अमरनाथ यात्रा : देश और दुनिया में आस्था और श्रद्धा की अनूठी “मिसाल”

तीन जुलाई से शुरू हो रही पवित्र अमरनाथ यात्रा पर विशेष….

प्रदीप कुमार वर्मा

जय बाबा बर्फानी,भूखे को अन्न प्यासे को पानी। चलो अमरनाथ दर्शन को। जय हो बाबा अमरेश्वर।  यह भक्तों के भाव के साथ जय घोष है अमरनाथ यात्रा का। हिंदू धर्म की प्रमुख धार्मिक यात्रा के रूप में देश और दुनिया में चर्चित अमरनाथ तीर्थयात्रा आज से यानि तीन जुलाई से शुरू हो रही है। आदिदेव भगवान शिव को समर्पित अमरनाथ यात्रा का अत्यधिक धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है।यह यात्रा भगवान शिव के भक्तों के लिए एक पवित्र तीर्थ है। जहाँ वे वर्ष में एक बार प्राकृतिक रूप से बने बर्फ के शिवलिंग “बाबा बर्फानी” के दर्शन कर मोक्ष की प्राप्ति की कामना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि अमरनाथ की पवित्र यात्रा करने से व्यक्ति के सभी दुख व परेशानी दूर हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। अमरनाथ तीर्थयात्रा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है,क्योंकि अमरनाथ की गुफा को भगवान शिव का निवास भी माना जाता है। 

        जम्मू-कश्मीर के गंदेरबल जिले के हिमालय में स्थित अमरनाथ गुफा साल के अधिकांश समय बर्फ से ढकी रहती है। लेकिन यह गर्मियों के महीनों में भक्तों के लिए खुलती है। अमरनाथ यात्रा का बालटाल मार्ग 14 किलोमीटर का है वहीं, पहलगाम के रास्ते अमरनाथ गुफा की कुल दूरी 48 किलोमीटर है। तीर्थयात्री इन दोनों रूट से करीब 3 हजार 880 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अमरनाथ गुफा मंदिर तक जाते हैं। पौराणिक मान्यता एवं किवदंतियों के मुताबिक माना जाता है कि महर्षि भृगु पवित्र अमरनाथ गुफा के दर्शन करने वाले पहले व्यक्ति थे। पुराणों में पवित्र अमरनाथ गुफा के अस्तित्व का उल्लेख किया गया है। इसके साथ ही इतिहासकार कल्हण ने भी अपनी पुस्तक ‘राजतरंगिणी’ में अमरनाथ गुफा का जिक्र किया है। फ्रांस के यात्री फ्रांस्वा बर्नियर ने भी अपनी पुस्तक में अमरनाथ यात्रा का विस्तार से जिक्र किया है।  

             प्राचीन अमरनाथ गुफा के संबंध में एक कहानी यह भी प्रचलित है कि साल वर्ष 1850 में बूटा मलिक नाम के एक चरवाहे ने अमरनाथ गुफा की फिर से खोज की थी। इस चरवाहे ने वहां पर पवित्र गुफा और बर्फ से बने शिवलिंग को देखा। इसके बाद उसने इस खोज के बारे में ग्रामीणों को बताया। तभी से यह तीर्थयात्रा का एक पवित्र स्थल बन गया। लोक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से उनके अमरत्व का कारण जानना चाहा, तो भगवान शिव ने माता पार्वती को कहा कि इसके लिए आपको “अमर कथा” सुननी पड़ेगी। इसके लिए उन्होंने ऐसे स्थान की तलाश करना शुरू किया, जहां कोई और इस अमर कथा को नहीं सुन सकता था। अतः वे अमरनाथ गुफा पहुंचे। 

      भगवान शिव ने जब माता पार्वती के साथ में अमरनाथ गुफा की ओर प्रस्थान किया, तो रास्ते में सबसे पहले उन्होंने पहलगाम में अपने नंदी का परित्याग किया। इसके बाद चंदनवाड़ी में भगवान शिव ने अपनी जटाओं से चंद्रमा को मुक्त किया। शेषनाग नामक झील के तट पर उन्होंने अपने गले से सर्पों  को भी मुक्त कर दिया। इसके बाद उन्होंने अपने पुत्र गणेश को महागुनस पर्वत पर छोड़ने का फैसला किया। फिर पंचतरणी नामक स्थान पर पहुंचकर भगवान शिव ने पंच तत्वों पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश का भी त्याग कर दिया। इन सब को पीछे छोड़कर भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ अमरनाथ गुफा में प्रवेश किया और वहां पर समाधि ले ली। इसके बाद भगवान शिव ने कालाग्नि बनाई।

