प्रवक्ता न्यूज़

अहोई अष्टमी

व्रत नहीं यह, ममता की मौन साधना है,
संतान के जीवन में उजास की प्रार्थना है।
नयनों में दीपक, हृदय में विश्वास की लौ,
माँ अहोई के चरणों में समर्पण की आराधना है।

कार्तिक की संध्या में जब नभ तारा झिलमिलाए,
तब माँ की आँखों से उपवास का कमल मुस्कुराए।
अन्न न हो, जल न हो, पर अंतः में है भक्ति की गंगा,
हर श्वास में बस एक ही जप — “मेरा बालक मंगल पाए।”

काँपती उँगलियों से बनता साही का चित्र,
दीवार पर उभरती ममता की कहानी पवित्र।
पुत्रों का आशीष और सात जन्मों का बंधन,
अहोई की ओढ़नी में लिपटी माँ की निश्छल भावना।

साँझ ढले जब तारा गगन में जागे,
माँ का मुख चंद्र-सा आभा से भागे।
कथा की हर पंक्ति में झरते आँसू मोती,
प्रार्थना बन जाती है माँ की अमर ज्योति।

मिट्टी की सोंधी गंध में माँ का समर्पण,
संतान की हर हँसी में उसका जीवन।
व्रत नहीं यह, आत्मा की वाणी है,
जहाँ भूख नहीं, बस वात्सल्य की कहानी है।

अहोई अष्टमी —
माँ के अधरों पर मौन व्रत,
हृदय में विश्वास का दीप,
और आकाश में चमकता वह तारा —
जिससे हर माँ अपने बच्चे का भविष्य जोड़ देती है।

  • डॉ सत्यवान सौरभ