यूपी को कहां तक ले जाएंगे अखिलेश यादव !

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सोनू कुमार

यूपी की जनता ने मुलायम सिंह के गुंडाराज से त्रस्त होकर 2007 मे मायावती के सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय के नारे पर भरोसा कर सत्ता कि चाबी बहन जी के हाथ मे सौंपी लेकिन बसपा सरकार के 5 सालों मे भ्रष्टाचार ने यूपी के हर सरकारी विभाग को दिमक कि तरह खोंखला कर दिया था, भ्रष्टाचार का बोलबाला इतना बढ गया था कि पैसे देने के बाद भी लोगों को दफ्तरों के चक्कर काटने परते थे और अधिकारियों की गालीयां भी सुननी पड़ती थी । 2012 मे चुनाव का बिगुल बजा सभी पार्टीयां अपने पुरे दमखम के साथ मैदान मे थी, लोग समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर वो किस खेमे मे जाए कांग्रेस और बीजेपी सत्ता मे नहीं आने वाली थी ये सबको पता था माया-मुलायम दोनो का दुखद अनुभव यूपी ने देख लिया था, ऐसे मे पहली बार सपा की कमान मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव के हाथों मे सौंपी, अखिलेश यादव ने भी दिन-रात एक कर दिया लोगों को ये भरोसा दिलाने मे कि समाजवादी पार्टी अब बदल चुकी हैं, उस दौरान पार्टी ने कुछ ऐसे फैंसले भी लिए जिससे लोगों को उन पर यकिन हुआ । साइकिल पर सवार सिर पर लाल टोपी पहनकर अखिलेश ने पुरे यूपी का दौरा किया और गांव-गाव जाकर लोगो को ये भरोसा दिया कि अगर उनकी सरकार आई तो यूपी मे बदलाव आएगा । समाजवादी पार्टी ने संकेत भी दिए की सपा को अगर बहुमत मिला तो अखिलेश यादव यूपी के मुख्यमंत्री बनेगे, आखिर कार लोगों ने फैंसला किया कि अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाया जाए शायद उनके जिवन मे ब्याप्त अधकार के बादल छंट जाए, क्योंकी अखिलेश यादव एक पढे लिखे नौजवान नेता हैं जिनमे काम करने की ललक और उर्जा दिखती हैं जो एक कर्मठ नेता मे होनी चाहिए । यूपी ने अखिलेश को मौका दिया और वो भी ऐसा कि एक इतिहास बन गया, समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला और अखिलेश यादव यूपी के मुखिया बने । समाजवादी पार्टी को जिस उम्मीद से लोगों ने सत्ता सौंपी अभी तक तो ऐसा कुछ हुआ नहीं उल्टा सरकार बनने से अब तक यूपी मे जो-जो हुआ उसने लोगों को सपा के पिछले सरकार और मुलायम सिंह यादव की यादें ताजा हो गई, एक बार फिर यूपी अपने आप को ठगा हुआ महसुस कर रहा हैं । चुनाव के ठिक बाद वोटों के गिनती के दिन यानी 7 मार्च 2012 को झांसी के बबीना विधानसभा से सपा प्रत्याशी चंद्रपाल सिंह यादव ने बसपा प्रत्याशी कृष्ण पाल सिंह यादव सहीत मीडिया पर हमला किया मीडियावालों के साथ भी मारपीट हुई और उनके कैमरे तक तोड़ दिए गए क्योकी उन्होने मारपीट की घटना को कैमरे मे कैद कर लिया था, बाद मे उनके खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज कराइ गई लेकिन