर341915
भानुप्रतापपुर161006
चारामा201406
धनेलीकन्‍हार160313
नरहरपुर040103
अमोडा160907
अंतागढ़140113
दूर्गूकोंदल160115
कोयलीबेड़ा240519
कुल1606397

आंकड़े फरवरी 2012 तक के हैं।

इस तालिका को देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि क्षेत्र के मरीजों को कितनी तकलीफों का सामना करना पड़ता है। ग्रामीण जनजातीय क्षेत्र में जिस गति से सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार हो रहा है। उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आगामी कई वर्षों तक बिना डिग्री झोलाछाप डॉक्टर जीवन रक्षक की भूमिका निभाते रहेंगे। ऐसे डॉक्टर स्थानीय परिस्थितियों को बखूबी समझते हैं। आने वाले मरीजों की आर्थिक स्थिती से वाकिफ होते हैं और अपने काम चलाउ डिग्री और अनुभव के आधार पर कभी कभी बेहतर इलाज कर मरीजों का विष्वास भी जीत लेते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में इनकी मजबूत स्थिती का सबसे प्रमुख कारण यह है कि ऐसे झोलाछाप डॉक्टर न तो सरकारी अमले की तरह मरीजों की उपेक्षा करते हैं और न ही निजी स्वास्थ्य केंद्रों की तरह मरीजो को लूटते है। ऐसे में सरकार को इस क्षेत्र में विशेष पहल करने की जरूरत है। दिखावे मात्र के लिए रह गए स्वास्थ्य केंद्रों में आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। स्वास्थ्य कर्मचारियों की संख्या बढ़ाई जाए। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र में स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता लाने की जरूरत हैं। (चरखा फीचर्स)

3 COMMENTS

  1. सोचो जरा ये लोग ना हो तो ग्रामिणो का क्‍या होगा क्‍योकि कि bams,म्ब्ब्स इाक्‍टर तेा गांव जायेगें नही गूनाह गार कौन है क्‍वालिफाइड डाक्‍टर सरकार या ये लाग ठिक है तरिका गलत है परंतु लोगों काे इलाज तो मिल रहा है सरकार को तो इनके लिये सिमा निर्धारित करके छुट दे देना चाहिये

  2. जरा इमानदार होकर सोंचिय के कहीं झोला छाप चिकित्सक से ज्यादा खतरनाक तो नहीं होते जा रहे है सो काल्ड डिग्री धारी चिकित्सक फीस के साथ कमीशन खोरी और इलाज के नाम पर भय दिखा कर लूट
    क्या यही एथिक्स है

  3. सर्कार को LMP या मेडिकल डिप्लोमा शुरू करना चाहिए जो मैं १९८०स से कह रहा हूँ.
    रूस के मोदक बनया स्वास्थ्य केंद्र को बंद कर कम से कम ५० बेड के अस्पाताल बनाये – उन्हें अम्बुलानस से, अछे सद्कोंसे जोड़े
    डाक्टर भी आदमी होता है ऋषि नहीं – उससे कम पढ़े, कजोर छात्र शहरमे रहें और उन्हें आप सेवा का पाठ न पढ़ायें.
    स्वास्थ्य बजट पर पैसा बध्येजं( अभी १ प्रतिशत है केवल होना चाहिए १०)

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