अन्ना ‘क्रांति को भुनाने की पाखंडपूर्ण राजनीति

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तनवीर जाफ़री

भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध जिस प्रकार पिछले दिनों देश का दु:खी व असंगठित समाज अन्ना हज़ारे के पीछे एकजुट होकर सड़कों पर उतर आया इस घटना ने वास्तव में देश के लगभग सभी राजनैतिक दलों के सरबराहों के कान खड़े कर दिए। अब राजनैतिक दलों द्वारा इस बात की पूरी कोशिश की जा रही है कि विभिन्न राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनावों तथा अगले लोकसभा चुनावों से पूर्व देशवासियों के समक्ष किसी प्रकार स्वयं को इस रूप में पेश किया जाए ताकि जनता को यह महसूस हो कि दरअसल वही तो हैं अन्ना हज़ारे के ‘मिशन भ्रष्टाचार विरोध को आगे ले जाने वाले सच्चे व ईमानदार राष्ट्रभक्त। और अपनी इस ‘पाखंडपूर्ण योजना को अमली जामा पहनाने के लिए तरह-तरह के प्रयास भी शुरु हो चुके हैं। अब तो जिस दल या उसके नेता को देखो वही यह कहता दिखाई दे रहा है कि हम ही हैं भ्रष्टाचार का खात्मा करने वाले वास्तविक नायक, हम ही हैं भ्रष्टाचार विरोध का सबसे सबल प्रतीक तथा हम ही हैं अन्ना हज़ारे के मकसद के असली अलमबरदार।

 

और इसी ‘क्रांति अन्ना को भुनाने की गरज़ से ही भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण अडवाणी ने बड़े ही आश्चर्यजनक ढंग से देश में भ्रष्टाचार विरोधी रथयात्रा निकाले जाने की घोषणा कर दी है। अडवाणी की इस घोषणा ने राजनैतिक हल्क़ों में कई प्रकार के प्रश्र खड़े कर दिए हैं। एक तो यह कि अडवाणी जब 2009 के लोकसभा चुनावों में भाजपा द्वारा प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री घोषित किए गए थे। और जब देश की जनता ने उनके उस राजनैतिक स्टंट की ओर कान नहीं दिया तो बेचारे अडवाणी प्रथम पंक्ति की राजनैतिक सक्रियता से ही पीछे खिसक गए तथा पार्टी की दूसरी पंक्ति के नेतृत्व को लोकसभा,राज्यसभा यहां तक कि पार्टी की भी कमान सौंप दी। इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि अडवाणी 2009 की पार्टी की हार के बाद भविष्य में फिर कभी देश के राजनैतिक क्षितिज पर चमकने की कोशिश करेंगे। परंतु अन्ना हज़ारे के भ्रष्टाचार विरोधी तथा जनलोकपाल विधेयक समर्थक आंदोलन ने शायद उन्हें यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि देश में अब मंदिर-मस्जिद अथवा धर्म-संप्रदाय के नाम पर भले ही जनसमर्थन प्राप्त करने की संभावना हो या न हो परंतु भ्रष्टाचार के विरोध में खड़े होने पर जनसमर्थन मिलने की अपार संभावना ज़रूर है। और क्रांति अन्ना से जुड़े देश के करोड़ों असंगठित नागरिकों के सामूहिक रूप से सड़कों पर उतरने की इस घटना ने व हमेशा ही व्यापक जनसमर्थन की तलाश में लगे रहने वाले नेताओं के मुंह में पानी ला दिया। अडवाणी की प्रस्तावित रथयात्रा निश्चित रूप से उसी भ्रष्टाचार विरोधी जनसमूह का समर्थन प्राप्त करने का एक ‘पाखंडपूर्ण प्रयास है।