अभी तक उनके खिलाफ कोई कार्यावाई नहीं हुई । अखिलेश यादव के शपथग्रहण के ठिक बाद उसी मंच पर सपाई ने जो हुरदंग मचाई और गुंडागर्दी की उसे पुरे देश ने देखा यह संकेत था सपाइयों का, कि समाजवादी पार्टी के मुख्यमंत्री भले हीं बदल गए हो लेकिन चरित्र नहीं बदला बाद मे मीडिया के दबाव मे 4-5 लोगों को कार्यवाई के नाम पर पार्टी से निकाल दिया गया । अखिलेश यादव के कैबिनेट मे कुछ ऐसे चेहरों को शामिल किया गया जिसे देखकर यूपी हीं नहीं पुरा देश दंभ रह गया और किसी के समझ मे नहीं आया कि आखिर कौन सी मजबुरी थी कि राजा भैया और मुख्तार अंसारी जैसे लोगों को मंत्री बनाया गया जबकी सपा के पास पूर्ण बहुमत था, हालांकी उसी समय ये तस्वीर साफ हो गई कि मुख्यंमंत्री भले हीं अखिलेश यादव बने हों लेकिन सरकार मुलायम सिंह और शिवपाल सिंह चला रहे हैं क्योकी ये दोनो चेहरे मुलायम सिंह के करीबी रहे हैं । 19 मार्च को टेक्सटाईल मिनीस्टर महबुब अली के स्वागत समारोह मे उनके समर्थन मे मुरादाबाद मे खुलेआम सड़को पर फायरिंग समाजवादीयों के चेहरे बेनकाब कर गया । 5 मई 2012 को हंडीया से सपा के विधायक महेश नारायण सिंह पर सैदाबाद पुलीस पोस्ट पर तैनात हरिवंश यादव को धमकाने और मारपीट करने का आरोप लगा तो उसी महिने 27 मई 2012 को बस्ती के इंजीनीयर पर दबाव डालकर 50 कारोर

का ठेका कैंसिल करके मंत्री आर के सिंह ने अपने करीबी को दिलवाया । 31 मई 2012 को फैजाबाद मे सपा नेता मंसुर लाही ने एक म्यूनिसिपल अधिकारी रावेन्द्र सिंह के साथ नगरपालीका ऑफिस मे घुसकर मारपीट की क्योकी उनके कर्मचारी हडताल पर थे । 6 जुन 2012 को अम्बेदकर नगर मे समाजवादी पार्टी के नेता राज बहादुर यादव पर एनटीपीसी के कर्मचारियों के साथ मारपीट का आरोप लगा, नेता जी खुद टांडा थर्मल पावर प्लांट मे कॉंट्रैक्टर हैं । यूपी मे नए सरकार बनने के साथ हीं कई हत्याएं हुई, कुछ विरोधी नेताओं और कार्यकर्ताओं पर हमले भी हुए लेकिन यूवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का हनीमून पीरियड समाप्त नही हुआ । किसी भी मामले मे अखिलेश यादव ने कारवाई तो दुर की बात सफाई तक नहीं दी । बिजली से बेहाल यूपी को जब बिजली नहीं दे पाए तो शाम को 7 बजे के बाद सभी मॉल और कंपनीयों को बिजली नहीं देने का फरमान जारी कर दिया, हाल हीं मे विधानसभा सत्र के अंतिम दिन अखिलेश यादव ने विधायक फंड से विधायकों को 20 लाख रुपये तक की गाड़ी खरिदने की छूट दे डाली, जब विपक्ष और मीडिया ने मुद्दे को उछाला तो शाम को ये कहा गया कि जिनके पास गाड़ी नहीं हैं उनको कहा गया था । उत्तर प्रदेश मे मानसुन की देरी की वजह से फसलें बर्बाद हो रही हैं, किसान का हाल बूरा हैं सबको उम्मीद थी की अखिलेश यादव इसको लेकर गंभीर हैं लेकिन आमलोगों के लिए उनकी गंभीरता सबके सामने आ गई । हालांकी दुसरे दिन सरकार ने अपना फैसला वापस ले लिया