        महादेव ने कालाग्नि गुफा के आसपास मौजूद हर जीवित प्राणी को नष्ट करनेका आदेश दिया, जिससे माता पार्वती को छोड़कर कोई भी अमर कथा न सुन सके। फिर भगवान शिव माता पार्वती को “अमरत्व” का रहस्य बताने लगे। लेकिन तभी अचानक कबूतरों का एक जोड़ा वहां पर पहुंचा और उन्होंने अमरत्व के रहस्य को सुन लिया। इसके साथ ही कबूतरों का यह जोड़ा अमरत्व को प्राप्त हो गया। कई तीर्थयात्री कबूतरों के इस जोड़े को देखने का दावा करते हैं और उन्हें यह देखकर आश्चर्य होता है कि ये पक्षी इतने ठंडे और ऊंचाई वाले क्षेत्र में कैसे जीवित रह सकते हैं। अमरनाथ की पवित्र गुफा गर्मी के कुछ दिनों को छोड़कर साल के अधिकांश समय बर्फ से ढंकी रहती है। दिलचस्प बात यह है कि इस पवित्र गुफा में प्रत्येक वर्ष बर्फ का शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बनता है।

          बताते हैं कि इस गुफा की छत की एक दरार से पानी की बूंदें टपकती हैं, जिससे बर्फ का शिवलिंग बनता है। इस शिवलिंग के बगल में दो छोटे और आकर्षक बर्फ के शिवलिंग भी बनते हैं, जिन्हें माता पार्वती और भगवान गणेश का प्रतीक माना जाता है। यह दुनिया का एकमात्र ऐसा शिवलिंग है, जो चंद्रमा की रोशनी के चक्र के साथ बढ़ता और घटता है। यह शिवलिंग श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को पूरे आकार में रहता है और अमावस्या तक इसका आकार घटने लगता है। ऐसा प्रत्येक साल होता है।गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरता का रहस्य बताया था, जिसके कारण इस गुफा का नाम अमरनाथ पड़ा। इसी बर्फ के शिवलिंग के दर्शन के लिए ही हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु अमरनाथ की पवित्र गुफा की यात्रा करते हैं। 

      प्राचीन काल में इस गुफा को ‘अमरेश्वर’ भी कहा जाता था। बर्फ से शिवलिंग बनने के चलते इसे ‘बाबा बर्फानी’ भी कहा जाता है। मान्यता यह है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से इस पवित्र गुफा में बने शिवलिंग का दर्शन करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।  कई पुराणों जैसे बृंगेश संहिता, नीलमत पुराण आदि में अमरनाथ यात्रा के महत्व का वर्णन मिलता है। हिन्दू शास्त्रों एवं पुराणों के अनुसार अमरनाथ यात्रा से साधक को 23 तीर्थों के दर्शन करने जितना पुण्य प्राप्त होता है।  पुराणों के अनुसार काशी में लिंग दर्शन और पूजन से दस गुना, प्रयाग से सौ गुना और नैमिषारण्य तीर्थ से हजार गुना अधिक पुण्य बाबा अमरनाथ के दर्शन करने से मिलता है। मान्यता यह भी है कि अमरनाथ गुफा के ऊपर पर्वत पर श्री राम कुंड है। अमरनाथ गुफा में स्थित पार्वती शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक हैं। 

          प्रारंभ में अमरनाथ यात्रा का प्रबंधन का जिम्मा बूटा मलिक के वंशज और दशनामी अखाड़े के पंडित और पुरोहित सभा के हाथों में था। साल 2000 में जम्मू-कश्मीर सरकार ने श्रीअमरनाथ जी श्राइन बोर्ड का गठन किया और इसका अध्यक्ष राज्यपाल को बनाया गया। श्रीअमरनाथ जी श्राइन बोर्ड के तत्वावधान में  इस वर्ष अमरनाथ यात्रा 3 जुलाई, 2025 से शुरू हो रही है और 9 अगस्त, 2025 तक चलेगी। यह पवित्र यात्रा 38 दिनों तक चलेगी और देशभर से श्रद्धालु इसमें भाग लेंगे। बोर्ड द्वारा इस यात्रियों के ठहरने और खाने-पीने की व्यवस्था की गई है।  कुछ महीने पूर्व पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार की सुरक्षा एजेंसियां पूरी तरह से मुस्तेद हैं और अमरनाथ यात्रा को सुखद, सफल और सुरक्षित बनाने में जुटी हैं। वहीं, श्रद्धालु पूर्ण श्रद्धा एवं आस्था भाव के साथ बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए निकल चुके हैं।

प्रदीप कुमार वर्मा

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