अडवाणी द्वारा केवल भ्रष्टाचार विरोधी रथयात्रा निकालने की ही घोषणा नहीं की गई है बल्कि इसके अतिरिक्त इन दिनों और भी कई लोकलुभावने दिखाई देने वाले कदम भाजपा उठा रही है। ताकि किसी भी कीमत पर मतदाताओं को यह संदेश जा सके कि उन्हीं का दल देश का सबसे साफ-सुथरा व भ्रष्टाचार मुक्त राजनैतिक दल है। इसी सिलसिले में पिछले दिनों कर्नाटक के मुख्य मंत्री येदियुरप्पा को लोकायुक्त की रिपोर्ट के बाद काफी जद्दोजहद के पश्चात उनके पद से हटाया गया। येदियुरप्पा पर भ्रष्टाचार के कई मामलों में संलिप्त होने का आरोप था। उसके पश्चात नए मुख्य मंत्री सदानंद गौड़ा को शपथ दिलाई गई। उनके मंत्रिमंडल में बेल्लारी के रेड्डी बंधुओं को सिर्फ इसलिए शामिल नहीं किया गया ताकि पार्टी अपने को साफ-सुथरी छवि रखने वाली पार्टी कह सके। परंतु भाजपा का यह प्रयास उस समय व्यर्थ चला गया जबकि गत् 5 सितंबर को सीबीआई द्वारा येदियुरप्पा मंत्रिमंडल में मंत्री रहे जनार्दन रेड्डी तथा उनके करीबी रिश्तेदार व रेड्डी बंधुओं की ओबुलापुरम माईनिंग कंपनी(ओएमसी)के प्रबंध निदेशक श्रीनिवास रेड्डी को अवैध खनन के गंभीर अपराध में गिरफ्तार कर लिया गया। गत् दिवस सीबीआई की एक अदालत ने इनकी ज़मानत याचिका भी खारिज कर दी। गौरतलब है कि बेल्लारी के रेड्डी बंधुओं के नाम से प्रसिद्ध यह खनन माफिया आंध्र प्रदेश तथा कर्नाटक राज्यों में धड़ल्ले से अपना अवैध खनन का कारोबार संचालित करता है तथा लौह अयस्क का खनन कर अरबों रुपये की अवैध कमाई गत् कई वर्षों से करता आ रहा है। भाजपा के मुख्य अर्थप्रबंधक के रूप में भी इन्हें जाना जाता है। सोनिया गांधी के विरुद्ध 1999 में जब सुषमा स्वराज बेल्लारी से चुनाव लडऩे गई थीं उस समय सुषमा स्वराज के चुनाव की पूर्ण व्यवस्था व संचालन इन्हीं शक्तिशाली रेड्डी बंधुओं ने ही किया था। आज भी यह इतने शक्तिशाली हैं कि कर्नाटक की सरकार को किसी भी समय अपने धनबल के द्वारा गिराने या बनाने की पूरी क्षमता रखते हैं। पुलिस कांस्टेबल पिता की यह ‘होनहार संतानें आज चार-चार निजी विमानों की मालिक बन चुकी हैं तथा स्वर्ण जडि़त सिंहासन पर आसीन होती हैं। भले ही आज यह अवैध खनन के मामले में जेल में क्यों न हों पर कल यही रेड्डी बंधु अडवाणी की भ्रष्टाचार विरोधी रथयात्रा का समर्थन व प्रबंधन करते दिखाई दें तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।

इसी प्रकार उत्तराखंड में राज्य के बदनाम,भ्रष्ट व भ्रष्टाचार को समर्थन देने जैसे आरोपों का कई वर्षों से सामना करने वाले मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को भी पार्टी द्वारा राज्य में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र उन्हें मुख्य मंत्री पद से बिदा कर दिया गया है। और उनके स्थान पर अपनी फौजी एवं कड़क छवि रखने वाले भुवन चंद खंडूरी को राज्य का एक बार फिर मुख्यमंत्री बना दिया गया है। यहां यह बात भी काबिल-ए-गौर है कि भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते जिस रमेश पोखरियाल को चलता किया गया है यही रमेश पोखरियाल जनवरी-मार्च 2010 में हरिद्वार में आयोजित हुए महाकुंभ मेले के आयोजन के लिए नोबल पुरस्कार की मांग करते दिखाई दिए थे। आश्चर्य है कि नोबल पुरस्कार का तलबगार नोबल पाना तो दूर अपनी ही पार्टी के आला नेताओं की नज़रों में मुख्यमंत्री पद पर बैठने योग्य भी नहीं रहा?

