पितर : हमारे जीवन के अदृश्य सहायक

पितृपक्ष 2025

उमेश कुमार साहू

भारतीय संस्कृति की सबसे अद्वितीय परंपरा है – पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता। पितृपक्ष वह पावन काल है जब हम अपने पितरों को नमन करते हैं और उनके आशीर्वाद से जीवन की दिशा को सार्थक बनाने का संकल्प लेते हैं। यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर, पारिवारिक एकता और आध्यात्मिक उन्नति का सशक्त माध्यम है।

पितृपक्ष का आरंभ और कालावधि

पितृपक्ष, जिसे श्राद्धपक्ष भी कहा जाता है, हर वर्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा के बाद से अश्विन मास की अमावस्या तक चलता है। वर्ष 2025 में यह पवित्र काल 7 सितम्बर (रविवार) से 21 सितम्बर (रविवार) तक रहेगा। इस अवधि का अंतिम दिन सर्वपितृ अमावस्या कहलाता है, जब सभी पितरों को सामूहिक रूप से श्रद्धांजलि दी जाती है। प्रत्येक तिथि का संबंध विशेष पूर्वजों से माना गया है और उसी के अनुसार श्राद्ध, तर्पण, दान एवं पूजा-पाठ संपन्न किए जाते हैं।

पितृपक्ष का आध्यात्मिक अर्थ 

श्राद्ध का अर्थ है – श्रद्धा से किया गया कार्य । केवल विधि-विधान का पालन करना ही पर्याप्त नहीं बल्कि मन की गहराइयों से पूर्वजों को स्मरण करना और उन्हें धन्यवाद देना ही इस कर्म का वास्तविक उद्देश्य है। शास्त्रों में कहा गया है कि जब हम पितरों का स्मरण करते हैं, तो वे हमें आशीर्वाद स्वरूप बल, बुद्धि और समृद्धि प्रदान करते हैं। यही कारण है कि पितरों को अदृश्य सहायक कहा गया है।

आधुनिक संदर्भ में पितृपक्ष का महत्व

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग परंपराओं से दूर होते जा रहे हैं। ऐसे में पितृपक्ष हमें रोककर यह सोचने का अवसर देता है कि –

·    हमारी जड़ें कहाँ हैं?

·    हम किनकी विरासत से जीवन जी रहे हैं?

·    और हमें आने वाली पीढ़ी को क्या सौंपना है?

यह केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आत्मनिरीक्षण का अवसर है। जब हम अपने पितरों का स्मरण करते हैं, तो दरअसल हम अपनी जड़ों और मूल्यों से पुनः जुड़ते हैं

पितृपक्ष और परिवार

पितरों का सम्मान करने से परिवार में एकता और सद्भाव बढ़ता है। जब सभी सदस्य एकत्र होकर श्राद्ध में भाग लेते हैं, तो केवल अन्न का अर्पण नहीं होता, बल्कि सामूहिक भावनाओं का संचार होता है। यह परंपरा हमें सिखाती है कि परिवार केवल वर्तमान पीढ़ियों का मेल नहीं, बल्कि अतीत और भविष्य का सेतु भी है।

पितृपक्ष के दौरान अनुशंसित कर्म

1.  श्राद्ध और तर्पण : गंगा, नर्मदा, गोदावरी जैसी पवित्र नदियों के तट पर श्राद्ध करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यदि संभव न हो तो घर पर भी श्रद्धा-भाव से तर्पण किया जा सकता है।

2.  सात्विक भोजन और दान : श्राद्धकाल में सात्विक भोजन का सेवन करें और ब्राह्मण, गौ, पक्षी व जरूरतमंदों को भोजन कराएँ। भोजन और अन्नदान को पितरों तक पहुँचने वाला श्रेष्ठ मार्ग बताया गया है।

3.  पर्यावरणमूलक श्राद्ध : इस युग में पौधारोपण या जल संरक्षण जैसे कार्य भी पितरों की स्मृति में किए जा सकते हैं। यह न केवल पुण्य प्रदान करेगा बल्कि आने वाली पीढ़ियों को स्थायी उपहार भी देगा।

4.  संस्कृति का संरक्षण : पितृपक्ष बच्चों को अपनी परंपराओं से जोड़ने का उत्कृष्ट अवसर है। पूर्वजों की कहानियाँ, उनके संघर्ष और आदर्श सुनाकर हम उनमें संस्कारों का बीजारोपण कर सकते हैं।

5.  सामाजिक सहयोग : अनाथालय, वृद्धाश्रम और जरूरतमंद परिवारों में वस्त्र, भोजन, दवाइयाँ और किताबें दान करना श्राद्ध का वास्तविक रूप है। जब दान सही जगह पहुँचता है तो पितरों की आत्मा भी संतुष्ट होती है।

पितृपक्ष की वैज्ञानिक दृष्टि

आज के आधुनिक युग में भी यह परंपरा वैज्ञानिक दृष्टि से प्रासंगिक है। मनोविज्ञान मानता है कि पूर्वजों का स्मरण हमें भावनात्मक सुरक्षा देता है। यह हमारी सोच को सकारात्मक बनाता है और आत्मविश्वास बढ़ाता है। समाजशास्त्र की दृष्टि से देखें तो यह परंपरा सामाजिक जुड़ाव और सामूहिक सहयोग को मजबूत करती है।

पितरों का आशीर्वाद : जीवन की शक्ति

भारतीय जीवन-दर्शन मानता है कि पितृ केवल अतीत का स्मरण नहीं, बल्कि हमारे जीवन की प्रेरणा हैं। जब हम उन्हें श्रद्धा अर्पित करते हैं, तो उनका आशीर्वाद हमारे जीवन को दिशा देता है। यही कारण है कि कहा गया है – “पितृदेवो भव।” पितरों का सम्मान देवताओं की उपासना के समान फलदायी है।

पितृपक्ष 2025 हमें यह स्मरण कराता है कि जीवन केवल वर्तमान क्षणों का संग्रह नहीं है। इसमें अतीत की जड़ें और भविष्य की शाखाएँ जुड़ी हुई हैं। हमारे पितर, जिन्होंने हमें यह जीवन और संस्कृति दी, वे हमारे वास्तविक मार्गदर्शक हैं।

इस पितृपक्ष पर यदि हम केवल विधि-विधान तक सीमित न रहकर –

·    पूर्वजों के आदर्शों को अपनाएँ,

·    दान को सामाजिक और पर्यावरणीय कार्यों से जोड़ें,

·    और परिवार में परंपराओं का बीजारोपण करें.

तो यह कालखंड वास्तव में आध्यात्मिक जागरण और आत्मिक कल्याण का पर्व बन जाएगा।

उमेश कुमार साहू

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,662 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress