विविधा

अमर शहीद पं. चन्द्रशेखर आजाद

23 जुलाई जयंती पर विशेष लेख

डॉ. किशन कछवाहा

पुण्य भूमि भारत की इस पावन धरती ने अनेक नर रत्नों को जन्म दिया है जिन्होंने अपने पौरूष, शौर्य और संकल्प से उसका मान बढ़ाया है। ऐसे ही अनेकों ने महापुरूषों एवं क्रांतिकारियों की परम्परा पर चलते हुये देश के स्वाभिमान और संस्कृति के लिये अपने आपको समर्पित कर देश भक्ति की मशाल को जगाये रखा । उन्हीं में से एक थे पं. चन्द्रशेखर आजाद। जो व्यक्ति देश के लिये जीता है और देश के लिये भरता है, वही अजर अमर होता है, इस महापुरूष ने जितने दिन जीवन जिया-अपनी विलक्षण प्रतिभा, स्वाभिमान और अटूट देशभक्ति का ही परिचय दिया ।

राष्ट्र जीवन की बलिवेदी पर अपने को न्यौछावर करने वाले इस विलक्षण व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति का जन्म एक अभावग्रस्त परिवार में हुआ था। इसके बावजूद उन्होंने अपने जीवन में भौतिक लालसाओं पर अपनी दृष्टि डाली ही नहीं। स्वयं देश के लिये समर्पित रहे और अपने साथियों को उसी राह पर चलने के लिये प्रोत्साहित करते रहे। देश की गुलामी का कलंक दूर करने के लिये शंखनाद करने वाले इस यशस्वी जननायक की जयन्ती पर उनका पावन स्मरण लोभ एवं कुदृष्टि की ओर प्रेरित करने वाली वर्तमान परिस्थितियों में प्रेरणादायक सिध्द होगा।

इस महान बलिदानी भारतमाता के सपूत का जन्म झाबुआ की अलीराजपुर तहसील के भाभरा ग्राम के एक ब्राम्हण परिवार के घर पर अभावग्रस्त परिस्थितियों में हुआ था। उनके स्वनाम धन्य पिता श्री सीताराम और माता जगरानी देवी अपनी अत्यंत छोटी सी कृषि भूमि के जरिये अपने परविार का किसी तरह लालन-पालन करते थे। वनवासी बहुल इस क्षेत्र में दूर दूर तक एक भी पाठशाला नहीं थी। इस कारण बालक चन्द्रशेखर को शिक्षा के लिये काशी के संस्कृत विद्यालय में भेजने का निर्णय लिया गया था। वहां उन्होंने अल्पकाल में ही अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया। यहां रहकर उन्होंने अध्ययन तो किया ही साथ ही साहस, स्वाभिमान और अटूट देशभक्ति का पाठ भी सीखा। यह वह समय था जब अंग्रेजी शासन के खिलाफ असहयोग आन्दोलन का ज्वार उभार पर था, विदेशी वस्तुओं की होली जलायी जा रही थी। स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग का आग्रह किया जा रहा था।

चन्द्रशेखर जी बचपन से ही कुशाग्रबुध्दि के साथ निर्भीक एवं साहसी भी थे अध्ययन काल के दौरान उन्हीं दिनों बालक चन्द्रशेखर बिजली के खम्बे से सटकर खडे। तभी एक कांस्टेबल ने डपटकर पूछा यहां क्या कर रहे हो ? आजाद ने डरने का नाटक किया और चकमा देकर भाग निकले। आने जाने वालों ने देखा कि इस बालक ने ठीक चौराहे पर पोस्टर चिपकाया है जिसमें सरकार को कड़ी चेतावनी दी गयी थी।

उस समय के बाल सुलभ विचारों वाले युवक ने भविष्य की अपनी भूमिका स्वयं निर्धारित कर ली थी। एक अन्य घटना । एक दिन सत्याग्रहियों के साथ बुरा सुलूक कर रही पुलिस को देखकर यह चौदह वर्षीय बालक अपने अपको रोक नहीं पाया। उसने उस अंग्रेज अधिकारी पर पत्थर से अचूक निशाना साधा। उस पत्थर की चोट से वह अधिकारी लोहू लुहान हो गया। उस समय तो बालक चन्द्रशेखर भाग सकने में सफल हो गये लेकिन दो माह बाद पकड़ लिये गये। अदालत में पेश किया गया। लेकिन उनके तेवर में उस समय भी कोई झिझक नहीं थी। वहां भी उन्होंने अपना नाम ‘आजाद’ और पिता का नाम ‘स्वतंत्र’ और पता ‘जेलखाना’ बतलाया। क्रोधित मजिस्ट्रेट ने 15 बेतों की कठोर सजा सुनायी जल्लाद द्वारा प्रहार किये जाने वाले एक बेंत पर ‘भारत माता की जय’ का ही जय घोष लोगों ने सुना, पीड़ादायक आह नहीं। सारा शरीर रक्त रंजित हो चुका था पर चेहरे पर शिकन नहीं थी। उसी दिन से चन्द्रशेखर आम चर्चा के विषय बन गये। उसी दिन उन्होंने यह संकल्प ले लिया था कि अब भविष्य में पुलिस उन्हें जिन्दा नहीं पकड़ सकेगी। इस समय तक उनके मन में यह धारणा गहरे तक बैठ चुकी थी कि अहिंसा के रास्ते इस देश को अजादी नहीं मिल पायेगी । इसलिये उन्होंने तत्कालीन प्रख्यात क्रांतिकारी नेता शचीन्द्रनाथ के नेतृत्व वाले हिन्दुस्तान प्रजातंत्र संघ’ में शामिल होने का निर्णय लिया। वहां उनकी पं. रामप्रसाद बिस्मिल जैसे प्रख्यात क्रांतिकारियों से मुलाकात हुयी। बाद में उन्होंने लाल किले में देशभर के क्रांतिकारियों से मुलाकात के लिये गुप्त बैठकों का आयोजन किया । इन्हीं बैठकों के परिणामस्वरूप ‘हिन्दुस्थानी समाजवादी प्रजातंत्र सेना’ के नाम से एक संगठन की आधारशिला रखी गयी आजाद ही इस संगठन के सिरमौर कमान्डर बनाये गये। इनके लगातार प्रयासों से देशभर में क्रांतिकारी युवकों का जाल फैला दिया गया।

इसी समय साईमन कमीशन का भारत आगमन हुआ था। देशभर में उसका सख्त विरोध किया जा रहा था। इसी समय एक घटना घटी जिसने क्रांतिकारियों के मन में अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा और ज्यादा ही फूट पड़ा। लाहौर में साईमन कमीशन का विरोध करते समय पुलिस की बर्बर कार्यवाही के दौरान लाला लाजपतराय बुरी तरह घायल हो गये और बाद में उनका निधन हो गया। इस घटना की देशभर में व्यापक प्रतिक्रिया हुयी । क्रांतिकारियों ने अंग्रेज पुलिस को सबक सिखाने के उद्देश्य से 15 दिसम्बर 1928 को उसे गोली मार दी । राजगुरू और भगत सिंह ने गोलियां चलायी और आजाद ने उसका पीछा करते पुलिस कर्मियों को रोका। क्रांतिकारियों की इस कार्रवाई से अंग्रेज सरकार ने बौखलाकर लाहौर में भीषण दमन चक्र चलाया। एक प्रकार से लाहौर की घेराबन्दी ही कर दी गयी लेकिन पुलिस को इन क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी के मामलें में किसी प्रकार की सफलता नहीं मिल सकी। ये लोग सकुशल अपनी योजना के अनुसार लाहौर से बाहर निकल गये।

इसके बाद दिल्ली के असेम्बली भवन में भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने तैयार की गई योजना के मुताबिग बम का धमाका कर गिरफ्तारी दे दी। बाद में और क्रांतिकारी भी पकड़े गये। लेकिन आजाद पुलिस की पकड़ से बाहर ही रहे।

26 फरवरी 1931 को जब आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अपने कुछ क्रांतिकारी सहयोगियों के साथ आगे के कार्यक्रमों की योजना बना रहे थे, तब पुलिस ने पार्क को चारों ओर से घेर लिया। इस विषम परिस्थिति में भी अपने साथियों के लिये निकल जाने का सुरक्षित मार्ग बनाते हुये, पुलिस का मुकाबला करते रहे। अन्त में जब उनके पास रिवाल्वर में एक गोली शेष रह गयी तब उसे अपनी कनपटी में लगाकर अपनी इहलीला समाप्त करते हुये भारत माता की गोद में चिरनिद्रा में सो गये।

ऐसे महान बलिदानी का स्मरण करने यह अवसर है जब हम उनके जीवन से सच्चे देशभक्त होने की प्रेरणा ले सकते हैं। इन महान आत्मा ने राष्ट्र के वैभव के लिये ही जीवन जिया और उसके लिये ही समर्पित कर दिया। उन्होंने यह भी संदेश दिया है कि जो व्यक्ति अपने जीवन मूल्यों अर्थात् संस्कृति की रक्षा करते है जीवन में अपनाते हैं, संगठित होकर रहते हैं, उन्हें कोई भी शक्ति नुकसान नहीं पहुंचा सकती । वे निरन्तर प्रगति पथ पर अग्रसर होते है। लेकिन वर्तमान विषम परिस्थितियां में आजादी के बाद से अब तक सांस्कृतिक विरासत, इतिहास, परम्परा, भाषा, वेशभूषा, महापुरूष, जाति, सम्प्रदाय आदि सभी को विकृत करने की चेष्टा में जारी है जिसके कारण हमने भुला दिया कि हमारा आदर्श क्या है ? हमारा इस धरा पर जन्म क्यों हुआ है ? पं. चन्द्रशेखर आजाद के प्रेरणादायक बलिदानी जीवन को आत्मसात करें। उनके चरणों में शतशत नमन।