परम्पराएँ प्रसारणकी (4) आपात काल

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बी एन गोयल

इस से पहली कड़ी में आपात काल के दौरान सह सचिव आर एन प्रसाद और चटर्जी साब कीबात चीत के अंश थे. आज बात करते हैं इस की पृष्ठ भूमि की –

25 जून 1975 को आपातकाल लागु होने से देश का एक तरह से नक्शा ही बदल गया था.सत्ता और सुरक्षा की सांठ गाँठ हो गयी थी.पुलिस की वर्दी में एक छोटा अधिकारी भी एक वरिष्ठ सिविल कर्मचारी से अधिक विश्वसनीय हो गया था क्योंकि उस के हाथ में डंडा था. चटर्जी जैसे पढ़े लिखे और आत्म विश्वासीव्यक्ति बहुत कम थे.इंदिरा गाँधी ने गरीबो और पिछड़े वर्गों के उद्धार के लिए 20 सूत्री  कार्यक्रम बनाया. इस से पहले वे बेंको का राष्ट्रीयकरण कर चुकी थी और भूत पूर्व देसी रियासतों के राजाओं के प्रिवी पर्स भी समाप्त कर दिए गए थे. यहाँ मुझे याद आते है सर थॉमस मोर. ये16 वीं शताब्दी में इंग्लेंड में हुए थे और एक विचारक और दार्शनिक थे.

उनने सन 1516 में एक किताब लिखी – Utopia. उनने इंग्लेंड के सम्राट किंग हेनरी VIII कोयह अवधारणा दी – यूटोपियन समाज की. यूटोपियन अर्थात एक पूर्ण परफेक्ट औरआदर्श समाज जिस में सब को न्याय मिले, कोई गरीब न हो, कोईबेरोज़गार न हो,हर दृष्टि से हर व्यक्ति सुखी और संपन्न हो आदि आदि . यह एक प्रकार से काल्पनिक मानसिकउडान थी. शायदबीस सूत्री योजना इसी से प्रेरित थी.  उद्देश्य कितना ही अच्छा हो लेकिनकिसी भी योजना को बनाना और उसे क्रियान्वित करना – दोनों में काफी अंतर होताहै. यहाँ यह समझा गया किक्रियान्वयनका काम रेडियो यानी आकाशवाणी का ही है क्योंकि यह एक मात्र सरकारी मीडिया तंत्र था. इस तरह हमारी सत्ताधीश सरकार ने गोयबल्सऔर डॉन क्विक्जोट को भी पीछे छोड़ दिया. एक ब्लॉग में उदाहरण सहित लिखा है कि इंदिरागाँधी के प्रेरणा स्रोत अडोल्फ़ हिटलर थे.शायद वे ठीक ही हों. गोयबल्सहिटलर का प्रचार मंत्री था. उस का सिद्धांत था की यदि कोई झूठ 100 बार बोला जाये तो वह 101 वीं बार सच मान लिया जायेगा.देश के हर आकाशवाणी केंद्र को 20 सूत्रों पर पूरे जोर शोर से कार्यक्रम करने के निर्देश जारी कर दिए गए.

सू प्र मंत्रालय में श्री आर एन प्रसाद की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी जिस का काम इससारे अभियान को मॉनिटर करना था.केन्द्रों को निर्देश दिए गए कि वे इस पर आधारित एक साप्ताहिक रिपोर्ट म.नि. भेजे और म. नि. केन्द्रों की रिपोर्ट पर आधारित एक Consolidated रिपोर्ट मंत्रालय को भेजे. मंत्रालयमेंएक प्रकोष्ठ बना जिस का काम था.इसरिपोर्ट का टेबुलेशन और उस की एक समीक्षात्मक रिपोर्ट एक चार्ट के रूप में तैयार करना.

इस में ऊपर की पंक्ति में बाएं से दायें एक एक खाने में सूत्र के नाम होते थे और बायीं तरफ ऊपर से नीचे केंद्र के नाम होते थे. चार्टएक बड़ी टेबल टॉप के आकार का होता था. टेबुलेशन और समीक्षा करते थे कमेटी के दुसरे सदस्य डॉ. एन भास्कर राव. राव साब कम्युनिकेशन रिसर्च के व्यक्ति थे. तीसरे व्यक्ति होते थे महानिदेशक चटर्जी सा०स्वयंजिन को इन दोनों की टिपण्णी सुननी होती थी.लेकिन वे भी साथ में अपनी टिपण्णी देते रहते थे.

अब आप अपनी कल्पना में वह विडियो देखें(यह एक उदहारण मात्र है)

बीस सूत्र -महिला कल्याण, बाल श्रम की रोक थम श्रमिक कल्याण, अनुसूचितजन जाति कल्याण, किसानों को ऋण,  ग्रामीणों के कर्ज की माफी, बंधुवामजदूरीकी रोक थाम, ग्रामीण विकास – आवास व्यवस्था आदि आदि.

मान लीजिये अक्टूबर 1975 – 15 से21 अक्तूबरकी रिपोर्टपर चर्चा चल रही है-

भास्करराव – इस सप्ताह में सूत्र1 (किसानों को क़र्ज़ की माफ़ी)अहमदाबाद केंद्र ने 40, भुज ने50, बंगलौर ने 15,दिल्ली ने केवल 4 ………………प्रोग्राम किये –

प्रसादसा०– चटर्जी साब, दिल्ली केंद्र को कसिये– इस तरह से नहीं चलेगा.

चटर्जी – (होंठो में) Rubbish

भास्कर राव – सूत्र नंबर 12 अनुसूचित जन जाति कल्याण – जालंधर30, जयपुर 35, रोहतक 15 ………………….. आदि आदिकार्यक्रम किये.

प्रसाद सा० – ये बिलकुलठीक नहीं है – आप के ये रेडिओ स्टेशन कुछ कर नहीं रहें हैं

चटर्जी ० ……..(होठो में) ……….Non sense

इस के बाद वह वार्तालाप था जो पूर्णतः सत्य है –

“चटर्जी साहब,आपदेख भाल कर काम कीजिये ऐसा न हो नौकरी से हाथ धो बैठे”

“प्रसाद साहब, अपनी चिंता करो – आपपुलिस वाले हैं. यहाँ के बाद आप को नौकरी की मुश्किल पड़ेगी. मेरी फ़िक्र मत करो, मेरास्तीफा हमेशा मेरी जेब मैं रहता है, आज भी तीन युनिवार्सिटी कीवाईस चांसलरशिप की ऑफर मेरे पास है.”

‘अरेरे आप तो बुरा मान गए – मैं  तो मजाक कर रहा था’

‘परन्तु प्रसाद साब मैं बिलकुल सीरियस हूँ ……. मेरे पास तो मेरी किताबों की रायल्टी ही काफी होती है.”

इन के साथ संजय गांधी ने भी अपना पांच सूत्रीय कार्यक्रम शुरूकिया. इन के सूत्र थे – -वयस्क शिक्षा, -दहेज प्रथा की समाप्ति, वृक्षारोपण और परिवार नियोजन औरजाति प्रथा उन्मूलन

चटर्जी सा० ने इन दोनों महानुभावों को भरसक समझाने का प्रयत्न किया कि जालंधर और रांची की समस्याएँ अलग अलग हैं, गुवाहाटी और शिमला में काफी अंतर हैं, पटना और भुज में कोई मेल नहीं है अतः कार्यक्रम भी स्थान विशेष के अनुसार होते हैं. लेकिन कोई समझने कोतैयारही नहीं था. कुछ समय के बाद मंत्रालय ने इस कमेटी द्वारा बनाई गयी एक भारी भरकम रिपोर्ट म. नि. को भेजी थी. चटर्जी सा० ने उस पूरी रिपोर्ट को पढ़ा और उस के हर पृष्ठ के बायीं तरफ अपने संक्षिप्त टिपण्णी – Rubbish औरNonsense अथवा Agreeलिख कर प्रत्येक केंद्र को भेज दी.

 

आपात काल मेंइस तरह के निर्भीक व्यक्ति विरले ही देख्नने को मिलतेथे.येबी बी भोंसले जैसे सीधे और शरीफ इंसानथे जो आपात काल की बलि चढ़ गए. भोंसलेसाबअपने अनूठे मराठी अंदाज़ के व्यक्ति थे. भरी गर्मी में भी अपना काले रंग का कोट और काली टोपी पहन कर आते थे. गलत काम तो उन से हो ही नहीं सकता था क्योंकि ठीक काम करते समय भी वे कई बार सोचते थे. कोई भी काम करने से पहले – यहं तक कि – ऑफिस के किसी भी कागज़

पर भी हस्ताक्षर करने से पहले अपने नाक का स्वर देखते थे कि वह अनुकूल है अथवा प्रतिकूल. अपनी इसी अनिर्णय के स्वभाव के कारण आपातकाल में उन की छुट्टी कर दी गयी.यहएक अकेली इस तरह की घटना थी. मुझे बहुत ही क्षोभ हुआ था. al  india radio

(क्रमशः…………अवस्थी जी ….. रोहतक)

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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बी एन गोयल
लगभग 40 वर्ष भारत सरकार के विभिन्न पदों पर रक्षा मंत्रालय, सूचना प्रसारण मंत्रालय तथा विदेश मंत्रालय में कार्य कर चुके हैं। सन् 2001 में आकाशवाणी महानिदेशालय के कार्यक्रम निदेशक पद से सेवा निवृत्त हुए। भारत में और विदेश में विस्तृत यात्राएं की हैं। भारतीय दूतावास में शिक्षा और सांस्कृतिक सचिव के पद पर कार्य कर चुके हैं। शैक्षणिक तौर पर विभिन्न विश्व विद्यालयों से पांच विभिन्न विषयों में स्नातकोत्तर किए। प्राइवेट प्रकाशनों के अतिरिक्त भारत सरकार के प्रकाशन संस्थान, नेशनल बुक ट्रस्ट के लिए पुस्तकें लिखीं। पढ़ने की बहुत अधिक रूचि है और हर विषय पर पढ़ते हैं। अपने निजी पुस्तकालय में विभिन्न विषयों की पुस्तकें मिलेंगी। कला और संस्कृति पर स्वतंत्र लेख लिखने के साथ राजनीतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक विषयों पर नियमित रूप से भारत और कनाडा के समाचार पत्रों में विश्लेषणात्मक टिप्पणियां लिखते रहे हैं।

2 COMMENTS

  1. आप ने लेख पढने के लिए समय निकाला और अपनी टिपण्णी दे – आप का हार्दिक धन्यवाद –

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