अन्तर-पथ – एक समीक्षा

बिपिन किशोर सिन्‍हा 

Varanasi LOKARPAN (1)‘अन्तर-पथ’ एक कविता संग्रह है जिसे शब्द-भाव दिए हैं, डा. रचना शर्मा ने और प्रकाशित किया है पिलग्रिम्स पब्लिशिंग, वाराणसी ने। सामान्यतः पिलग्रिम्स पब्लिशिंग नए साहित्यकारों की रचनाएं कम ही छापता है। परन्तु डा. रचना शर्मा का यह काव्य-संग्रह प्रकाशित करके, प्रकाशक ने अपनी पुरानी छवि तोड़ने का सराहनीय प्रयास किया है। ऐसी ललित रचनाओं को प्रकाशित करने का श्रेय और सौभाग्य विरले प्रकाशकों को प्राप्त हो पाता है।

‘अन्तर-पथ’ ५८ आधुनिक अतुकान्त कविताओं का एक अद्भुत संग्रह है। पुस्तक की प्रत्येक कविता पाठक से सीधा संवाद स्थापित करती है। एक भी ऐसी कविता नहीं है, जो समझ में न आए। कवियित्री ने अपनी संवेदनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए कही बिंबों का सहारा लिया है, तो कही प्रत्यक्ष संवाद का। दोनों ही स्थितियों में परिणाम एक सा है यानि गुणवत्ता समान है। रचना की पहली कविता ‘शब्द’ से लेकर अन्तिम कविता ‘बोल दो’ तक दो बार आद्योपान्त पढ़ने के बाद भी मैं निश्चय नहीं कर पाया कि सर्वश्रेष्ठ ५ कविताओं का चयन कैसे करूं। आज से पहले यह धर्मसंकट कभी नहीं आया था। सारी कविताएं उत्कृष्ट हैं।

पुरुष कवियों ने नारी की भावनाओं और पीड़ा को उकेरने का कई बार सफल/असफल प्रयास किया है। परन्तु ‘अन्तर-पथ’ को पढ़ने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि नारी की भावना, संवेदना, पीड़ा और अनुभूति की अभिव्यक्ति जितने सुन्दर ढंग से एक नारी कर सकती है, वह किसी और के वश का नहीं। रचना की एक कविता, स्मृति –

व्यस्त जिन्दगी में कभी

दिल के दर पर दस्तक देती

सुनहरी यादें

बिखेर देती हैं

तुम्हारे स्नेह की संचित किरणों को

अन्तस में

 

और मैं

आलोकित अन्तस में

चुनने लगती हूं

उन पुष्पों को

जो,

कभी नहीं मुरझाएंगे,

और

जिनकी सुगन्ध

शाश्वत है।

भीष्म की प्रतिज्ञा से मुग्ध पुरुष को उलाहना देते हुए रचना का संदेश कालजयी है –

 

नहीं कर सकते हो यदि

कृष्ण के समान रक्षा

द्रौपदी की

तो, शर्म नहीं।

पर

मत करना प्रतिज्ञा

भीष्म के समान। 

नारी की पीड़ा को उकेरने के लिए कही-कही रचना ने पुरुष मानसिकता पर करारा प्रहार भी किया है। कई स्थानों पर दूर तक फैली उदासी भी दिखाई पड़ती है। परन्तु न तो सारे पुरुष एक जैसे होते हैं और न सारी नारियां एक जैसी। पुरुष और प्रकृति एक दूसरे के पूरक हैं और यह संबंध शाश्वत है। एक-दूसरे को समझ कर, एक दूसरे का सम्मान कर ही नई दुनिया का निर्माण किया जा सकता है; घृणा या प्रतिद्वन्द्विता से नहीं। और इस पृथ्वी पर हजारों तरह के फूल खिलते हैं – कांटों में भी, रेगिस्तान में भी, मधुवन में भी। चाहे वह पुरुष हो या नारी, दृष्टि धनात्मक हो तो प्रत्येक क्षण, प्रत्येक स्थान और प्रत्येक वस्तु का आनन्द लिया जा सकता है। धोखा खाना अच्छा है, धोखा देना नही। बुरा अनुभव भी बहुत कुछ दे जाता है। अपने अनुभवों के आधार पर रचना द्वारा रचित कुछ कविताएं अनुपम हैं। काव्य-संग्रह पठनीय ही नहीं, संग्रहणीय भी है।

Previous articleइलाहाबाद हाईकोर्ट में एक दिन
Next articleशांति के नोबेल से सम्मानित आज भी अपनी भूमि से वंचित
विपिन किशोर सिन्हा
जन्मस्थान - ग्राम-बाल बंगरा, पो.-महाराज गंज, जिला-सिवान,बिहार. वर्तमान पता - लेन नं. ८सी, प्लाट नं. ७८, महामनापुरी, वाराणसी. शिक्षा - बी.टेक इन मेकेनिकल इंजीनियरिंग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय. व्यवसाय - अधिशासी अभियन्ता, उ.प्र.पावर कारपोरेशन लि., वाराणसी. साहित्यिक कृतियां - कहो कौन्तेय, शेष कथित रामकथा, स्मृति, क्या खोया क्या पाया (सभी उपन्यास), फ़ैसला (कहानी संग्रह), राम ने सीता परित्याग कभी किया ही नहीं (शोध पत्र), संदर्भ, अमराई एवं अभिव्यक्ति (कविता संग्रह)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,856 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress