प्रवासी श्रमिक संबंधित तीनों निर्णय काल विरुद्ध : मानवीय-वित्तीय विजन का अभाव

लॉक डाउन आवश्यक था। किंतु 24 मार्च को 4 घंटे की पूर्व सूचना पर अर्ध रात्री से लागू किया जाने वाले यकायक लॉक डाउन की घोषणा की विधि विजन विहीन थी। अर्थात जो जहाँ है वहीं रहेगा । मोदी जी को ऐसा करने के चार कारण थे। वो कोरोना प्रसार की अंतर्राष्ट्रीय गति से सकते में थे और भारत 31 जनवरी से 24 मार्च तक का समय गंवा चुका था। उसकी भरपाई वो स्लॉगिंग विधि से करने की सोच से ग्रसित थे। दूसरे उन्हे देश में अपनी फॉलोइंग, मीडिया, न्यायपालिका और कार्यपालिका पर पूर्ण विश्वास था ।  कार्य पालिका आज्ञा कारिता, न्यायपालिका  विधायिका की सर्वोच्चता, मीडिया और  देश भक्त राष्ट्र प्रेम की खुराक के साथ उनके निर्णय को आवश्यकता अनुसार सूचना और काल्पनिक जगत मे संभाल लेंगे। मोदी जी को इन  सभी पक्षों ने बिल्कुल भी निराश नही किया है। अत: मोदी जी के एड्वेंचरिस्टिक पद्यति  के लॉक डाउन और कोरोना मे राष्ट्रीय युद्ध लॉक डाउन 1,2 और 3 के निरंतर गुणन खंडों में  जारी है।           मोदी जी के सभी सेनानायको ने मोर्चे संभाले हुए हैं। राष्टृवादियों ने मर्कज, जमाती , मुस्लिम और मौलाना मोहम्मद साद को संभाला हुआ है। न्याय पालिका में सर्वोच्च न्यायालय ने श्रेष्ठतम स्तर पर “राइट टू लाइफ”  के संवैधानिक सिद्धांत  पर विशेष राष्ट्रीय स्थिति महत्वपूर्ण मानते हुए  श्रमिको के विषय को  तुरंत सुनवाई  के योग्य नही माना। अंततः श्रमिको के अस्तित्व, भूख, भीड़ और घर पर ही सुरक्षा के मनोविज्ञान की नासमझ को विधायिका शक्ति पुंज कैबिनेट और उसके मुखिया, प्रधान मंत्री को श्रमिको को उनके घर जाने और “राइट टू लिव ” की बात को बिना सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के ही मानना पड़ा। अंतर बस इतना रहा की पहले इन प्रवासी श्रमिको की व्यवस्था को सर्वाइवल स्तर की पूर्ण दुरुस्तता के बाद लॉक डाउन करते तो अति श्रेष्ठ रहता। अब तो 40 दिन इन प्रवासी श्रमिकों में कितने कोरोना ग्रस्त हो गए होंगे और इस  समयाविपरीत श्रमिकों के स्थानांतरण में कितनो को और संक्रमित करेंगे कहा नही जा सकता।  

        मीडिया और भक्त दोष मुक्त हैं। गंगा पुत्र भीष्म भी दोषमुक्त थे, वो हस्तिनापुर सिंहासन से बंधे थे। ये दोनो महाभारत के दसवें तक लड़ेंगे ही सम्राट के लिए। 25 अप्रैल 2020 को 24506 कोरोना मरीज थे, जो 3 मई 2020 को 39980 हो चुके हैं। आठ दिवस के आधार पर इस संक्रमन की  वृद्धि दर 64.25% है (26अप्रैल से 3 मई) । साथ ही 25 अप्रैल से 3 मई तक प्रतिदिन संक्रमित व्यक्तियों की संख्या उत्तरोत्तर बढ़ती रही है। एक और करम सरकार ने किया है, कि आई सी एम आर की  प्रति दिन संध्या की 9 बजे के मरीजो के आंकड़ो की घोषणा पर रोक लगा दी है। सरकार ने स्वास्थ विभाग को ही आंकड़े घोषित करने के लिए अधिकृत किया है। दोनो के आंकड़ो मे साम्यता नही होती थी। आई सी एम आर के आंकड़े अधिक होते थे।       संकट यह है की सरकार से, कोरोना से और मीडिया के प्रस्तुति करण तीनो से डर लगता है जब वो कहते हैं की कोरोना से हम लडाई जीत रहे हैं। अरे प्रति दिन बीमारों की संख्या बढ़ रही है। मृतकों की संख्या बढ़ रही है । जाँच रिपोर्ट 13 – तेरह दिन में आ रही है। एम्स के निदेशक कह रहे हैं की देश में कोरोना संक्रमण का शिखर जून में हो सकता है।    

       औद्योगिक नगरो महानगरों से मजदूरों की कतारें बसों, रेलों और पैदल पथों पर दस दिनों तक लगी रहने की संभावना है। फिर ये 21 दिन का कोरेनताइन  उसके बाद ठीक हुए तो घर पहुंचेगे ना? इस बीच आय शून्य और व्यय पूरा राज्य सरकारों पर या किस पर ? अर्थात इन प्रवासी मजदूरों पर आधारित आर्थिक गतिविधियाँ जून माह मे भी नही आरंभ हो सकेंगी – अफसोसनाक। अब ये ना कहिये की इन्हे रुक जाना था। वस्तुत : इनको लॉक डाउन से पूर्व 7 दिन का समय माइग्रेट करने के लिए देना चाहिए था। तब सक्रमन भी इतना नही था और अब फैलता भी कम। अब इस पर तो जो कहा जायेगा की राष्ट्रीय सोच नही है आलोचकों की । मनुष्य के संकट काल में अपने घर और अपनो के साथ रहने के मनोविज्ञान को समझने मे सरकार असमर्थ व विफल रही।        इन प्रवासी श्रमिको की समस्या की मेडिकल स्थिति पर कोई बात करना निरर्थक है। जिन स्थितियों में विस्थापन हो रहा है , वही ठीक से हो जाय तो अच्छा है। किंतु एक जटिल आर्थिक बिंदु संमुख खड़ा है। इन श्रमिको की यात्रा का भुगतान इस दयनीय श्रमिक अवस्था में कौन करेगा । केंद्र सरकार, राज्य सरकार या मजदूर स्वम, अरे उन पर तो बेरोजगारी की मार के बाद रोटी भी नही खाने को। राज्यों का मना करना अन्यायपूर्ण और भेदभाव पूर्ण है। जब छात्रो को सरकार अपने व्यय से ला सकती हैं तो श्रमिकों को भी लाना चाहिए। बापसी की बाद में देखेंगे। इसी बीच कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रवासी श्रमिको के घर बापसी के किराए का भुगतान कांग्रेस द्वारा किए जाने की घोषणा कर दी है। डॉ देशबंधु त्यागी 

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