क्योकी मीडिया मे इस फैसलें को लेकर काफी किरकीरी हुई । अखिलेश के इस फैसले के पिछे तर्क यह दिया गया कि विधायकों को अपने क्षेत्र मे घुमने के लिए गाड़ीयों की जरुरत हैं और बहुत से ऐसे विधायक हैं जो गाड़ी खरीदने कि स्थिती मे नहीं हैं, तो क्या जनता के पैसे से विधायक जी को लग्जरी गाड़ी खरीद कर देना उनका उचित फैसला था ? नेताओं की ये मंशा जाहिर करती हैं कि जनता कि सेवा के लिए राजनीति मे आने का जो ढिढोरा पिटा जाता हैं वो कितना सही हैं । राजनीति कितनी भ्रष्ट हो चुकी हैं नेताओं की यह मंशा बतलाती हैं, सबके दिमाग मे राजशाही का फितुर जमा हैं, क्योकी सेवा करने के लिए बस, ट्रेन और प्राइवेट गाड़ियों से भी अपने क्षेत्र मे घुमा जा सकता हैं । विधायकों को हर महिने तनख्वाह मिलती हैं अगर अपवाद मे ऐसा कोई हैं भी तो वह बैंक से कर्ज लेकर अपने लिए गाड़ी खरीद सकता हैं । अखिलेश यादव खुद महंगी गाड़ीयों के शौकिन हैं ये तो सब जानते हैं लेकिन उनके विधायक और मंत्री भी कुछ कम नहीं हैं, सपा नेता प्रमोद तिवारी के पास नैनो से लेकर प्राडा तक सभी लग्जरी गाडीया हैं, हाल हीं मे सुल्तानपुर के एमएलए ने 25 लाख की फोर्च्यूनर गाडी खरीदी हैं तो फैजाबाद के बाहुबली नेता अभय सिंह के साथ 8 गाडीयों का काफिला चलता हैं । यूपी सरकार का ये फैसला एक तरह से असंवैधानिक भी था शायद इसलिए अगले दिन उसे अपना फैसला बदलना पड़ा, क्योकि विधायक फंड जनता का पैसा हैं जिसे इस तरह खुलेआम नेता अपने उपर खर्च नहीं कर सकते । हाल हीं मे ऑडीट विभाग ने कई ऐसे मामले सामने लाए हैं जिसमे कई नेताओं ने अपने फंड को नीजी कंपनी, संस्था या अपने हीं घर मे खर्च कर दिया हैं । सपा के पूर्व एमपी मोहनलाल गनसे प्राइवेट रिजर्व बनवाया अपने फंड से, इनके अलावा भी कइ लोग हैं जिन्होने अपने फंड से अपने घर तक पक्की सडक, खुद के स्कुल मे जनता का पैसा लगा दिया । जिस राज्य पर कड़ोरो का कर्ज हो प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से राज्यों के फेहरीस्त मे सबसे निचे से ढुढा जाए वहां इस फैसले पर सवाल उठने लाजीमी थे, क्या ये फैसला अपने विधायक को महंगे गिफ्ट ना लेने का कंपोशसन दिया था ? हालांकी अखिलेश यादव पहले ऐसे नेता नहीं हैं जिन्होने कोई ऐसा फैसला किया हैं जो आम आदमी के पैसे को बर्बाद करने का फैसला हो इससे पहले मायावती ने मुर्तियों पर 2000 करोड खर्च किए, और ट्रैफिक पुलीस का ड्रेस नीला कर दिया था अब अखिलेश उसे खाकी कर रहे हैं । तेलांगना के 15 एमएलए को 25 लाख की गाडीयां सरकार कि तरफ से तोहफे मे दी गई, पश्चिम बंगाल मे दीदी ने पुरे कोलकाता को निले रंग मे रंगने का आदेश दिया, तो तमिलनाडू मे करुणानिधि ने 1000 करोड का विधानसभा भवन बनवाया, लेकिन सरकार बदलते ही जयललीता पुराने भवन मे विधानसभा ले गई, बिहार के मुखिया मनरेगा के पैसों से लग्जरी गाडीयां खरीदते हैं । कई बार तो सरकार के फैसलों को बदलने मे करोड़ो रुपये खर्च होते हैं, जो आम लोगों कि जेब से जाता हैं । अखिलेश यादव के अभी तक कार्यकाल से कभी ऐसा नहीं लगा कि जिस उम्मीद से लोगों ने उन्हे कुर्सी पर बिठाया था उस रास्ते को भी वो ढुढ पाए हो । अभी तक अखिलेश यादव की प्राथमिकताओं मे अपने नेताओं को खुश रखना, पिछली सरकार की गलतीयां ढुढना या यूं कह सकते हैं की माया को यूपी से मिटाने की कोशिशें करना, पिछली सरकार द्वारा लिए गए फैसलों, घोषणाओं को बदला प्रमुख रहा हैं, अखिलेश के एजेंडे मे अभी तक ना तो आम आदमी नजर आया हैं और ना हीं उसका विकाश । यूपी सरकार के पिछले कइ फैसलों से ऐसा लगता हैं कि या तो अखिलेश यादव वाकई मे राजनीति मे कच्चे हैं उनमे अनुभव की कमी हैं या फिर कुछ लोग हैं जो उनसे ऐसे फैसले करवा रहे हैं ताकी बाद मे यह कहा जा सके कि वे सरकार चलाने मे फेल हो गए, जैसा कि सपा के कुछ नेता मानते भी हैं अधिकारियों के सुझाव से फैसला लिया गया था । अखिलेश यादव के फैसले मायावती द्वारा लिए गए फैसलों कि याद दिलाता हैं मायावती के आस पास रहने वाले अधिकारी और नेता हीं उनको ले डुबे लेकिन अखिलेश यादव का राजनैतिक करियर अभी शुरु हुआ है और उनके पास मौका हैं यूपी पर लंबे समय तक राज करने का, लेकिन ये तब संभव होगा जब वे लोगों के दिलों पर राज करें और इसके लिए उनको खुद अपने विवेक से फैसले लेने होगे नहीं तो सफर शुरु होने से पहले हीं खत्म हो जाएगा । अखिलेश यादव से जितनी उम्मीदे यूपी को थी लगता नहीं की मुख्यमंत्री उस पर खडे उतरेंगे और सरकार बनने से अभी तक अखिलेश ने कुछ भी ऐसा नहीं किया जिससे लोग उम्मीद कर सके सिवाय कुछ चुनावी वादों के पुरा करने के जिनमे छात्रों को लैपटॉप और बेरोजगारों को भत्ता देने का झुनझुना शामिल हैं । समाजवादी पार्टी के मुखिया का सिर्फ चेहरा बदला हैं पार्टी का चरित्र नहीं ये तो शपथग्रहण के दिन हीं साफ हो गया इसलिए यूपी इतना तो जान चुकी हैं गुंडाराज खत्म नही होगा फिर भी लोगो को अखिलेश से बहुत सारी उम्मीदे हैं, लेकिन ऐसा लगता हैं जिस यूपी ने सोचा होगा कि अखिलेश की अगुवाई मे वो राज्य मे विकाश की रोशनी देखेगा उसे अब विकाश की चमचमाती धुप से पहले हीं करप्शन, गुंडाराज, और कुब्यवस्था की वो काला परछाई दिखने लगी हैं जो हर रोशनी को उजाला करने से पहले हीं अंधेरे मे तब्दील कर देता हैं । कुछ लोगों का यह भी तर्क हैं की अभी सिर्फ कुछ हीं महिने बीते है सरकार को लेकिन हमारे यहां एक कहावत हैं जो अभी याद तो नहीं हां उसका मतलब ये होता हैं कि जन्म के समय बच्चे का लक्षण हीं बता देता है कि वो बड़ा होकर क्या करेगा अगर इस कहावत के चश्मे से अखिलेश यादव सरकार को देखा जाए तो आप खुद हीं अंदाज लगा सकते हैं आने वाले दिनों मे कितना और क्या-क्या होगा ।

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