 

बहरहाल, भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण अडवाणी अपनी भ्रष्टाचार विरोधी रथयात्रा के द्वारा भले ही क्रांति अन्ना को भुनाने की कोशिश में क्यों न लगे हों परंतु स्वयं अन्ना हज़ारे अडवाणी की इस रथयात्रा को महज़ एक पाखंड करार दे रहे हैं। अन्ना हज़ारे ने यह सा$फ कर दिया है कि उनका कोई समर्थन इस यात्रा को कतई नहीं है। इसके पूर्व भी अन्ना हज़ारे के आंदोलन विशेषकर उनके अनशन के दौरान भी भाजपा अन्ना हज़ारे के बिना समर्थन मांगे हुए उन्हें अपना ‘समर्थन देती दिखाई दे रही थी। परंतु देश भलीभांति यह देख रहा था कि भाजपा द्वारा अन्ना को दिया जाने वाला यह समर्थन दरअसल भ्रष्टाचार के विरोध में या जनलोकपाल विधेयक के समर्थन में दिया जाने वाला समर्थन नहीं था बल्कि भाजपा का यह समर्थन कांग्रेस को बदनाम करने वाला तथा केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व में चल रही संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार को कमज़ोर व अस्थिर करने के एकमात्र उद्देश्य से दिया जाने वाला समर्थन था। अन्यथा यदि भाजपा अन्ना हज़ारे की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के साथ व उनके समर्थन में पूरी तरह खड़ी होती तो उसे खुलकर जनलोकपाल विधेयक का भी पूरी तरह समर्थन करना चाहिए था। इतना ही नहीं बल्कि पार्टी को भाजपा शासित सभी राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति किए जाने की संवैधानिक व्यवस्था भी करनी चाहिए थी। बजाए इसके पार्टी कर्नाटक में अंतिम समय तक यही कोशिश करती रही कि लोकायुक्त की रिपोर्ट तथा मीडिया द्वारा तमाम सुबूत पेश किए जाने के बावजूद किसी प्रकार से अपने मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को बचाया जा सके। उधर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी तथा पार्टी नेताओं ने भी गुजरात के राज्यपाल द्वारा राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति किए जाने का ज़ोरदार विरोध किया तथा इसे असंवैधानिक तक बता डाला।

बहरहाल, अडवाणी की भ्रष्टाचार विरोधी यात्रा की सफलता या असफलता का प्रश्र तो अपनी जगह पर है परंतु अडवाणी द्वारा इस यात्रा के बहाने एक बार पुन: सक्रिय होना इस बात की दलील ज़रूर है कि अभी भी उनके भीतर से प्रधानमंत्री बनने की लालसा समाप्त नहीं हुई है। दूसरी ओर पार्टी का एक वर्ग नरेंद्र मोदी को भी अगले आम चुनावों में पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद का उ मीदवार घोषित करने की योजना पर गंभीरता से कार्य कर रहा है। उधर अडवाणी की इस घोषणा से पार्टी की दूसरी पंक्ति की लीडरशिप जोकि प्रथम पंक्ति में आ खड़ी हुई थी वह भी अडवाणी के निर्णय से हैरत में दिखाई दे रही है तथा स्वयं को एक बार फिर असहज स्थिति में महसूस कर रही है। अब देखना यह होगा कि कल तक सांप्रदायिक रंगों में रंगी रथयात्रा निकालने वाले अडवाणी अपनी इस कथित भ्रष्टाचार विरोधी रथयात्रा के माध्यम से आम लोगों को किस प्रकार आम लोगों का यह समझा सकेंगे कि उनकी पार्टी साफ-सुथरी छवि वाली पार्टी है तथा भ्रष्टाचार की प्रबल विरोधी है। और यह भी देखने योग्य होगा कि देश की जनता भी उनके इस झांसे में आएगी भी अथवा नहीं?

1 COMMENT

  1. अब् साधु सन्यासी भी कुदॆ है,
    राजनीति कॆ आखडॆ मॆ,,
    नॆता अभिनॆता बॆपर्दा हॊ,,,
    आ गयॆ लीडरशीप् कॆ बाडॆ मॆ,
    गान्धी टॊपी पहन् ,,
    नॆतागीरी कॆ पालॆ मॆ,,
    लगी हुयी है सभा मॆ भीड्
    निक्कमॊ की भाडॆ मॆ….अवि

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