विविधा

महत्वाकांक्षा

councellingकरीब चालीस साल पहले की बात है। मेरा एक छात्र था, इण्टरमिडिएट क्लास में। माँ-बाप का इकलौता पुत्र, चार बहनों का इकलौता भाई। पिता डिपुटी मेजिस्ट्रेट। लड़का बहुत ही प्यारा, सुदर्शन एवम् स्वस्थ। पिता की उसे डॉक्टरी पढ़ाने की उत्कट इच्छा थी, उनका कहना था, ऐट ऐनी कॉस्ट, इसको डॉक्टर बनना है। लड़के को एक बीमारी थी । बीच बीच में दौरे पड़ते थे। सारी देह काँपने लगती थी और वह बेहोश हो जाता था । कुछ देर बाद होश आता , कमजोरी रहती। फिर स्वाभाविक हो जाता।

 उसके माता पिता बहुत चिन्तित रहा करते थे। लड़का शरीर एवम् मस्तिष्क से स्वस्थ था साथियों एवम् आत्मीयों में लोकप्रिय भी।उसके माता पिता से मालूम हा कि ऐसे दौरे उच्च-माध्यमिक परीक्षा की तैयारी के समय पहली बात हुआ करते थे। मुझे लगा कि समस्या का निदान मनोरोग विशेषज्ञ से मिल सकता है, इसलिए मैंने सुझाया कि मनोरोग चिकित्सक को दिखाएँ। वे हिचकिचाए कि लोगों को जानकारी होगी तो उसकी शादी में अड़चन आएगी।

मेरे जोर देने पर वे राजी हुए। पर मुझे ही डॉक्टर के पास ले जाने का अनुरोध उन्होंने किया और मैं लड़के को लेकर पटना गया।

मनोरोग चिकित्सक ने उससे कुछ सवाल किए। वे बड़े दिलचस्प थे।  पहला सवाल—“क्या तकलीफ है ?”

जवाब— “कोई तकलीफ नहीं”

तब मैंने उसकी तकलीफ का बयान किया. फिर डॉक्टर ने पूछा—“आप किस क्लास में पढ़ते हैं, पढ़कर  क्या बनना चाहते हैं।“

उसने जवाब दिया, “डॉक्टर बनना चाहता हूँ।.”

उ सवाल—“उसके लिेए इण्टर किस श्रेणी में पास करना चाहते हैं?”

जवाब–  “पहली”

सवाल –  “लेकिन पहली श्रेणी तो नहीं भी हो सकती है. उस हालत में किस श्रेणी में पास करना चाहेंगे?”

जवाब— “तीसरी”

डॉक्टर ने कागज पर लिखा, पहली, दूसरी और फिर तीसरी और उससे कहा– इधर देखो। पहली और तीसरी के बीच दूसरी होती है. पहली न हो तो तीसरी क्यों चाहते हो, दूसरी क्यों नहीं? हकीकत में तुम फेल करना चाहते हो।”

लड़का भौंचक रह गया.

डॉक्टर ने कहना जारी रखा– तुम जानते हो कि तुम प्रथम श्रेणी नहीं पा सकते हो, इसलिए तुम फेल करना चाहते हो।

लड़का भौंचक सुनता रहा।

डॉक्टर ने आगे कहा—“जब लोग अपनी क्षमता से अधिक का लक्ष्य रख लेते हैं और उनके अवचेतन मन को पता होता है कि उसे वे हासिल नहीं कर सकते तो इस तरह के symptoms develop करते हैं।“

फिर उस लड़के को मेरी ओर दिखाकर पूछा “ये कैसे आदमी हैं?” लड़के ने कहा “बहुत अच्छे आदमी हैं”. डॉक्टर ने कहा-“ पर ये तो डॉक्टर नहीं हैं, फिर भी अच्छे आदमी हैं। बिना डॉक्टर हुए भी अच्छा आदमी हुआ जा सकता है। आप डॉक्टरी का खयाल अपने मन से निकाल दीजिए।”

फिर उन्होने अपने एक सहायक को बुलाया और लड़के को कॉंसेलिंग के लिए उनके सुपुर्द कर दिया।. वे लड़के को अन्दर के चैम्बर में ले गए। मैं बाहर इंतजार करता रहा। कुछ ही मिनट के बाद लड़का बदहवास सा बाहर निकल आया और सीधा मुझसे मुखातिब हुआ- “मैं बिलकुल ठीक हूँ।  घर चलिए।“

मैं उसका चेहरा देखकर परेशान हो गया कि आखिर क्या बात हुई।डॉक्टर से क्षमायाचना कर उसके साथ बाहर आया। मेरे पूछने पर उसने बतलाया कि अन्दर स्टूल पर बैठते ही उसे लगा जैसे पैंट में दस्त आ जाएगा। फिर हम चले आए।. उसकी बदहवासी दूर हो गई थी। उसे फिर दौरे नहीं आए। वह डॉक्टर नहीं बना। आयकर विभाग में एक दक्ष सहायक एवम् कुशल, स्वस्थ एवम् सफल व्यक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हुआ।